कुलदीप कुमार की कविताएं: भेड़ियों की भीड़ चौराहों पर जमा है, और बकरियां उन्हें हार पहना रही हैं
कुलदीप कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं एक संवेदनशील कवि भी। उनके कविता संग्रह ‘बिन जिया जीवन’ का हाल ही में लोकार्पण हुआ है। कुलदीप कुमार आईटीसी म्यूजिक फोरम की ओर से इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर फाइन आर्ट्स से भी पुरस्कृत हैं। उनके कविता संग्रह से साभार दो कविताएं।
चौराहे पर लड़की
रोज दिखती है उसी चौराहे पर
सर्दी, गर्मी, बरसात, ओले, आंधी, लू
कुछ भी नहीं रोक पाता उसे
बंदरिया की तरह एक नन्हें से बच्चे को सीने से चिपकाए
वह हर कार के पास जाकर हाथ फैलाती है
पक्का रंग है उसका
सांवले से कुछ गहरा ही
चेहरा खुरदुरा है पर एक अजीब से सौंदर्य से दीप्त
आंखें वैसी ही सूनी
जैसा उसका घर
स्थगित यौवन
सूखे झरने सा
मैं अक्सर दूर से ही उसे देख लेता हूं और
कार ऐसी जगह रोकने की कोशिश करता हूं
जहां वह हरी बत्ती होने तक पहुंच न पाए
दुविधा में रहता हूं हरदम ऐसा करते हुए
क्या मैं पैसे बचाने के लिए ऐसा कर रहा हूं
या खुद को बचाने के लिए?
कभी-कभी दिए भी हैं मैंने उसे पैसे
जब वह आ ही गई ठीक खिड़की के सामने
उसे तो क्या पता चला होगा
कि पैसे उसकी हथेलियों में गिरे
और आंसू मेरी जेब में
कभी-कभार उसका बच्चा कुनमुना कर
अपने जीवन का सबूत देता है
और मैं सोचता रह जाता हूं
क्या इसका जीवन कभी शुरू भी होगा?
यह सब भी मैं लाल बत्ती पर रुके हुए ही सोचता हूं
वरना हमें अब कुछ भी सोचने का शऊर कहां रहा?
सुबह और सपने
मेरी तरह
मेरी सुबह भी काफी अजीब है
कभी भी हो जाती है
रात के दो बजे
तो दिन के दो बजे भी
जब आंख खुले तभी सवेरा
यह कहावत शायद मेरे लिए ही बनी थी
सुबह तो सोने के बाद होती है
लेकिन सोना होता ही कहां है?
नींद की बस लपटें-सी उठती हैं
और सब कुछ राख कर चुकने के बाद
मेरी पलकों पर ठहर जाती हैं
तभी मुझे नींद आ पाती है थोड़ी-सी देर
लेकिन सपने नहीं आते
उन्हें मैं जागते हुए देखता हूं
देखता हूं कि एक आदमी
लगातार झूठ बोलता जा रहा है
लोगों की जेब से नोट निकाल कर
रद्दी कागज भर रहा है
और लोग खुशी से नाच रहे हैं
भेड़ियों की भीड़ चौराहों पर जमा है
और बकरियां उन्हें हार पहना रही हैं
भूखों के आगे गाय का गोबर और गौमूत्र परोसा
जा रहा है
और वे कृतज्ञ होकर थालियों को ढोलक की तरह बजा
रहे हैं
अच्छा है ऐसे सपने मुझे सोते में नहीं आते
वरना जो रही-सही नींद आती है
वह भी चली जाती
जाग कर जो चेहरा देखता था हमेशा
वह तो चला ही गया है।
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