न पैन, न पता : बीजेपी को ऐसे मिला करोड़ों का चंदा
राष्ट्रीय राजनीतिक दलों ने अपनी आमदनी की जो रिटर्न फाइल की हैं, उससे पता चलता है कि कार्पोरेट घरानों ने पिछले पांच साल के दौरान खुलकर बीजेपी का समर्थन और सहयोग किया है।
राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे में 2012 के बाद से जबरदस्त बढ़ोत्तरी हुयी है। ये बढ़ोत्तरी 2004 से 2012 के वर्षों के मुकाबले तीन गुना है। इस दौरान मिले चंदे का 70 फीसदी हिस्सा बीजेपी के खाते में गया है, जबकि कांग्रेस के हिस्से में सिर्फ 20 फीसदी चंदा ही आया है। इन आंकड़ों से ये बात फिर एक बार साबित होती है कि बीजेपी देश के कार्पोरेट घरानों की पसंदीदा पार्टी है।
17 अगस्त, 2017 को जारी एडीआर (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म) में कहा गया है कि 2004 से 2012 के बीच कार्पोरेट घरानों ने राजनीतिक दलों को 378 करोड़ रुपए का चंदा दिया था। इन वर्षों को दौरान दो आम चुनाव और 52 विधानसभा चुनाव हुए थे। लेकिन इसके विपरीत 2012 से 2016 के बीच राजनीतिक दलों को दिए जाना वाला चंदा 956.77 करोड़ रुपए पहुंच गया, जबकि इस दौरान सिर्फ एक लोकसभा चुनाव और 24 विधानसभा चुनाव हुए। रिपोर्ट का कहना है कि इस रकम का एक बड़ा हिस्सा 705 करोड़ रुपए बीजेपी के खाते में गया।
रिपोर्ट के अन्य मुख्य अंश इस तरह हैं:
· 2012-13 में सबसे ज्यादा चंदा रियल एस्टेट सेक्टर ने दिया। इस सेक्टर ने करीब ₹16.95 राजनीतिक दलों को दिए। इस रकम का करीब 90 फीसदी यानी ₹15.96 करोड़ बीजेपी को मिला। कांग्रेस को सिर्फ ₹95 लाख रुपए ही मिले।
· इन चार सालों में बिना पैन नंबर के जितना पैसा राजनीतिक दलों को दिया गया उसका 99% यानी ₹155.59 करोड़ बीजेपी को मिला।
· इस अवधि में 2,987 कार्पोरेट संस्थाओं ने बीजेपी को और 167 ने कांग्रेस को चंदा दिया।
· इस चंदे का बड़ा हिस्सा जहां से आया उनमें ट्रस्ट, कंपनियों के समूह (45%), मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर (12%), रियल एस्टेट सेक्टर (12%), खनन (9%) और खाद और रसायन सेक्टर (4%) शामिल हैं।
· बीजेपी, कांग्रेस, सीपीआई और सीपीएम ने जो रिटर्न दाखिल की हैं उनमें ₹ 20,000 से ऊपर के चंदे की घोषणा की गयी है। जबकि, बीएसपी ने अपनी रिटर्न में कहा है कि उसे इस अवधि में ₹ 20,000 से ऊपर कोई चंदा नहीं मिला।
एडीआर रिपोर्ट में कुछ सिफारिशें भी की गयी हैं, जो इस तरह हैं:
1. सभी राजनीतिक दलों को अपनी वेबसाइट पर उनको मिले चंदे के बारे में बताने की जरूरत है
2. जो भी राजनीतिक दल चुनाव आयोग की तय समयसीमा में रिटर्न दाखिल नहीं करते हैं, तो उन पर जुर्माना डाला जाए और उनको मिले चंदे पर टैक्स वसूला जाए
3. राजनीतिक दल उन तारीखों को भी बताएं जिन तारीखों को उन्हें चंदा मिला।
4. नियमों में बदलाव कर ये सुनिश्चित किया जाए कि रिटर्न में कोई भी सूचना छिपायी नहीं जाए और न ही उसे खाली छोड़ा जाए
5. और, चंदे की डिटेल सीबीडीटी को सौंपी जाए ताकि ये सुनिश्चित हो कि पैसे को इधर-उधर करने के लिए शेल कंपनियों (यानी फर्जी कंपनियों) का इस्तेमाल न हो
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Published: 17 Aug 2017, 11:10 PM