ताकतवर बिल्डरों, निर्दयी बैंक और एक उदासीन सरकार द्वारा मझधार में छोड़ दिए गए परेशान घर खरीदारों के लिए जस्टिस दीपक मिश्रा (भारत के मुख्य न्यायाधीश) एक मसीहा के तौर पर सामने आए हैं। जेपी विश टाउन मामले में उनकी अध्यक्षता वाली पीठ का 11 सितंबर को आया फैसला सुपरटेक और यूनिटेक जैसे अन्य बड़े बिल्डरों के मामलों में उनके पहले के फैसलों की ही कड़ी में है। इन बिल्डरों ने कई घर-खरीदारों को कहीं का नही छोड़ा था।
ठीक एक साल पहले सितंबर में जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुपरटेक के मालिकों को उन परेशान घर खरीदारों के पैसे ब्याज सहित लौटाने को कहा था जिन्होंने वहां निवेश किया था। इस साल की शुरुआत में फरवरी में एक बार फिर जस्टिस मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने यूनिटेक के प्रमोटरों को एक विकल्प दिया था कि ब्याज सहित घर खरीदारों को रुपये वापस करें या तो जेल जाएं।
घर खरीदारों के नजरिये से जेपी मामले में कोई उम्मीद नहीं बची थी। क्योंकि पिछले वर्ष संसद द्वारा इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड (आईबीसी) लागू कर दिया गया था और इस साल बैंकों के हितों की रक्षा के लिए भारत सरकार द्वारा नेशनल कॉरपोरेट लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) का गठन कर दिया गया।
जेपी से 500 करोड़ रुपये वसूलने के लिए आईडीबीआई के एनसीएलटी पहुंचने और अन्य बैंकों द्वारा भी अपनी उधार राशि वसूलने की तैयारी शुरू कर देने पर एनसीएलटी ने बैंकों द्वारा जेपी को दी गई बकाया राशि की वापसी के साधन खोजने के लिए आईआरपी का गठन किया था। एनसीएलटी का रवैया उन घर खरीदारों के प्रति उदासीन रहा जो जेपी के बकाये का 90% तक भुगतान कर चुके थे और ऋणों की ईएमआई का भुगतान और मौजूदा आवास का किराया देते हुए अपने घर के लिए सालों से इंतजार कर रहे थे। कानून के मुताबिक, ट्रिब्यूनल को सिर्फ बैंकों के हितों की चिंता करनी थी।
बैंकों के अधिकारी भी घर खरीदारों की परेशानियों के प्रति समान रूप से उदासीन रहे। एसबीआई के एमडी ने आधिकारिक रूप से कहा कि निर्माणाधीन परियोजनाओं में निवेश कर घर के खरीदारों ने जोखिम उठाया है और उन्हें उसके परिणाम भुगतने होंगे।
देश के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि घर खरीदारों की परेशानी पर वह सिर्फ सहानुभूति जता सकते हैं और कुछ नहीं कर सकते। और हमेशा की तरह देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने होंठो को सिले रहे और बर्बाद और तबाह हो चुके घर खरीदार यहां-वहां भागते रहे।
इन वर्षों में ब्याज सहित अपने रकम की वापसी के लिए घर खरीदारों के कई संगठन नेशनल कंज्यूमर डिस्प्युट्स रिड्रेसल कमिशन (एनसीडीआरसी) का दरवाजा खटखटा चुके हैं और ये मामले न्यायिक प्रक्रिया के विभिन्न स्तरों पर हैं। लेकिन इस तरह के सभी मामले अचानक उस समय थम से गए जब एनसीएलटी ने समाधान तलाशने के लिए आईआरपी का गठन कर दिया।
आईआरपी की प्रक्रिया में घर खरीदार अंतिम प्राथमिकता थे। बाहरी एजेंसी द्वारा विश टाउन परियोजना के पुनरुत्थान के कारगर नहीं होने की स्थिति में- जो उस गड़बड़ी का सबसे संभावित परिणाम था- आईआरपी को जेपी प्रमोटरों की संपत्तियों के परिसमापन की दिशा में कदम उठाना था और पहले बैंकों (वित्तीय लेनदारों) और फिर विक्रेताओं, ठेकेदारों, कामगारों, कर्मचारियों आदि की बकाया राशि का भुगतान करना था। उसके बाद अगर कुछ रुपये बचते तो उसे विश टाउन में निवेश करने वाले 32,000 घर खरीदारों के बीच वितरित किया जाना था। क्योंकि आईबीसी ढांचे में घर खरीदारों को वित्तीय लेनदार या संचालन लेनदार की श्रेणी में शामिल नहीं किया गया था और उनका दावा प्राथमिकता सूची के अंत में रखा गया था।
एनसीएलटी द्वारा समाधान प्रक्रिया के नतीजों का 9 महीने तक (आईबीसी के तहत एक प्रस्ताव प्रक्रिया के लिए अधिकतम समय सीमा) धड़कनों को रोक कर इंतजार करने के बाद परेशान घर-खरीदारों में से कुछ ने निराशा में उम्मीद की तलाश करते हुए सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप की कोशिश की। वहां थोड़ी सी उम्मीद थी क्योंकि इस तरह के मामले आमतौर पर निचली अदालतों से शुरू हो कर एनसीडीआरसी से उच्च न्यायालय और आखिर में सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचते हैं।
लेकिन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने इस मामले को जनहित याचिका (पीआईएल) के तौर पर मानते हुए 4 सितंबर को एनसीएलटी की कार्यवाही पर रोक लगाई और जेपी प्रमोटरों को प्रबंधन में फिर से बहाल किया और उन्हें नोएडा प्रोजेक्ट को पुनर्जीवित करने की योजना के साथ मामले की अगली सुनवाई की तारीख 10 अक्टूबर को आने के लिए कहा।
11 सितंबर को एक ऐतिहासिक अंतरिम आदेश में, सीजेआई के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने पहले के फैसले को पलट दिया और आईआरपी को समाधान प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए फिर से अधिकृत कर दिया। लेकिन इसने समाधान के अंतरिम ढांचे को पेश करने के लिए आईबीसी द्वारा निर्धारित 180 दिनों की समयसीमा घटाकर सिर्फ 45 दिन कर दी।
घर खरीदारों के दृष्टिकोण से दो चीजें महत्वपूर्ण थीं: सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से आदेश दिया कि घर-खरीदारों के हित को समाधान प्रक्रिया में प्राथमिकता मिलनी चाहिए। इसे लागू करने के लिए कोर्ट ने आईआरपी बोर्ड में घर खरीदारों के हित का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक न्याय मित्र की नियुक्ति कर दी। इतना ही नहीं; घर-खरीदारों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने जेपी प्रमोटरों को 45 दिनों के भीतर न्यायालय में 2000 करोड़ रुपये जमा करने का आदेश भी दिया। अदालत इस पैसे को अलग करना चाहती थी ताकि घर-खरीदारों को उनके फ्लैट मिलने में देरी के लिए मुआवजा दिया जा सके।
हालांकि अंतिम निर्णय अभी आना बाकी है, लेकिन 11 सितंबर के निर्देश से सुप्रीम कोर्ट ने हजारों घर-खरीदारों के चेहरों पर मुस्कुराहट ला दी है, जो राजनेता-नौकरशाह-बैंक-बिल्डर की सांठ-गांठ के शिकार हुए हैं। इसके लिए जस्टिस दीपक मिश्रा तारीफ के हकदार हैं।
Published: 13 Sep 2017, 4:15 PM IST
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Published: 13 Sep 2017, 4:15 PM IST