गौरक्षा के नाम पर हिंसा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि है कि गौरक्षा के नाम पर हिंसा को कतई बर्दाशत नहीं किया जाएगा और केंद्र और राज्य सरकारें इसे रोकने के लिए कड़े कदम उठाएं। कोर्ट ने कहा है कि सभी जिलों में सीनियर पुलिस अफसर को नोडल अफसर के तौर पर नियुक्त कर इन घटनाओं को रोका जाना चाहिए। उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि गौ-सेवा के नाम पर हो रही हिंसा को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने होंगे, जिससे लोग कानून को अपने हाथ में न लें। अगर किसी तरह की कोई घटना होती है तो नोडल अफसर कानून के हिसाब से कार्रवाई करे। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में हो रही घटनाओं का जिक्र किया।
इस मामले पर जानी मानी वकील इंदिरा जयसिंह ने याचिकाकर्ता की तरफ से आंकड़े पेश किए और कोर्ट को बताया कि देशभर में गोरक्षा के नाम पर 66 वारदातें हो चुकी हैं। केंद्र सरकार की तरफ से वकील ए एस जी तुषार मेहता की दलील थी कि गौ-सेवा के नाम पर हिंसा को रोकने के लिए कानून मौजूद हैं। इस पर मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा ने कहा वो जानते है कि कानून मौजूद है, लेकिन हिंसा करने वालों पर कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही? उन्होंने कहा कि ऐसा कोई कड़ी कार्रवाई हो ताकि लोग कानून को ना तोड़ें। केंद्र कहता है कि यह राज्यों का मामला है और राज्य कदम नहीं उठा रहा है। लेकिन इस हिंसा को रोकने के लिए कदम उठाना जरूरी है।
यह याचिका पिछले साल 21 अक्टूबर को दायर की गई थी। सामाजिक कार्यकर्ता तहसीन पूनावाला की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल 7 अप्रैल को सुनवाई की थी। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान गौरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा पर 6 राज्यों से जवाब मांगा था। लेकिन, 21 जुलाई को हुई पिछली सुनवाई में जवाब नहीं मिलने पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के साथ-साथ गुजरात, राजस्थान, झारखंड, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक को नोटिस जारी किया था। केंद्र सरकार ने पूरे मामले से अपना पल्ला झाड़ते हुए कहा था कि ये कानून व्यवस्था का मामला है और राज्य सरकार ऐसे मामलों से जुड़े लोगों पर कार्रवाई कर रही है।
याचिकाकर्ता तहसीन पूनावाला और दो अन्य ने याचिका में गोरक्षा के नाम पर दलितों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रही हिंसा रोकने की मांग की है। याचिका में यह मांग भी की गयी है कि ऐसी हिंसा करने वाले संगठनों पर उसी तरह पाबंदी लगनी चाहिए, जिस तरह सिमी (स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया) जैसे संगठनों पर लगी है। देश में कुछ राज्यों में गोरक्षा दलों को सरकारी मान्यता मिली हुई है, जिससे इनके हौंसले बढ़े हुए हैं। गोरक्षक दलों की सरकारी मान्यता को जल्द से जल्द खत्म किया जाए।
बीते दो-तीन सालों में गौरक्षा के नाम पर हिंसा की घटनाएं लगातार हो रही हैं। हिंसा के दौरान कई लोगों की जान भी गई है। आंकड़े बताते हैं कि 2010 से 25 जून 2017 तक गौरक्षा के नाम पर हिंसा की 63 घटनाएं हुईं और 28 लोगों की जान गयी। जान गंवाने वालों में सबसे ज्यादा अल्पसंख्यक समुदाय के लोग थे। गाय की रक्षा के नाम पर सबसे ज्यादा हत्याएं मोदी सरकार के शासन में आने के बाद हुई हैं। दादरी के मोहम्मद अखलाक,लातेहार में मजलूम अंसारी और इम्तियाज खान के साथ कई ऐसे नाम है जो गौ रक्षा के नाम पर बलि चढ़ा दिए गए है।
हाल की कुछ घटनाओँ को देखें तो गौ सेवा के नाम पर हिंसा की तस्वीर का भयावह रूप सामने आता है। 9 अक्तूबर, 2015 को उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में एक गाय को काटे जाने की अफवाहों के बाद भीड़ ने हंगामा शुरू कर दिया। 30 जुलाई, 2016 को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में गौ वध के संदेह पर एक भीड़ ने एक मुस्लिम परिवार के घर पर हमला किया गया। 16 अक्टूबर 2015 को हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में कथित तौर पर तस्करी के लिए एक गांव ने एक आदमी को फांसी पर लटका दिया। 18 मार्च 2016 को झारखंड के लातेहार जिले में पेड़ से मजलूम अंसारी और 15 वर्षीय इम्तियाज खान को पीटा और फांसी दे दी। 2 अप्रैल 2016 को हरियाणा के कुरुक्षेत्र में गौ रक्षा दल के सदस्यों की ओर से मस्तन अब्बास की हत्या कर दी गई। 26 जुलाई 2016 को मध्य प्रदेश के मंदसौर रेलवे स्टेशन पर गोमांस लेने के संदेह में दो मुस्लिम महिलाएं मार दी गईं।
Published: 06 Sep 2017, 3:44 PM IST
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Published: 06 Sep 2017, 3:44 PM IST