इनमें इथोपिया की वकील यतेनबर्श निगूज़ी और अजरबैजान की खोजी पत्रकार खदीजा शामिल हैं। सम्मान में अमेरिका के वकील रॉबर्ट ब्लॉट का भी जिक्र किया गया है। कॉलिन गोंजालविस ने इस समय केंद्र की मोदी सरकार को रोहिंग्या समेत तमाम मुद्दों पर घेर रखा है।
इन चारों का चुनाव 51 देशों के 102 नामांकन में से किया गया है। पुरस्कार वितरण समारोह इसी साल पहली दिसंबर को होगा जिसमें पुरस्कार की राशि 371,000 डॉलर तीनों विजेताओं में बराबर-बराबर बांटी जाएगी।
पुरस्कार मिलने पर गोंजाल्विस ने इसे विरोध के स्वरों की जीत बताया है। नवजीवन से बातचीत में उन्होंने कहा:
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यह पुरस्कार मुझे नहीं, बल्कि भारत की जमीन पर लोकत्रांतिक अधिकारों के लिए लड़ने वाली तमाम ताकतों को मिला है। इस समय भारत कलियुग से गुजर रहा है, बहुत ही खौफनाक समय है। ऐसे क्रिटिकल समय में इस पुरस्कार को किसी भारतीय को मिलना बहुत अहम है, क्योंकि विरोध के तमाम स्वरों को कुचला जा रहा है। गौरी लंकेश की खुलेआम हत्या कर रहे हैं और उस हत्या के समर्थन में लोग खड़े नजर आ रहे हैं, सैकड़ों मानवाधिकार कार्यकर्ता मारे जा रहे हैं। ऐसे में इस तरह के अंतर्राष्ट्रीय समर्थन से हिम्मत बंधती है और माहौल बनता है। मेरा मानना है कि भारत में हम तमाम लोगों के लिए यह सबसे मुश्किल समय है। सरकार मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खात्मे पर उतारू है।
राइट्स लाइवलिहुड पुरस्कार को अल्टरनेटिव नोबल भी कहते हैं। पुरस्कार समिति ने अपने स्तुति पत्र में लिखा है कि कॉलिन को यह पुरस्कार उनके तीन दशक से अधिक समय से भारत में सबसे हाशिए पर पड़े लोगों और संकट में फंसे नागरिकों के बुनियादी अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए जनहित याचिका को बहुत नवीन तरीके से इस्तेमाल करने और न्याय के लिए अथक प्रयास करने के लिए दिया जा रहा है।
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कॉलिन सुप्रीम कोर्ट में लंबे समय से मानवाधिकार से जुड़े मसलों की पैरवी करते रहे हैं। उन्होंने ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क (एचआरएलएन) संस्था का निर्माण किया, जिसकी देश भर में शाखाएं हैं। भोजन के अधिकार की कानूनी लड़ाई को मंजिल तक पहुंचाने में भी कॉलिन की अहम भूमिका रही। कॉलिन ने हालांकि मुंबई आईआईटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है, लेकिन वे पूरी तरह से कानूनी लड़ाई में जुनून के साथ लगे हुए हैं।
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