पचास साल पहले 20 जुलाई, 1969 को इंसान ने चांद पर पहला कदम रखा था। नील आर्मस्ट्रांग और बज एल्ड्रिन चांद पर पांव रखने वाले पहले इंसान बने। आज हम आपको अपोलो-11 के यात्रियों के चांद पर उतरने से जुड़ी खास बातों को बताएंगे।
21 दिसंबर, 1968 को लॉन्च हुए अपोलो-8 ने 24 दिसंबर को सफलतापूर्वक चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया था। यह पहला मानव युक्त यान था। वहीं अपोलो-10 के साथ लूनर लैंडिंग मॉड्यूल ले जाया गया था। इस यान को 18 मई, 1969 को लॉन्च किया गया था।
पचास साल पहले अपोलो 11 मिशन के अंतरिक्षयात्री नील आर्मस्ट्रांग और बज एल्ड्रिन ने जब चंद्रमा की सतह पर कदम रखा, तो टेलीविजन पर लाइव प्रसारण देख रहे 60 करोड़ लोग इसके गवाह बने थे। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी ने सार्वजनिक तौर पर अपने जोशीले भाषणों में कहा था कि मून मिशन की कामयाबी हमारी ऊर्जा और कौशल की उत्कृष्टता का प्रमाण है। हालांकि अंतरिक्ष में ज्यादा रुचि नहीं थी।
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मून मिशन के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों के लिए स्पेसशूट बनाने का ठेका अंत:वस्त्र बनाने वाली कंपनी ‘प्लेटेक्स’को दिया गया था। चंद्रमा के बिना हवा के और अत्यधिक तापमान वाली सतह के मुताबिक स्पेसशूट बनाने का निर्देश दिया गया था। लुनार मॉड्यूल के छोटे से दायरे में सावधानी सबसे अहम थी। इस दौरान आर्मस्ट्रांग के बैकपैक से इंजन आर्मिंग स्विच टूट गया, जो इंजन को स्टार्ट करने के लिए जरूरी था। मिशन कंट्रोल के पास इसका त्वरित उपाय नहीं था। लेकिन एस्ट्रोनॉट ऐसी किसी समस्या का निदान करने में एक्सपर्ट होते हैं, लिहाजा एल्ड्रिन ने स्पेसशूट के पॉकेट से नोक वाला पेन निकाला और सर्किट ब्रेकर स्विच की जगह इसका इस्तेमाल किया। उन्होंने चंद्रमा की वापसी का जिक्र करते हुए इसकी जानकारी अपनी किताब में दी थी।
चंद्रमा से वापसी के बाद नासा के वैज्ञानिकों ने लुनार जर्म्स के संभावित डर की वजह से विशेष सावधानी बरती। वापसी के तीन हफ्तों तक अपोलो क्रू को मोबाइल क्वारंटीन यूनिट में रखा गया। पहले उन्हें यूएसएस हॉर्नेट एयरक्राफ्ट कैरियर में और फिर पर्ल हार्बर पर रखा गया।
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