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फुटबॉल विश्व कप : जोश, जुनून और पैसे का धमाल, अकेले जीप पर सवार होकर कतर निकल पड़े हैं भारतीय दर्शक

‘धरती के सबसे बड़े शो’ का 2022 कतर संस्करण अब करीब है। तीन सप्ताह से भी कम वक्त बचा है। 21 नवंबर को शुरू होना है। पहले चरण में बिकने वाले 1.8 मिलियन टिकटों में से 23,500 से ज्यादा टिकट खरीदने वाले उत्साही भारतीय हैं।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

हर चार साल में एक बार फुटबॉल विश्वकप का सीजन आता था। फुटबॉल के भारतीय दीवानों- खासतौर से बंगाल, केरल, गोवा या देश के अन्य हिस्सों के फुटबॉल प्रेमियों में अपने प्रिय खेल के ‘देवों’ को देखने के लिए बुखार-सा चढ़ जाता। हल्की-फुल्की रुचि रखने वाले भी चर्चा में तो मशगूल ही रहते। यह सब खासा मनोरंजक होता। भला हो केबल टीवी का कि अब यूरोपीय लीग भारतीय फुटबॉल प्रेमियों के लिए भी बारहो महीने उपलब्ध है और उनकी भूख शांत होती रहती है। लेकिन अब भी कुछ है जिसकी कसर बाकी है। एक अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट के प्रति हमारे जुनून में कहीं तो कुछ कमी है जो भारतीय पक्ष को कमजोर करती है और यह अनायास नहीं है कि हमारी पुरुष टीम फीफा (विश्व फुटबॉल का प्रबंधन करने वाली संस्था) रैंकिंग में 106वें स्थान पर है।

यह तब ज्यादा समझ में आता है जब आप उस पायदान से यह सब देखते है जहां हम आज विश्व फुटबॉल रैंकिंग में खड़े हैं, जहां से हमें अपनी जमीन दिखने लगती है और जहां हम अपने लाखों जुनूनी खेल प्रेमियों के साथ खुद को एक संभावित बाजार के रूप में खड़ा पाते हैं और जिसका हिस्सा बनने को आज हर कोई आतुर है। यह बताता है कि भारत हाल ही में संपन्न अंडर-17 महिला विश्वकप का मेजबान देश क्यों है? यह सच है: प्रशंसक (फैन्स) ही तो हैं जो अच्छे उपभोक्ता का संसार रचते हैं, यानी  विश्व कप की मार्केटिंग करने वाले पूरे परिस्थितिकी तंत्र, यानी प्रसारक (ब्राडकास्टर), विज्ञापनदाता, खेल सामान निर्माता, व्यापारी, स्पोर्ट्स टूरिज्म कंपनियों के लिए अपार संभावनाओं का आकर्षण उपलब्ध कराते हैं।

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‘धरती के सबसे बड़े शो’ का 2022 कतर संस्करण अब करीब है। तीन सप्ताह से भी कम वक्त बचा है। 21 नवंबर को शुरू होना है। msn.com की रिपोर्ट बताती है कि पहले चरण में बिकने वाले 1.8 मिलियन टिकटों में से 23,500 से ज्यादा टिकट खरीदने वाले उत्साही भारतीय हैं। इन आंकड़ों के साथ टिकट खरीदने वालों में भारतीय आठवें स्थान पर रहे। चार साल पहले रूस में हुए इस शो में 18,000 भारतीय मौजूद थे और गैर-प्रतिस्पर्धी देशों में यह अमेरिका और चीन के बाद तीसरी सबसे बड़ी संख्या थी। 

स्वाभाविक है कि रिपोर्ट तैयार होने के बाद भी काफी भारतीयों ने टिकट खरीदे होंगे। यह टिकटों की बिक्री और फुटबॉल पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए अपनाई गई उस चतुराई भरी रणनीति के कारण भी हुआ होगा जो कहती है कि नवंबर और दिसंबर के दौरान विश्वकप टिकट के बिना कतर में प्रवेश संभव नहीं होगा। 

कहना न होगा कि महज 28 लाख लोगों वाले देश कतर में लगभग 8,00,000 भारतीय रहते हैं जिनमें से अधिसंख्य मजदूर हैं। ये भारतीय स्वयं के लिए तो टिकट के हकदार हैं ही, उन्हें अपेक्षाकृत कम दरों पर मैच देखने के लिए बतौर मेहमान सीमित संख्या में अनिवासियों को आमंत्रित करने की भी अनुमति है।

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भारत के कई शहर दोहा से महज 4-5 घंटे उड़ान की दूरी पर हैं। यूएई, सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देश हर दिन सौ से अधिक 'विश्व कप शटल' उड़ानें चलाने जा रहे हैं ताकि लोग आसानी से मैच तो देखकर उसी दिन वापसी भी कर सकें। ऐसा इसलिए क्योंकि सीमित आवास सुविधा वाला कतर कोई ऐसा बुनियादी निर्माण नहीं करना चाहेगा जो इस  खेल-मेला के बाद बेमानी हो जाए। उसका ध्यान इसके बजाय दर्शकों को उच्च श्रेणी की पर्यटन सुविधाएं देने पर है जो मैच के लिए महंगे टिकट खरीदेंगे और शानदार नौकाओं (यॉट) में रहेंगे।

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पांच साल के बच्चे की मां नाज़़ी नौशी फाइनल देखने केरल से अकेले कतर जा रही हैैं

यह उन मध्यवर्गीय भारतीयों को वहां रुकने को मजबूर नहीं करेगा जिनके लिए यह संभव नहीं है। केरल से पांच बच्चों की मां नाजी नौशी 18 दिसंबर को फाइनल देखने के लिए अकेले कतर जा रही हैं। नौशी पहले अपनी एसयूवी से मुंबई जाएंगी, वहां से एसयूवी के साथ ही कतर की उड़ान भरेंगी और ओमान पहुंचने के बाद एसयूवी से ही आगे का रास्ता तय करेंगी। नौशी के लिए यह सब अपने दो प्यार एक साथ साधने जैसा है, जब वह फुटबॉल की दीवानगी और ड्राइविंग के जुनून के बीच संतुलन बना रही होंगी। वैसे, ज्यादातर लोग दोहा के लिए उड़ान लेने वाले हैं।

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कोलकाता के उद्यमी अमित मुखर्जी और उनके तीन कॉलेज दोस्त कहते हैं: “हम भाग्यशाली रहे कि फीफा पोर्टल पर ही टिकट मिल गया। दो क्वार्टर फाइनल और दोनों सेमी फाइनल (2,200 डॉलर या 1.8 लाख रुपये, 82 रुपये प्रति डॉलर ) के टिकट हमें मिल गए। अगर फीफा मान्यता वाले एजेंटों के चक्कर में पड़ते तो शायद कई गुना ज्यादा कीमत चुकानी होती।” उत्साह से लबरेज अमित कहते हैं: “हम तो भाग्यशाली रहे कि कतर में हमारा एक हफ्ता चार-पांच लाख में निपट जाएगा। इतने महान खिलाड़ियों का खेल देखने के लिए यह कुछ भी नहीं है।”

कतर विश्व कप के लिए भारत में टेलीविजन दर्शकों की संख्या 300 मिलियन पार कर जाने की उम्मीद है। 1982 में श्वेत-श्याम टेलीविजन सेट्स के साथ भारतीय घरों में प्रवेश करने के बाद से यह अब तक की सबसे बड़ी संख्या होगी। तब से अब तक बहुत कुछ बदल चुका है और भारतीय खेल प्रेमी अपनी मौजूदगी से ऐसे बड़े-बड़े खेल इवेंट का गवाह बनते रहे हैं। टेनिस का सबसे अधिक मांग वाला विम्बलडन हो, इंगलिश प्रीमियर लीग, चैम्पियंस लीग या फिर बिना किसी शक-शुबहे के विश्व कप, कुछ भी उनसे दूर नहीं है। कई कॉरपोरेट घराने तो अपने कर्मचारियों को परफॉरमेंस से जुड़े प्रोत्साहन के तौर पर मैच के टिकट की पेशकश करते है तो कुछ अन्य खरीदारों को लकी ड्रॉ में टिकट या सारे खर्च के साथ मैच देखने के पैकेज ऑफर करने से पीछे नहीं रहते।

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अचरज की बात नहीं कि कतर में रहने वाले भारतीयों के बीच सूचनाएं साझा करने के लिए सैकड़ों वाट्सएप ग्रुप भी बन चुके हैं। टाटा स्टील में एक्जीक्यूटिव 37 वर्षीय देबज्योति मित्रा बीस सदस्यों वाले ऐसे ही एक समूह के एडमिन हैं। बताते हैं, “हम फेसबुक पर जुड़े थे और इस ग्रुप का मकसद अनुभव और सूचनाएं आपस में साझा करना था ताकि हम एक बेहतर बजट के साथ यात्रा तो करें ही कुछ ऐसा अनुभव बटोर सकें जो जीवन भर साथ रहे।”

एक स्पोर्ट्स ट्रैवल कंपनी और कतर 2022 के टिकटों की बिक्री के लिए भारत में मैच हॉस्पिटैलिटी एजेंट के तौर पर फीफा-मान्यता प्राप्त फैनेटिक स्पोर्ट्स इस खेल की बड़ी खिलाड़ी है। इसके संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी राघव गुप्ता ने हाल ही में एक साक्षात्कार में सिर्फ भारत से 200 करोड़ के बिजनेस का दावा किया जो पूरे विश्व कप के कुल आतिथ्य राजस्व का लगभग 6 प्रतिशत है। 

‘मनीकंट्रोल’ से बातचीत में राघव गुप्ता कहते हैं: “हम देख रहे हैं कि ग्राहकों से नाता जोड़ने के इच्छुक छोटी पूंजी धारकों से लेकर बड़े कारपोरेट्स या बहुराष्ट्रीय कंपनियों तक की नजर इस पर है और वे बाजार के हर स्पेक्ट्रम में मजबूत मांग देख रहे हैं। पश्चिम में तो कंपनियां खेल आयोजनों के लिए यात्राएं करती ही रही हैं, अब यह भारत में भी तेजी से दिखाई दे रहा है। खेलों के लिए कॉरपोरेट आतिथ्य भारत में तेजी से बढ़ रहा है।”  यात्रा, स्टेडियम और आवास सहित उनकी कंपनी 950 डॉलर (लगभग 78,000 रुपये) से शुरू कर फाइनल मैच के लिए 35,000 डॉलर (28.7) के ऑफर्स के साथ सामने आयी है। 

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नवंबर के दूसरे हफ्ते से दोहा के लिए हवाई यातायात पर जबरदस्त दूरगामी असर दिख रहा है। कतर एयरवेज, अमीरात और एतिहाद सभी की मांग में जबरदस्त तेजी है। भारत की आधिकारिक एयरलाइंस एयर इंडिया भी पीछे नहीं है और हर हफ्ते 20 अतिरिक्त उड़ानों के साथ 30 अक्तूबर से मुंबई, हैदराबाद और चेन्नई से दोहा के लिए अपने विशेष पैकेज के साथ मैदान में है। इसमें मुंबई से सप्ताह में 13, हैदराबाद से सप्ताह में चार और चेन्नई से सप्ताह में तीन उड़ानें शामिल होंगी। चेन्नई-दोहा सेवा 10 नवंबर से और हैदराबाद-दोहा सेवा 11 नवंबर से शुरू होगी। नई दिल्ली से दोहा के लिए मौजूदा दैनिक उड़ानों के अलावा मुंबई-दोहा उड़ानें 30 अक्तूबर से दो चरणों में शुरू की जाएंगी।  

मार्च के अंत की बात है जब भारतीय क्रिकेट टीम की मौजूदा प्रायोजक एडटेक कंपनी बायजू ने फीफा विश्व कप के आधिकारिक भागीदारों में शामिल होने के लिए हंगामेदार घोषणा की। माना जाता है कि बायजू रवींद्रन के स्वामित्व वाली इस कंपनी ने अधिकार हासिल करने के लिए 30-40 मिलियन डॉलर (247-330 करोड़ रुपये) खर्च किए हैं। हालांकि ऐसा करने वाली यह पहली भारतीय कंपनी नहीं है, जैसा कुछ लोग दावा कर रहे हैं। अब टूट चुकी सत्यम कम्प्यूटर सर्विसेज 2020 और 2014 के विश्व कप में क्रमश: दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील में आधिकारिक आईटी सेवा प्रदाता कंपनी थी।

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हालांकि बायजू भारतीय प्रवासियों के बीच अपनी आक्रामक मौजूदगी के लिए बहुत मजबूती से भिड़ी हुई है लेकिन इंडस्ट्री पर पैनी नजर रखने वाले कुछ सवाल भी उठा रहे हैं। ऐसा इसलिए भी कि कंपनी भारतीय क्रिकेट को पहले से ही प्रायोजित करती रही है और यकीनन यह खेल की दुनिया में सबसे ज्यादा मांग वाला ब्रांड भी है। रवींद्रन खुद भी मलयाली हैं और इंडियन सुपरलीग में केरल ब्लास्टर्स फुटबाल टीम को सपोर्ट करते हैं।  

प्रायोजन की दुनिया यहीं तक नहीं है। कई और भारतीय व्यवसायी भी इस मैदान के अच्छे खिलाड़ी हैं। इस माह की शुरुआत में ही अपनी ‘मस्का फ़ॉर मेस्सी’ कैचलाइन के साथ डेयरी उत्पाद की दुनिया का बड़ा नाम ‘अमूल’ अर्जेंटीना टीम के क्षेत्रीय प्रायोजक की डील वाली घोषणा के साथ सामने आई थी। उम्मीद की जानी चाहिए कि तारीख करीब आने के साथ ही ऐसी और भी घोषणाएं सामने आएंगी। इस बार इस खेल में 18 से 25 आयु वर्ग वाले युवाओं की बड़ी तादाद का जुड़ना नया उत्साह दिखा रहा है।

 मायराड कम्युनिकेशन के सह-संस्थापक और योरनेस्ट कैपिटल एडवाइजर्स के मोहित हीरा भी मानते हैं कि देश के शहरी युवाओं के क्रिकेट प्रेम में पहले की अपेक्षा एक स्पष्ट बदलाव आया है: “दर्शक के नजरिये से देखें तो जहां तक नजर जाती है क्रिकेट पुराना सा हो चला दिखता है। दूसरी ओर, फुटबॉल स्कूली बच्चों और युवाओं का नया प्यार बनकर उभरा है और उन्हें समान रूप से आकर्षित कर रहा है। शायद इसलिए कि फुटबॉल मैच के दौरान उन्हें अपने इर्दगिर्द ज़्यादा दोस्ताना और उत्सवी माहौल मिलता है। ऐसे में आश्वस्त हुआ जा सकता है कि वह दिन दूर नहीं जब भारत विश्वपटल पर फुटबॉल पर भी हावी दिखाई देगा।”

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हाल के वर्षों में भारत में खेल पर्यटन एक आकर्षक व्यवसाय बनकर उभरा है। लक्जरी और खेल का पैकेज बनाकर पेश करने वाली फर्म अभी बहुत दिन नहीं हुए जब ‘ड्रीम सेट गो’ नाम से अस्तित्व में आयी थी। इसकी स्थापना 2019 में भारत के पहले फंतासी स्पोर्ट्स यूनिकॉर्न ड्रीम-11 ने की थी। दुनिया भर में भारतीय टीम की गतिविधियों पर बारीक नजर रखने वाले क्रिकेट फैन्स के संगठन ‘भारत आर्मी’ ने भी 2015 में भारत आर्मी ट्रैवल एंड टूर्स नामक खुद की स्पोर्ट्स टूरिज़्म विंग का गठन किया था।

यानी इस सब में एक नई प्रतिस्पर्धा भी दिखाई दी है। नए जमाने के कुछ व्यवसाय इसे अपने पुराने समकक्षों की कीमत पर भी बढ़ावा देने को तैयार दिखते हैं। बहुत पहले की बात नहीं, जब क्रिकेट या फुटबॉल विश्व कप या ऐसे अन्य बड़े आयोजनों से पहले टीवी सेट्स की बिक्री में जबरदस्त उछाल आता था। इस बार ऐसा नहीं है। स्मार्ट फोन और लैपटॉप जैसे पर्सनल गैजेट्स पर गेम की लाइव स्ट्रीमिंग की सुपर क्लास सुविधा के साथ, टीवी की बिक्री प्रभावित होने की संभावना बढ़ गई है। रिलायंस समूह की खेल शाखा, वायकॉम 18 स्पोर्ट्स की घोषणा कि वह अपने जीयो सिनेमा चैनल के साथ-साथ आईओएस और एंड्रायड फोन पर भी सभी मैच मुफ्त लाइव स्ट्रीमिंग करेगा, इस संभावना को और ज्यादा बल मिल रहा है।

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हालांकि हुंडई इलेक्ट्रॉनिक्स के वाइस प्रेसीडेंट (सेल्स) नबेंदु भट्टाचार्य देखने के पैटर्न में आए इस बदलाव के बावजूद टीवी सेट्स की बिक्री में तेजी के प्रति आश्वस्त हैं: “यह सही है कि देखने की मौजूदा आदतों पर पर्सनल गैजेट्स हावी हैं लेकिन तारीख करीब आने तक बिक्री में तेजी आनी ही है।” भारत हर साल अनुमानत: 13.5 मिलियन एलईडी टेलीविजन सेट बेचता है। भट्टाचार्य कहते हैं कि ऐसे ग्राहकों की बड़ी संख्या है जो दोस्तों और परिवार के साथ बड़े पर्दे पर ही इन मैचों को देखने का अनुभव और रोमांच दिलों में संजोना चहते हैं। यदि अनुमानित टीवी दर्शकों की संख्या 300 मिलियन को संकेतक माना जाय तो भट्टाचार्य की बात बहुत गलत नहीं लगती है।

वैसे भी, भारतीय दर्शक कतर विश्व कप खेलों को कहां और कैसे देखता है, लाखों प्रशंसकों और इतने विशाल बाजार के बावजूद एक मजबूत भारतीय टीम की मैदान में अनुपस्थित फुटबाल फैन्स पर चढ़े इस बुखार पर कुछ तो असर डालने जा ही रही है। यहां फुटबाल लेखक और ‘बॉक्स टु बॉक्स’ किताब से चर्चित जयदीप बसु की राय मायने रखती है। जयदीप कहते हैं: कोई शॉर्टकट काम नहीं करने वाला- हमें सबसे पहले एशिया में शीर्ष-10 में शामिल होने के लिए पर्याप्त कोशिश ही नहीं करनी है, पर्याप्त अच्छा होना होगा। इसके बाद ही हम विश्व कप फाइनल में खेलने का सपना देखना शुरू कर सकते हैं। 

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