विरोध और विवादों से फीफा का पुराना नाता भले हो लेकिन बाइसवें फीफा विश्वकप फुटबाल 2022 की मेजबानी को लेकर यह अब तक से सबसे बड़े विवाद का गवाह बनने जा रहा है। बहुप्रतीक्षित तमाशा शुरू होने से कुछ ही दिन पहले दानिश टेलीविजन का लाइव प्रसारण सुरक्षा गार्डों ने बड़े बेरुखी से बाधित किया और कतर को माफी मांगने के लिए कहा गया।
लंदन स्थित एनजीओ इक्वीडेम ने मेजबान देश में श्रम और मनवाधिकारों के उलंघन का हवाला देते हुए 75 पन्नों की एक रिपोर्ट जारी की। डच टीम ने घोषणा की कि वह प्रवासी श्रमिकों को अभ्यास देखने के लिए आमंत्रित करेगी और फीफा के पूर्व अध्यक्ष सेप ब्लैटर कहते दिखे कि कतर जैसे ‘छोटे देश’ को मेजबानी देना ही गलत था। ब्लैटर ने यहां तक कह दिया कि फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी और फुटबॉल दिग्गज मिशेल प्लाटिनी ने 2010 में यह निर्णय लेने के लिए मजबूर किया था।
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कल्पना ही की जा सकती है कि जब महज 30 लाख लोगों की आबादी वाला यह देश 10 लाख से ज्यादा प्रशंसकों, टीम के सदस्यों और मीडिया के बड़े जमावड़े को इस असाधारण अनुभव के लिए अपनी धरती पर देख रहा होगा, यह सब किसी भूस्खलन जैसा नहीं होगा? बीते एक दशक में कतर ने धरती का सबसे बड़ा शो कहे जाने वाले इस अवसर के लिए आठ स्टेडियम, कई हवाई अड्डे, अनेक होटल और तमाम जरूरी बुनियादी ढांचा खड़ा करने का काम किया है। यहां तक कि घास भी आयात की है।
समय सीमा पर काम पूरा करने के लिए अफ्रीका, दक्षिण तथा दक्षिण पूर्व एशिया के हजारों श्रमिकों को काम पर जोत दिया गया। कई स्वतंत्र रिपोर्ट बताती हैं कि इस दौरान अकेले भारत, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश के 6,500 श्रमिकों की कतर में मौत हुई। अफ्रीका और फिलिपींस के श्रमिकों की बात भी की जाय तो यह आंकड़ा कहीं और पहुंच जाएगा।
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हालांकि कतर ने ऐसे किसी भी आरोप से इनकार किया है और काम करने की स्थिति में सुधार लाने के लिए कदम उठाए लेकिन नाराज कामगारों को गिरफ़्तारी, श्रमिकों का पैसा हड़पने, धोखाधड़ी, शोषण और अमनवीय हालात में काम के बेहद लम्बे घंटों के आरोप लगते रहे। विडम्बना है कि न तो भारत, न ही किसी अन्य दक्षिण एशियायी देश ने इसका विरोध किया। लेकिन कई यूरोपियन टीमों ने मानवाधिकारों के उलंघन को लेकर अपना झंडा लगातार बुलंद रखा है।
2014 में जर्मनी के विश्वकप विजेता कप्तान और 2024 यूरो कप के लिए जर्मनी की आयोजन समिति के प्रमुख फिलिप लाहम ने तल्ख शब्दों में कहा- ‘इस कप का कतर से लेना देना नहीं है’। दिलचस्प यह है कि अंतिम क्षण के इस विलाप की जर्मनी में बड़ी प्रतिध्वनि सुनाई दी, क्योंकि जुएरगेन क्लॉप भी अब मुखर होकर कह रहे हैं कि सर्दियों में असामान्य रूप से होने वाली यह घटना यूरोपीय फुटबाल लीग के परिस्थितिकी तंत्र के समाने मुश्किलें पैदा करने जा रही है।
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इतना ही नहीं, पिछले हफ्ते एक चौंकाने वाले घटनाक्रम में लिवरपूल के जर्मन कोच क्लॉप ने तो रूस और कतर को एक ही बार में दो विश्वकप देने से लेकर चोटिल खिलाड़ियों की मुश्किलों और रसद तबाही तक कितना कुछ कह दिया। जर्मनी में बीते कुछ हफ़्तों में शत्रुतापूर्ण हमले तेज हो गए हैं।
बोरूसिया मोएनचेंग्लादबाक के समर्थकों ने एक विशाल निशान पोस्टर का प्रदर्शन किया जिस पर लिखा था “फीफा माफिया”। डार्टमुंड में एक डिस्प्ले बोर्ड पर लिखा दिखा: ‘कतर 2022 का बहिष्कार करें’। और विश्व प्रसिद्ध हार्था बर्लिन (फुटबाल क्लब) में प्रशंसकों ने उन प्रवासी श्रमिकों की दुर्दशा पर ध्यान केंद्रित किया, जिन्हें कतर ने अपने स्टेडियम बनाने में लगाया था (हालांकि कतर हताहतों की संख्या पर सहमत नहीं है): “5760 मिनट की फुटबाल के लिए 15,000 मौतें। तुम्हें शर्म आनी चाहिए!”
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आठ स्टेडियम निर्माण में समय की बाध्यता के नाम पर मानवाधिकारों का हनन हो या एलजीबीटीक्यू समुदाय के बारे में इस्लामिक देशों की असहिष्णुता- कुछ भी नया नहीं है। लेकिन इस मोड़ पर आने के बाद प्रतिरोध का क्या मतलब जब टीमों ने इस छोटे ही सही पेट्रो देश की यात्रा भी शुरू कर दी है। जहां कम से कम 1.2 लाख फुटबाल पर्यटक और मीडिया टीमों के आने पर लॉजिस्टिक और परिवहन सेवा पहले ही दबाव में ध्वस्त होने के संकेत देने लगी है।
‘नाऊ इज आल’ (वर्तमान ही सबकुछ है) कतर विश्व कप की थीम है। संभवत: नई जमीन तोड़ते हुए यह एक नई शुरुआत करने की तलाश भी है जब एक अरब, किसी इस्लामिक देश द्वारा सर्दियों में आयोजित किया जाने वाला कोई पहला आयोजन होने जा रहा है।
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कभी दोहा में रहे और हाल ही में प्रकाशित ‘कतर 2022- द टाइनी नेशन दैट ड्रीम्ड बिग’ के लेखक एनडी प्रशांत का मानना है कि कतर विरोधी प्रदर्शनों की मौजूदा लहर पश्चिम की ओर से एक और विघटनकारी घटना का प्रयास है और हमें बस शोर के शांत होने तक इंतजार करना है। उनका मानना है कि: “विश्वकप शुरू होने के साथ ही सबकुछ शांत होना चाहिए। सिर्फ पश्चिम ही है जो मानवाधिकारों के मुद्दे पर अभी तक शिकायत करता आ रहा है। हां, सही है कि आपको बदलाव के लिए दबाव बनाने की जरूरत है लेकिन यह फुटबाल की कीमत पर नहीं होना चाहिए। लोग वहां फुटबाल देखने आ रहे हैं, इसे ही सबके केंद्र में होना चाहिए।”
पश्चिमी दुनिया को यह समझने की जरूरत है कि खेल को अपनी सीमाओं से परे जाना ही होगा। कतर ने वास्तव में वह हासिल किया है जो मध्यपूर्व का कोई अन्य देश नहीं कर सका और वह भी तब जब उसने बहुत देर से शुरुआत की।” फीफा विश्वकप के पिछले कई विवादों को देखते हुए वे स्वीकार करते हैं कि इसमें कोई शक नहीं कि कतर निश्चित रूप से वित्तीय भ्रष्टाचार के गम्भीर आरोपों का सामना कर रहा है और यह उन सबसे बहुत ऊपर है।’
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थोड़ा पीछे नजर डालें:
1934 में जब बेनिटो मुसोलिनी की इटली को इस आयोजन का मौका मिला, काफी हंगामा हुआ था क्योंकि लोगों की भावनाएं आहत हुई थीं। चार साल पहले 2018 में, ब्लादीमीर पुतिन के नेतृत्व वाले रूस ने विश्व कप की मेजबानी की थी- और इंग्लैंड व आइसलैंड ने इसका कूटनीतिक बहिष्कार किया था।
1978 में अर्जेंटीना विश्वकप टूर्नामेंट बहिष्कार के लिए जोर-शोर से आवाजें उठीं थी जब देश में सैन्य शासन की गिरफ़्त में था। अभियान का नेतृत्व पेरिस में रह रहे अर्जेंटीना के निर्वासितों ने किया था।फ्रांसीसी अखबार ले मोंडे ने अंततः एक संपादकीय तर्क के साथ अपने स्टैंड को ही आधिकारिक बना दिया कि राष्ट्रीय टीम को टूर्नामेंट में शामिल नहीं होना चाहिए, जबकि बहिष्कार की आवाज उठाने के लिए समितियां स्पेन और नीदरलैंड में बनी थीं। हालांकि खिलाड़ी, जिनके लिए ‘विश्वकप फाइनल जीवन भर का हासिल’ जैसी उपलब्धि का अवसर होता है, तब के प्रतिष्ठित फ्रांसीसी स्टार खिलाड़ी पलाटिनी की उस भावना के साथ नहीं थे कि: “अगर मुझे अवसर मिला तो मैं विश्व कप में गोते लगाना चाहूंगा।”
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इस बार भी, फुटबालर समुदाय ने वास्तव में कुछ नहीं कहा है: हालांकि इंग्लैंड के कोच गैरेथ साउथगेट की इस बात का बड़ा मतलब है कि राजनीति या लोकतंत्र नहीं, उनकी प्रथमिकता हमेशा फुटबाल ही रहेगी।
जैसा कि मैं देख रहा हूं, फीफा विश्वकप 2022 वैश्विक फुटबाल के सबसे रहस्यमय दशक की परिणति है। शासी निकाय ने भले ही वर्षों पहले कतर को किसी भी तरह के भ्रष्टाचार के आरोपों से बरी कर दिया हो, लेकिन उसकी क्लीन चिट की गिनती फीफा समिति के 22 सदस्यों के मुकाबले बहुत छोटी है, जिन्होंने 12 साल पहले उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन पर मतदान किया था (दो अन्य अधिकारियों को एक अख़बार में छपे आरोप के बाद पहले ही निलम्बित कर दिया गया था, कि इस जोड़ी ने कथित रूप से वोट के बदले नोट चाहे थे)। इसके बाद से ज्यादातर पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, उन पर प्रतिबंध लगा या अभियोग चला।
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अतीत हमेशा कतर को डराता रहेगा लेकिन टूर्नामेंट को सफलतापूर्वक निकाल ले जाना उसे एक प्रमुख सॉफ्ट पावर के रूप में स्थापित भी कर देगा, इसमें शक नहीं। कतर के दांव स्वाभाविक रूप से बहुत ऊंचाई पर हैं। कतर, सऊदी अरब और यूएई जैसे तेल समृद्ध अरब देश वैश्विक फुटबाल में अपनी जैसी छाप छोड़ रहे हैं, यूरोपीय फुटबाल अभिजात्य के लिए यह लगभग असंभव होगा कि उन्हें दरकिनार करने की सोच भी सके।
बीते पंद्रह वर्षों में क्लब फुटबाल की दुनिया में दो सबसे बड़े अधिग्रहण 2008 में आबू धाबी यूनाइटेड ग्रुप (मैनचेस्टर सिटी) और 2011 में कतर स्पोर्ट्स इन्वेस्टमेंट्स (पेरिस सेंट जर्मेन) की जेब में गए और यह इनकी अथाह क्षमता और दोनों क्लबों के कद में आमूल बदलाव का संकेतक भी है। हालांकि यूरोपीय फुटबाल का अंतिम पड़ाव चैम्पियंस लीग अब भी उनसे दूर है।
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सऊदी अरब, जिसका मानवाधिकार ट्रैक रिकार्ड मुखर पत्रकार जमाल खाशोगी की हत्या के बाद रसातल में चला गया था, वह भी आज खेलों पर भरपूर लाभ उठाने की कोशिश में है। कहना न होगा कि सऊदी-समर्थित एलआईवी गोल्फ सीरिज शीर्ष सितारों को पहले ही लुभा रही है, वह अंतरराष्ट्रीय गोल्फ बिरादरी के बीच सेंधमारी की जुगत में है, वार्षिक सऊदी कप दुनिया का सबसे अमीर घुड़दौड़ पे डे बन चुका है और फार्मूला वन से तो रियाद झंडे गाड़ ही चुका है।
इस साल की शुरुआत में उन्होंने फुटबाल के मैदान में पहला कदम रखा जब सऊदी वित्त-पोषित सार्वजनिक निवेश कोष (पीआईएफ) ने न्यूकैसल यूनाइटेड जैसी बदशाहत वाले साम्राज्य में मेगा स्टेक हासिल कर लिया। इसके अलावा अमीरात एयरवेज, ईथाद और कतर एयरवेज के साथ विश्वकप फुटबाल में विमानन उद्योग की गहरी पैठ है ही जो क्रमश: आर्सेनल, रियल मैड्रिड, मैनचेस्टर सिटी और बार्सिलोना के साथ मजबूत तार का संकेतक है।
इस तरह क्लब फुटबाल की नई विश्व व्यवस्था, जो खेल के अर्थशास्त्र का पहिया गतिमान रखती है, अरब मालिकों पर बहुत अधिक निर्भर है। कतर, जिसने सहस्त्राब्दी के मोड़ पर प्रमुख अंतरराष्ट्रीय टेनिस, गोल्फ और एथलेटिक्स आयोजनों की मेजबानी के तौर पर पहला कदम बढ़ाया था, अब फुटबाल के इस विशाल तमाशे की मेजबानी करके बड़ी छलांग लगाने को तैयार है।
जनता की याददाश्त वैसे भी बहुत छोटी होती है। मतलब विश्व कप का एक सफल आयोजन - और कतर सब कुछ उलट सकता है!
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