ऑलंपिक में तीन बार गोल्ड मेडलिस्ट और दुनिया के महान हॉकी खिलाड़ी ऑलपिंयन बलबीर सिंह सीनियर का 25 मई की सुबह 96 साल की उम्र में निधन हो गया। वह मोहाली के एक अस्पताल में भर्ती थे। बलबीर सिंह सीनियर लगभग एक साल से दिल की बीमारियों से जूझ रहे थे। वो अक्सर कहा करते थे कि, "मैंने प्रतिद्वंदी टीमों पर सैकड़ों गोल स्कोर किए हैं पर अब मौत की बारी है, जब चाहे मुझ पर गोल दाग सकती है। बलबीर सिंह सीनियर का जन्म उनके नौनिहाल गांव हरीपुर खालसा, जिला मोगा में 1924 में हुआ था। मोगा के देव समाज हाई स्कूल से प्राथमिक शिक्षा हासिल करने के बाद उन्होंने डीएस कॉलेज मोगा, लाहौर के सिख नेशनल कॉलेज और खालसा कॉलेज, अमृतसर से आगे की पढ़ाई की।
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बलबीर सिंह के पिता चाहते थे कि वो उच्च सरकारी ओहदा हासिल करें लेकिन इसके उलट उनका ज्यादातर समय मैदान में हॉकी खेलने में निकल जाता था। हॉकी उनका जुनून था। घरवाले निरंतर इसका विरोध करते रहे लेकिन उनका उत्साह बरकरार रहा। यहां तक की वह औपचारिक शिक्षा में कुछ बार फेल भी हुए। प्रशिक्षक हरबेल सिंह, बलबीर सिंह के पहले हॉकी कोच थे। उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर पंजाब यूनिवर्सिटी और पंजाब पुलिस की नुमाइंदगी की। राष्ट्रीय- अंतर्राष्ट्रीय गलियारों में बलबीर सिंह का नाम खेल की दुनिया में बेहद अदब से लिया जाता था। हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के बाद बलवीर सिंह दूसरे ऐसे खिलाड़ी थे, जिन्हें बतौर खिलाड़ी, कप्तान और उपकप्तान ओलंपिक हॉकी में 3 गोल्ड मेडल हासिल करने का शानदार मौका मिला। उन्हें हिंदुस्तान का दूसरा ध्यानचंद भी कहा जाता था।
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उनका समूचा खेल करियर विजय से भरा हुआ है। बलबीर सिंह सीनियर का तखल्लुस उन्हें मशहूर कॉमेंटेटर जसदेव सिंह ने दिया था। 1958 में टोक्यो में हुईं एशियन खेलों में कप्तान बलबीर सिंह की कप्तानी में संसारपुर के बलबीर सिंह कुलार टीम के दस्ते में शामिल थे। कॉमेंटेटर जसदेव सिंह की ओर से बलबीर सिंह दोसांझ को सीनियर और दूसरे बलबीर सिंह कुलार को जूनियर का नाम दिया गया। ताकि भ्रम न रहे। पंजाब में उन्हें खेल-जगत 'हॉकी देवता' भी कहता है। जिस भी नवोदित हॉकी खिलाड़ी पर उन्होंने हाथ रखा वह स्टार खिलाड़ी बन गया। पंजाब में 'बलबीर' नाम के बेशुमार हॉकी खिलाड़ी हुए हैं। दिलचस्प किस्सा है कि एक बार दिल्ली के नेहरू राष्ट्रीय क्बल में अलग-अलग टीमों से नौ 'बलबीर' हॉकी खेलने के लिए मैदान में उतरे तो आंखों देखा हाल सुना रहे कॉमेंटेटर संकट में पड़ गए कि किस बलबीर को क्या कहा जाए। लेकिन कॉमेंटेटर जसदेव सिंह की ओर से साफ शिनाख्त के बाद बलबीर सीनियर, बलबीर जूनियर, बलबीर पंजाब पुलिसवाला, बलबीर रेलवेवाला, बलबीर सेनावाला, बलबीर दिल्लीवाला और बलबीर नेवीवाला के नामों से संबोधित करके धुंधलका साफ किया गया।
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बलबीर सिंह सीनियर को विश्व का सबसे खतरनाक 'सेंटर फॉरवर्ड' माना जाता था। इसके चलते उन्हें 'टेरर ऑफ डी' खिलाड़ी के तौर पर भी पुकारा गया। पद्मश्री और अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित बलबीर सिंह सीनियर के हिस्से खेल इतिहास के कई सुनहरे पन्ने हैं। उन्हें कभी राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलते समय मैच रेफरी की ओर से रेड या येलो कार्ड नहीं दिया गया। वह भारत के इकलौते खिलाड़ी हैं जिन्हें विश्व स्तर के 16 आईकॉन खिलाड़ियों में जगह हासिल है। इतिहास उन्हें भारत-पाक विभाजन के दौरान एक पुलिस अधिकारी के तौर पर निभाई गई ड्यूटी के लिए भी याद रखेगा। 1947 में वह लुधियाना के सदर थाना में तैनात थे। दंगे छिड़े तो बलबीर सिंह सीनियर ने जान पर खेलकर सैकड़ों लोगों की हिफाजत की और उन्हें महफूज जगह भेजा।उन्होंने इस प्रकरण की बाबत कहा था कि, "विभाजन बहुत बड़ा दु:स्वपन था। मानवता की ओर खड़े तथा टिके रहना असली खेल है। बाकी खेल बाद की बातें हैं।"
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