बीते करीब दो साल से दोनों राज्यों के बीच इस मुद्दे पर विवाद था जो अब थम सकता है। आखिरकार रसगुल्ले का जीआई टैग यानी ज्योग्राफिकल इंडीकेशन टैग पश्चिम को मिल गया। जीआई टैग विश्व व्यापार संगठन यानी वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन देता है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने यह टैग मिलने पर राज्य के लोगों को बधाई दी है।
ममता बनर्जी इन दिनों ब्रिटेन के दौरे पर हैं। उन्होंने वहीं से ट्वीट कर कहा, “यह हम सभी के लिए मीठी खबर है। हम बहुत खुश हैं और खुद पर गर्व करते हैं कि बंगाल को रोसोगुल्ला के लिए जीआई स्टेटस मिल गया है।”
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आखिर कैसे शुरु हुई रसगुल्ले पर जंग? यह प्रश्न सबसे पहले 2011 में राजनीतिक मुद्दा बन गया। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी दूसरी बार सीएम बनीं। एक कार्यक्रम में उन्होंने रसगुल्ले पर पश्चिम बंगाल का दावा करते हुए कहा कि इसकी खोज यहीं हुई। ममता सरकार ने इसके विश्व व्यापार संगठन में जीआई सर्टिफिकेशन के लिए अर्जी दाखिल की।
लेकिन कुछ दिन बाद ही ओडिशा की नवीन पटनायक सरकार भी सामने आ गई। ओडिशा सरकार ने भी जीआई टैक सर्टिफिकेशन के लिए विश्व व्यापार संगठन में दावा कर दिया। ओडिशा सरकार का कहना था कि पुरी के जगन्नाथ मंदिर में लंबे वक्त से यह डिश भगवान को प्रसाद के तौर पर चढ़ाई जाती रही है। लिहाजा, यह माना जाना चाहिए कि इस डिश की खोज ओडिशा में हुई।
लेकिन पश्चिम बंगाल ने दावा किया था कि 1868 में कलकत्ता (अब कोलकाता) के नोबिन चंद्रा दास ने रोसोगुल्ला (बांग्ला में यही नाम है) की खोज की थी। पश्चिम बंगाल में इस नाम से स्वीट्स चेन भी है।
दोनों राज्यों के दावे पर विश्व व्यापार संगठन में तना-तनी भी हुई, लेकिन मंगलवार को फैसला पश्चिम बंगाल के पक्ष में आया।
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