भारत में फैटी लिवर की बीमारी के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। एक प्रसिद्ध हेपेटोलॉजिस्ट ने फैटी लिवर से ग्रसित रोगियों को घी और नारियल तेल जैसे सैचुरेटेड फैट का सेवन कम करने की सलाह दी है।
फैटी लिवर रोग मोटापे और मधुमेह से संबंधित है। अत्यधिक कार्बोहाइड्रेट का सेवन करने से इंसुलिन का स्तर बढ़ सकता है और लंबे समय तक उच्च इंसुलिन स्तर इंसुलिन प्रतिरोध का कारण बनता है। यह मेटाबॉलिज्म को बाधित करता है और अतिरिक्त ग्लूकोज को फैटी एसिड में बदल देता है जो लिवर में जमा हो जाता है।
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इसे अल्कोहलिक फैटी लिवर रोग और नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर रोग में वर्गीकृत किया जा सकता है। यह लिवर की सूजन और क्षति से जुड़ा होता है, जो अंततः फाइब्रोसिस सिरोसिस या लिवर कैंसर का कारण बनता है।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिवरडॉक के नाम से मशहूर डॉ. एबी फिलिप्स ने कहा, "भारत में यदि आपको चयापचय-विकार से संबंधित फैटी लिवर रोग है, तो अपने आहार में सैचुरेटेड फैट स्रोतों को सीमित रखें।''
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उन्होंने बताया, "इसका मतलब है कि घी, मक्खन (उत्तर भारत), नारियल तेल (दक्षिण भारत) और पाम तेल (प्रसंस्कृत/अल्ट्रा-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ) युक्त खाद्य पदार्थों का सीमित मात्रा में उपयोग करें।
उन्होंने आगे कहा, ''सैचुरेटेड फैट ट्राइग्लिसराइड्स को बढ़ाता है,जिसके कारण लिवर में वसा और सूजन बढ़ जाती है।''
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वहीं घी को पारंपरिक रूप से स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद माना जाता है, मगर डॉक्टरों ने कहा कि यह कोई सुपरफूड नहीं है। यह बहुत खतरनाक है। इसमें भरपूर वसा होती है और 60 प्रतिशत से अधिक सैचुरेटेड फैट होता है। उन्होंने इसे स्वस्थ (वनस्पति) बीज तेलों से बदलने की आवश्यकता पर जोर दिया, जिनमें सैचुरेटेड फैट और ट्रांस- फैट की मात्रा कम होती है।
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डॉ. एबी ने दैनिक खाना पकाने में विभिन्न प्रकार के बीज तेलों का उपयोग करने की भी सिफारिश की। उन्होंने खाद्य पदार्थों को तलने के बजाय बेक, उबाल, ब्रॉयल, ग्रिल या भाप में पकाने का सुझाव दिया।
उन्होंने दैनिक भोजन में पौधे-आधारित प्रोटीन के हिस्से को बढ़ाने और फलों के रस के बजाय ताजे फलों को शामिल करने का भी आह्वान किया।
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