भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के इस ऐलान पर लोगों की भौंहें तन गई हैं कि मध्यप्रदेश का अगला विधानसभा चुनाव शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। शाह से मुलाकात करने वालों के अनुसार, जब उनसे मुख्यमंत्री के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने को कहा गया तो उन्होंने चौहान को 100 में से 100 नंबर दिए।
18 अगस्त से 20 अगस्त के बीच प्रदेश के अपने तीन दिवसीय दौरे के दौरान शाह ने मंत्रियों, विधायकों, पार्टी पदाधिकारियों और मीडिया के लोगों से मुलाकात की। हर हाल में चुनाव जीतने के पार्टी को दिए उनके संदेश पर कोई हलचल नहीं हुई, जबकि कुछ ही दिन पहले चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने इस बात पर दुख जताया था कि राजनीतिक दलों में नैतिकता को त्याग कर हर कीमत पर चुनाव जीतने की नई प्रवृत्ति देखने को मिल रही है।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स द्वारा आयोजित रिजनल कंसलटेशन ऑन पॉलिटिकल एंड इलेक्टॉरल रिफॉर्म विषय पर अपने व्याख्यान में चुनाव आयुक्त ने कहा था, ‘जीतने वाला कोई गुनाह नहीं कर सकता; सत्ताधारी खेमे में जाने वाला दलबदलू सभी गुनाहों और अपराधों से मुक्त हो जाता है। राजनीतिक नैतिकता की इस नई प्रवृत्ति के खिलाफ सभी राजनीतिक दलों, राजनेताओं, मीडिया, सिविल सोसायटी संगठनों, संवैधानिक प्राधिकरणों, बेहतर चुनाव और बेहतर कल के लिए लोकतांत्रिक राज्य व्यवस्था में विश्वास करने वाले सभी लोगों को ऐसी कार्रवाई करनी चाहिए जो नजीर बन सके।
लेकिन चुनाव आयुक्त के इस कथन से बेखौफ शाह का संदेश बिल्कुल साफ था। शाह ने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा कि साम-दाम-दंड-भेद से चुनाव जीतो।
पार्टी के एक पुराने नेता ने साफ कहा कि शाह ने व्यापम मामले को संभालने के तरीके को लेकर चौहान पर एक शब्द नहीं कहा। न ही उन्हें किसान आंदोलन को संभालने में लापरवाही के लिए हटाया गया, जिसमें हुई पुलिस फायरिंग में 6 किसानों की मौत हो गई थी। राज्य सरकार द्वारा 700 करोड़ रुपये के प्याज खरीदकर उसे खुले में रखने के मामले में भी शाह को कोई गड़बड़ी नहीं दिखी। स्पष्ट तौर पर बीजेपी अध्यक्ष के पास मध्यप्रदेश में स्वास्थ्य और शिक्षा विभाग में फैली अराजकता या राज्य सरकार के खराब वित्तीय प्रबंधन से जुड़ी शिकायतों को सुनने का धैर्य नहीं था।
शाह ने मंत्रियों से जिस तरह से बर्ताव किया, उसे लेकर विरोध की फुसफुसाहट भी थी। एक मंत्री ने खुलकर कहा कि बीजेपी अध्यक्ष ने मंत्रालयों के नाम लेकर मंत्रियों को बुलाया और उन्हें खड़ा रहने के लिए कहा। इस बात से नाराज मंत्री ने कहा, ‘उन्होंने एक सामंती राजा की तरह पेश आते हुए मंत्रियों के साथ गुलामों की तरह व्यवहार किया।’
शाह ने पार्टी में दरकिनार कर दिए जाने से नाराज पूर्व सांसदों और विधायकों को ध्यान से सुना। पारसमल मुद्गल, राकेश सिंह चतुर्वेदी और बालेंदु शुक्ल समेत कई लोगों ने शिकायत की कि उन्हें न तो सरकार और न ही पार्टी गंभीरता से ले रही है। उन्होंने शिकायत करते हुए कहा कि उन्हें न तो आधिकारिक कार्यक्रमों में आमंत्रित किया जाता है और न ही दौरा करने वाले मंत्रियों द्वारा बुलाया जाता है।
शाह ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह एक एक्शन प्लान पर काम कर रहे थे। उन्होंने घोषणा की, ‘अगले दो महीनों में सभी पूर्व सांसदों और विधायकों को जिम्मेदारी दी जाएगी।‘
शाह ने स्पष्ट तौर पर पार्टी की किसी भी ऐसी नीति के होने से इंकार किया है जिसके तहत पार्टी या सरकार में बीजेपी 70 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को कोई पद या जिम्मेदारी नहीं देगी। देश के शायद सबसे वरिष्ठ विधायक और लगातार 11 बार से विधानसभा चुनाव जीत रहे पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने बताया कि बीजेपी के संगठनात्मक महासचिव राम लाल और प्रदेश बीजेपी प्रभारी विनय सहस्रबुद्धे ने उनसे इस आधार पर इस्तीफे की मांग की थी कि वह 75 साल से ज्यादा उम्र के हैं।
गौर ने खुद के ‘सदाबहार, सबसे पाक-साफ और पूरी तरह से स्वस्थ होने’ का दावा करते हुए तंज कसा कि स्पष्ट तौर पर मुख्यमंत्री ने पार्टी नेताओं के साथ मिलकर साजिश की थी। शाह की तरफ इशारा करते हुए उन्होंने कहा, ‘तुम्हीं ने दर्द दिया है, तुम्हीं दवा दो।’
अधिक उम्र होने के आधार पर गौर और सरताज सिंह दोनों को पिछले साल पद छोड़ने के लिए कहा गया था। लेकिन अमित शाह ने कहा कि चुनाव लड़ने के लिए पार्टी की तरफ से कोई उम्र सीमा तय नहीं है और मंत्रालय का गठन पूरी तरह से मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है।
Published: 26 Aug 2017, 1:18 PM IST
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Published: 26 Aug 2017, 1:18 PM IST