उत्तर प्रदेश में अगले साल की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटे राजनीतिक दलों को अब दलित वोटों को अपने पाले में लाने की चिंता सताने लगी है और इसके लिए वह कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। कोई दलित चेतना यात्रा निकाल रहा है तो कोई आदिवासी दिवस मनाने की तैयारी में है। चाहे एसपी हो या बीजेपी सब दलितों को साधने में लगे हैं। यूपी में ब्राम्हणों के बाद सबसे ज्यादा इसी वोट बैंक के लिए संग्राम छिड़ा हुआ है।
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विधानसभा चुनाव के लिए जाति-वर्गों के वोट समेटने का प्रयास कर रही समाजवादी पार्टी की नजर आदिवासियों पर भी है। एसपी अनुसूचित जनजाति प्रकोष्ठ की बैठक में जातीय जनगणना कराने की सरकार से मांग के साथ विश्व आदिवासी दिवस सोनभद्र में मनाने का निर्णय लिया गया है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने कहा कि जल, जंगल, जमीन से बेदखल हो रहे आदिवासियों को उनके हक एसपी की सरकार बनने पर दिलाए जाएंगे। उनके हित में योजनाएं भी बनेंगी।
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यूपी की राजनीति बहुत हद तक जातीय समीकरणों पर ही टिकी है। लिहाजा, दलों की रणनीति भी इसी पर है। अभी तक दलितों का एकमुस्त वोट मायावती के कब्जे में रहा है, लेकिन 2014 के बाद से इसमें कुछ वर्ग छिटक कर बीजेपी की ओर आया है। मायावती की दूसरी लाइन की लीडरशिप ढलान पर देखते हुए दलों को लगता है कि दलित वर्ग अब मायावती के झांसे से बाहर आएगा। इसीलिए इन दलों ने इस वोट बैंक को अपने पाले में लाने की जुगत लगानी शुरू की है।
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एक अध्ययन के अनुसार राज्य में दलित वोटों की हिस्सेदारी काफी मजबूत है। अगर आंकड़ो पर गौर फरमाएं तो राज्य में तकरीबन 42-45 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) है। उसके बाद 20-21 प्रतिशत दलितों की है। इसी वोट बैंक की बदौलत मायावती 2007 में 206 सीटों और 30.43 प्रतिशत वोट के साथ पूर्ण बहुमत से मुख्यमंत्री बनीं और उनकी सोशल इंजीनियरिंग ने खूब चर्चा भी बटोरी। 2009 में लोकसभा चुनाव हुए और मायावती ने 27.4 प्रतिशत वोट हासिल किए और 21 लोकसभा सीटों पर कब्जा जमाया, लेकिन 2012 में उनकी चमक काम नहीं आ सकी। उनका वोट प्रतिशत भी घटा।
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फिर इसके बाद 2017 में मायावती और उनकी पार्टी का सबसे मजबूत किला दरक गया। 2007 के बाद से मायावती के वोट प्रतिशत में लगातार घटाव आ रहा है। इनके वोट बैंक पर सेंधमारी हो रही है। 2014 के चुनाव में बीजेपी ने 80 में से 71 सीट जीतकर इसी वोट बैंक को जबरदस्त झटका दिया था। सबसे बड़ी बात कि सुरक्षित सीटों पर बीएसपी कमजोर नजर आयी।
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राजनीतिक विश्लेषक प्रसून पांडेय कहते हैं, "बीजेपी ने बीएसपी के दलित वोट बैंक में तगड़ी सेंधमारी की है। यह एक दिन का काम नहीं है। कई वर्षों से इस वोट के लिए आरएसएस की ओर से चलाए जा रहे समाजिक समरसता के जरिए उन्हें कुछ सफलता मिली है। अगर हम गौर से देंखे तो 2014 के बाद से गैरजाटव वोट बीजेपी के पाले में जाता दिख रहा है। इस वर्ग के असंतुष्ट वोट को अपने पाले में लाने की बीजेपी कोशिश कर रही है।"
(आईएएनएस के लिए विवेक त्रिपाठी की रिपोर्ट)
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