राजनीति

मोदी सरकार में राजनीति का सूरज कभी नहीं डूबता, भले देश में कोरोना का अंधेरा घना हो रहा हो

कोरोना संकट को एक महीने से ज्यादा समय हो चुका है और सरकारी अस्पताल के नर्स-डॉक्टर अब भी पीपीई की कमी झेल रहे हैं। यहां तक कि डॉक्टरों को एक ही मास्क कई दिनों तक पहनने को कहा जा रहा है। ऊपर से केंद्र ने राज्यों को खुद से पीपीई और वेंटिलेटर खरीदने से रोक दिया है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संदेश देने में ‘मास्टर’ हैं। 14 अप्रैल को उन्होंने जैसे ही राष्ट्र के नाम संबोधन पूरा किया, टीवी चैनल यह गिनती करने में जुट गए कि लाइव संबोधन के दौरान प्रधानमंत्री ने कितनी बार हाथ जोड़े। उनकी इसी मास्टरी का नमूना है कि #उद्धवमस्टरिजाइन के ट्विटर पर ट्रेन्ड होने से ठीक पहले उन्होंने अपनी प्रोफाइल फोटो बदल दी। यह बीजेपी के आईटी सेल की कारस्तानी थी कि #उद्धवमस्टरिजाइन ट्विटर पर ट्रेन्ड करने लगा और बीजेपी नेताओं ने बांद्रा में हजारों प्रवासी मजदूरों के प्रदर्शन के लिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पर आरोप मढ़ने शुरू कर दिए।

साफ है कि ऐसे मुश्किल दौर में भी कुछ लोगों के लिए राजनीति ही महत्वपूर्ण होती है। सूरत की ही तरह मुंबई में भी प्रवासी मजदूर घर जाने के लिए अनुमति और सुविधा की मांग कर रहे थे। उनके पास भी काम नहीं था, उनके जमा पैसे खत्म हो रहे थे, वे खाना-पानी की कमी झेल रहे थे और छोटी-सी जगह में तमाम दूसरे मजदूरों के साथ चौबीसों घंटे बंद रहने के लिए मजबूर थे।

घबराहट, भूख और तेजी से हवा होते पैसे ने उनमें घर लौट जाने की इच्छा को मजबूत किया होगा।लॉकडाउन से पहले वे अपना ज्यादातर समय घर से बाहर ही बिताते थे और सिर्फ सोने के लिए घर आते थे। लेकिन अब तो काम ही नहीं है, शिफ्ट की तो बात ही छोड़िए और उन गली-सड़कों से उन्हें खदेड़ दिया गया जहां वे अपना ज्यादातर समय बिताते थे। अगर ये लोग इतने बेचैन हो रहे हैं, तो इसकी वजह समझी जा सकती है।

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लेकिन बीजेपी नेताओं और मीडिया के एक वर्ग का क्या कहें, जिन्हें इन विरोध-प्रदर्शनों में भी षड़यंत्र नजर आता है। वे सवाल उठाने लगे कि अगर ये मजदूर घर जाना चाहते थे, तो उनके पास सामान वगैरह क्यों नहीं था? यह तर्क उनके गले नहीं उतर रहा कि ये मजदूर ट्रेन टिकट खरीदने बांद्रा के बुकिंग सेंटर आए थे। 14 अप्रैल की रात बीजेपी के आईटी सेल के मुखिया अमित मालवीय ने ट्वीट किया “महाराष्ट्र सरकार को जनता को गुमराह करने से बाज आना चाहिए। दिल्ली की तरह ही यह एक सुनियोजित तरीके से इकट्ठा की गई भीड़ थी। अन्यथा लोग बिना बैग बांद्रा वेस्ट क्यों आते? जवाब दें!” एक और ट्वीट में उन्होंने कहा: “महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को कोविड-19 से लड़ने में अपनी नाकामयाबी का ठीकरा केंद्र सरकार पर नहीं फोड़ना चाहिए। महा विकास अगाड़ी एक अवसरवादी गठजोड़ है और प्रशासन की ओर उनका ध्यान ही नहीं है।”

इस सवाल को दबा दिया गया कि बांद्रा-जैसे ही प्रदर्शन सूरत और अन्य शहरों में होने पर गुजरात के मुख्यमंत्री को पद क्यों नहीं छोड़ देना चाहिए। इस सवाल का जवाब भी कोई नहीं दे रहा कि 15 अप्रैल के बाद लॉकडाउन के उठाए जाने और रेल सेवा बहाल होने को लेकर तमाम अनिश्चितताओं के बीच रेलवे ने ट्रेन टिकट बुक क्यों किए? इस तथ्य की भी अनदेखी कर दी गई कि पिछले महीने अचानक लॉकडाउन लागू करने से पहले राज्यों से विचार-विमर्श क्यों नहीं किया गया?

ऐसा लगता है कि उनकी मंशा महाराष्ट्र सरकार को गिराने की न भी रही तो उसे बदनाम करना तो उनके एजेंडे में सबसे ऊपर जरूर रहा होगा। एक ओर तो बीजेपी नेता प्रवासी मजदूरों को जहां हैं, वहीं रोकने और उनके लिए खाने-पीने का इंतजाम नहीं करने में कथित नाकामयाबी के लिए महाराष्ट्र सरकार को आड़े हाथ ले रहे हैं, लेकिन लॉकडाउन के बाद हरिद्वार में फंसे गुजरातियों को वापस ले जाने के लिए गृह मंत्रालय की ओर से लक्जरी बसों का इंतजाम करने पर वे मौनी बाबा बने हुए हैं।

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महाराष्ट्र सरकार अकेली राज्य सरकार नहीं है जो बीजेपी के निशाने पर है। एक ओर तो प्रधानमंत्री मोदी एक उपदेशक की तरह अपने संदेश में संविधान की प्रस्तावना में उल्लिखित ‘हम, भारत के लोग..’जैसे भाव का इस्तेमाल करते हैं और कहते हैं कि भारत के लोग इसका एकजुट होकर सामना करेंगे, दूसरी ओर बीजेपी लगातार विपक्ष शासित राज्यों को बदनाम करने में जुटी है। केंद्र ने जीएसटी में राज्यों के हिस्से के पैसे नहीं दिए हैं, लेकिन उम्मीद के मुताबिक बीजेपी इस पर चुप है।

लेकिन विपक्ष शासित राज्यों में हो रही एक-एक मौत को राजनीतिक तौर पर भुनाने से नहीं चूक रही। इस हफ्ते अमित मालवीय के चंद ट्वीट्स पर गौर करें- “लुटियन्स मीडिया में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के चीयरलीडर्स, आपके लिए खबर है! छह करोड़ लोगों की स्क्रीनिंग करने का राजस्थान सरकार का दावा फेक है! आपने इस खबर को कई दिनों तक चलाया। ऐसे लगता है ‘भीलवाड़ा मॉडल’ नाम की कोई चीज है ही नहीं।”

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“पिछले 48 घंटे में बंगाल सरकार राज्य में कोविड19 का एक भी पॉजिटिव केस नहीं दिखा रही है, जबकि बांकुरा में मृतकों का चोरी-छिपे अंतिम संस्कार किए जाने के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों पर बंगाल पुलिस ने बीती रात ही लाठी-चार्ज किया। मुख्यमंत्री ममता के पास गृह और स्वास्थ्य- दोनों विभाग हैं।” “बांकुरा में कोविड-19 के संभावित रोगियों का अंतिम संस्कार न स्थानीय प्रशासन, न अस्पताल कर्मचारी और न ही परिवार वालों ने बल्कि टीएमसी के कार्यकर्ताओं ने किया। आखिर ऐसी क्या हड़बड़ी थी? क्या टीएमसी को कुछ ऐसी बातें पता हैं जिसकी जानकारी परिवार वालों और डॉक्टरों को भी नहीं?”

महामारी है, रहा करे। लगता है, ऑपरेशन कमल तो ऐसे ही चलता रहेगा जब तक देश के सभी राज्यों में बीजेपी अपना भगवा नहीं लहरा लेती। इस संकट का एक और तरीके से राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश हो रही है। इस आशय का अभियान चलाना शुरू किया गया है कि 2024 के अगले चुनाव को टाल दिया जाए। दलील है कि देश के सामने इतनी बड़ी चुनौती है और अर्थव्यवस्था ऐसे भंवर में जा फंसी है कि चार साल बाद चुनाव पर लाखों लाख करोड़ खर्च करना एक अपराध होगा।

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फिर, क्या नरेंद्र मोदी को उम्र भर के लिए, या 2029 तक प्रधानमंत्री बना दें? यह सुझाव दिया है अभिनेत्री कंगना रानौत की बहन और उनकी मैनेजर रंगोली चंदेल ने। आम तौर पर इस तरह की बातों पर कोई गौर भी नहीं करता, लेकिन बीजेपी का अमला इसे प्रचारित करने में जुट गया। इसके साथ ही रिपब्लिक और ऑप-इंडिया ने इस खबर को हवा दी। क्या ठीक, अर्थव्यवस्था के बेकाबू हो जाने पर यह बात फिर से सामने आ खड़ी हो?

सोचने वाली बात है कि 2014 का चुनाव कराने में आयोग 3,780 करोड़ खर्च करता है और 2019 के चुनाव पर उसे करीब 5,000 करोड़ खर्च करने पड़ते हैं। जबकि मोदी सरकार 3,000 करोड़ सरदार पटेल की मूर्ति खड़ी करने में खर्च कर देती है और इससे चार गुना अधिक, यानी 20,000 करोड़ संसद के नए भवन और सेंट्रल विस्टा पर खर्च कर रही है।

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बीजेपी सरकार को केंद्र में एक और मौका देने की बात एकदम अजीब है, न केवल इस कारण कि यह संवैधानिक प्रतिबद्धताओं के खिलाफ एक बकवास सुझाव है, बल्कि इसलिए भी कि मौजूदा समस्या से निपटने में सरकार पूरी तरह विफल रही है। संकट को एक महीने से ज्यादा समय हो चुका है और सरकारी अस्पताल के नर्स-डॉक्टर अब भी पीपीई की कमी का रोना रो रहे हैं। यहां तक कि एम्स में भी रेजिडेंट डॉक्टरों को एक ही मास्क कई दिनों तक पहनने को कहा गया है।

और तो और, केंद्र सरकार ने नोटिफिकेशन जारी करके राज्यों को अपने स्तर से पीपीई और वेंटिलेटर खरीदने से रोक दिया है। सरकार ने कहा है कि वह इन्हें खरीदकर राज्यों को देगी। इसके कुछ ही दिन बाद खबर आई कि चीन से तमिलनाडु आ रही खेप को अमेरिका रवाना कर दिया गया है।

दरअसल इस महामारी का इस्तेमाल करके नरेंद्र मोदी की पहले से ही ‘लार्जर दैन लाइफ’ छवि को और मजबूत बनाने की कोशिश की जा रही है। सरकारी और सरकार-परस्त मीडिया बीजेपी और संघ कार्यकताओं को लोगों को खाने का सामान बांटते दिखाते नहीं थक रहा। पीएम केयर्स नाम के गैर-पारदर्शी ट्रस्ट से पैसे इकट्ठा किए जा रहे हैं।

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