संसद का बजट सत्र यूं तो सोमवार को स्थगित होना था, लेकिन राज्यसभा में इस सत्र के दौरान जो कुछ हुआ उस सबके बीच ही शुक्रवार को अचानक सदन की कार्यवाही को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया। संसद पर पैनी नजर रखने वाली संस्था माध्यम ने इस बाबत सही ही लिखा है कि, “जब संसद की कार्यवाही समय से पहले अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दी जाती है तो, बाकी दिनों के लिए सूचीबद्ध किए गए सवाल अनुत्तरति रह जाते हैं और सांसदों को जनहित से जुड़े अहम मुद्दे उठाने का मौका नहीं मिलता है। वैसे सरकार खुद ही तय करती है कि कब संसद का सत्र शुरु होगा और कब खत्म होगा, लेकिन वह खुद ही इस पर नहीं टिक पाती है।”
समय से पहले अचानक संसद (लोकसभा और राज्यसभा दोनों) की कार्यवाही को स्थगित किए जाने पर सरगोशियां हैं कि विपक्ष ने दरअसल राज्यसभा चेयरमैन जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का फैसला कर लिया था। संविधान के अनुच्छेद 67 के मुताबिक उपराष्ट्रपति, जोकि राज्यसभा के पदेन चेयरमैन होते हैं, उन्हें एक प्रस्ताव लाकर हटाया जा सकता है। इस प्रस्ताव का राज्यसभा में बहुमत से पास होना जरूरी होता है। इतना ही नहीं इसके लिए लोकसभा की भी सहमति चाहिए होती है। इसके अलावा ऐसे प्रस्ताव को पेश करने के लिए 14 दिन का नोटिस देना होता है।
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लेकिन जब राज्यसभा की कार्यवाही ही नहीं चल रही है तो क्या ऐसे प्रस्ताव का नोटिस दिया जा सकता है? और, क्या ऐसा भी संभव है कि राज्यसभा के सभापति को उनके पद से हटा दिया जाए, लेकिन वे फिर भी उप राष्ट्रपति बने रहें? यानी उपराष्ट्रपति का पद तो बना रहे लेकिन वे राज्यसभा के चेयरमैन न रहें। इस विषय पर संवैधानिक स्थिति स्पष्ट नहीं है, क्योंकि अतीत में ऐसी स्थिति कभी आई ही नहीं है। इससे पहले कभी भी किसी भी राज्यसभा सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया ही नहीं है।
टाइम्स ऑफ इंडिया ने विपक्षी दलों के सूत्रों के हवाले से लिखा है कि राज्यसभा के नेता जे पी नड्डा को पहले से भनक लग गई है कि विपक्ष संसद के शीत सत्र में सभापति के खिलाफ अविश्वास लाया जा सकता है। इस रिपोर्ट के मुताबिक इस बाबत विपक्ष के 87 सांसदों ने प्रस्ताव पर हस्ताक्षर भी कर दिए हैं। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि राज्यसभा के सभापति के पक्षपाती व्यवहार और सदन चलाने में निरंतर आपत्तिजनक आचरण के दस्तावेजी सबूत भी जुटाए जा रहे हैं।
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गौरतलब है कि राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ जरा-जरा सी बात का बुरा मान जाते हैं और विपक्ष पर चर्चा में व्यवधान का आरोप लगाते रहे हैं, सदन में शोर-शराबे की बात कहते रहे हैं, यहां तक कि देश में अफरा-तफरी फैलाने की कोशिश करने का आरोप तक लगाते रहे हैं। विपक्षी सांसद धनखड़ के इस आचरण और उनके लहजे पर आपत्ति भी उठाते रहे हैं। धनखड़ ने तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन को धमकी दी थी कि, “आपका व्यवहार सबसे खराब है। मैं ऐसे आचरण की निंदा करता हूं। अगली बार मैं बाहर निकाल दूंगा।” इसी तरह उन्होंने समाजवादी पार्टी की सांसद जया बच्चन को कहा कि, “आप कोई भी हों, आप सेलेब्रिटी ही क्यों न हों, आपको अनुशासन समझना होगा। मैं इसे सहन नहीं करूंगा...।”
इसके अलावा बिना किसी कारण के ही धनखड़ ने सदन को सूचित किया था कि उन्हें संघ से जुड़े होने पर गर्व है और आरएसएस एक ऐसी संस्था है जिस पर उंगली नहीं उठाई जा सकती। यह ऐसा विचार और कथन था जिससे विपक्षी सांसद कतई सहमत नहीं थे, और सभापति ने इस बाबत आलोचना का बुरा माना था। इतना ही नहीं सदन के बाहर भी वह विपक्षी नेताओं की आलोचना करते रहे हैं।
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पिछले महीने उन्होंने पूर्व केंद्रीय मंत्री वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी चिदंबरम द्वारा नए आपराधिक कानूनों की आलोचना पर आरोप लगाया कि चिदंबरम ने संसद की गरिमा और सहज बुद्धिमत्ता का अपमान किया है। चिदंबरम ने कहा था कि, ‘नए कानूनों का मसौदा पार्ट टाइम लोगों ने तैयार किया है।’ धनखड़ ने गुस्से में कहा कि, “क्या हम संसद में अंशकालिक लोग हैं?”
अभी 5 अगस्त को ही विपक्ष के 14 सांसदों ने सामूहिक रूप से हस्ताक्षरित एक ज्ञापन धनखड़ के नाम लिखा जिसमें गृह मंत्रालय के कामकाज के बारे में जानकारी मांगे जाने की इजाजत नहीं दी गई। इस पत्र में विपक्ष ने धनखड़ के फैसले को, “एकतरफा और अभूतपूर्व” बताया था। उन्होंने कहा कि वे चाहते हैं कि सदन नियमों के अनुसार चले और अध्यक्ष खुद भी नियमों का पालन करें।" इससे पहले 29 जुलाई को, बीजेपी के 5 सांसदों ने दिल्ली में एक आईएएस कोचिंग सेंटर में बारिश के दौरान हुई मौतों की त्रासदी पर चर्चा करने के लिए एक नोटिस दिया था, जिसे धनखड़ ने फौरन मंजूर कर चर्चा की अनुमति दे दी थी। लेकिन जब इतने ही विपक्षी सांसदों ने एक मुद्दा उठाना चाहा, तो हमें अनुमति नहीं दी गई।"
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शुक्रवार, 9 अगस्त को राज्यसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक जयराम रमेश ने एक बीजेपी सांद घनश्याम तिवाड़ी द्वारा पहली अगस्त को राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के बारे में की गई अपमानजनक टिप्पणी को कार्यवाही से हटाने की मांग पर धनखड़ के फैसले की जानकारी मांगी, तो उन्होंने कहा कि बीजेपी सांसद ने दरअसल ‘संस्कृत में खड़गे साहब की तारीफ की थी’ और इस मामले को उनके चैंबर में सुलझा लिया गया है। उन्होंने आगे कहा कि जब लोग तारीफ कर रहे हों तो वे माफी नहीं मांगते हैं।
लेकिन इस पर मल्लिकार्जुन खड़गे ने मामले को सदन में स्पष्ट करने पर जोर दिया था। उन्होंने कहा, “आपने अपने चैंबर में जो बातें कहीं वही बातें आप यहां भी स्पष्ट कर सकते हैं...अच्छा हो कि अब सदन में बताएं।” इसके बाद विपक्ष ने घनश्याम तिवाड़ी से माफी की मांग उठाई। इसमें डीएमके सांसद तिरुचि शिवा, कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी ने भी कहा कि बीजेपी सांसद का लहजा और तरीका अपमानजनक था। लेकिन धनखड़ ने इसे अनदेखा करते हुए समाजवादी पार्टी की सांसद जय बच्चन को आखिरी वक्ता के तौर पर बोलने को कहा। लेकिन जब जया बच्चन ने बेहद नम्रता से कहा कि, “मैं एक कलाकार हूं और भाषा और भाव-भंगिमा को समझती हूं...और आदरपूर्वक कहना चाहती हूं कि सभापति का लहजा और भाव स्वीकार्य नहीं है।”
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धनखड़ चाहते तो इस मामले हल्के में लेकर जाने देते और जया बच्चन को अपनी बात आगे कहने के लिए कह सकते थे। लेकिन उन्हें गुस्सा आ गया और वे खुद ही विपक्ष पर चिल्लाने लगे, जिसके बाद विपक्ष ने उनके आचरण के खिलाफ सदन से वॉकआउट कर दिया। इस तरह पूरा प्रश्नकाल ही अधूरा रह गया।
विपक्ष के एक सांसद ने कहा कि वे खुद कहते रहे हैं कि राष्ट्र पहले हैं, लेकिन खुद ही पूरे प्रश्नकाल को खराब कर दिया क्योंकि वे एक बात से चिढ़ गए थे। इस सांसद ने कहा कि, “वे किसी भी किस्म की आलोचना बरदाश्त नहीं कर पाते हैं. पक्षपात करते हैं और बिना जरूरत उपदेश देने में सदन का काफी समय खराब कर देते हैं। वे विपक्षी सांसदों के बोलते समय खुद ही टीका-टिप्पणी करते हैं, यहां तक कि नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का माइक तक बंद कर दिया गया। वे सरकार की तरफ से खुद जवाब देने लगते हैं।”
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