बिहार की राजनीति में कभी एकछत्र राज करने वाले राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के अध्यक्ष लालू प्रसाद की पार्टी आज बिहार की सियासत के नेपथ्य में जाती दिख रही है। हमेशा चर्चा में रहने वाले लालू प्रसाद के जेल जाने के बाद उनके छोटे बेटे तेजस्वी प्रसाद को उनके उत्तराधिकारी के रूप में देखा जा रहा था, लेकिन लोकसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार के बाद से वह बिहार की राजनीति से गायब चल रहे हैं। इसको लेकर अब पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं में भी संशय पनपने लगा है। कई वरिष्ठ नेता अब तेजस्वी को नसीहत दे रहे हैं।
लालू के उत्तराधिकारी तेजस्वी को आरजेडी ने अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाने की घोषणा भी कर दी है, लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान राज्य में महागठबंधन का नेतृत्व कर रहे तेजस्वी हार के बाद कहां हैं, किसी को पता नहीं चल रहा है। लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से वह बिहार से बाहर हैं। वह दो दिनों के लिए पटना आए, चेहरा दिखाया, फिर चले गए।
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कुछ दिन पहले तक तेजस्वी को संघर्ष करने की नसीहत देने वाले आरजेडी के उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी से जब इस संबंध में पूछा गया, तब उन्होंने निराशा जताते हुए कहा, "मेरी कौन सुन रहा है। तेजस्वी को आरजेडी की बैठकों में रहना चाहिए था। अब वे कहां हैं, मुझे नहीं पता।" तिवारी ने बेहद निराश भाव से कहा कि लालू प्रसाद होते तो पार्टी को इस दौर से गुजरना नहीं पड़ता।
शुक्रवार को आरजेडी विधायक दल की बैठक में तेजस्वी के नहीं आने के बाद पार्टी ने इस बैठक को शनिवार तक के लिए टाल दिया, क्योंकि तेजस्वी ने कहा था कि वह बैठक में आएंगे। इसको लेकर आरजेडी कार्यकर्तओं में उत्साह भी था, लेकिन तेजस्वी नहीं आए और बैठक को रद्द करना पड़ा।
तेजस्वी के इस तरह से पार्टी को उपेक्षित करने से पार्टी के कई नेताओं में भी नाराजगी बढ़ने लगी है। आरजेडी विधायक राहुल तिवारी से जब इस संबंध में पूछा गया तब उन्होंने कहा कि आरजेडी के नेता लालू प्रसाद और राबड़ी देवी हैं।
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करीब एक महीने तक चले विधानसभा के मानसून सत्र में भी विपक्ष के नेता तेजस्वी मात्र दो दिन शामिल हुए, मगर किसी चर्चा में उन्होंने भाग नहीं लिया। इस दौरान विपक्ष चमकी बुखार, बाढ़-सूखा, कानून-व्यवस्था सहित कई मुद्दों पर सरकार पर निशाना साधता रहा। उधर पार्टी का सदस्यता अभियान भी बिना नेतृत्व के चल रहा है। आरजेडी के एक नेता ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर दावा करते हुए कहा कि अगर आरजेडी के नेतृत्वकर्ता का पार्टी के प्रति यही उपेक्षापूर्ण रवैया रहा तो पार्टी में टूट हो सकती है।
आरजेडी के सूत्र भी बताते हैं कि पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं में नाराजगी है, यही कारण है कि शिवानंद तिवारी जैसे नेता ने भी चुप्पी साध ली है। आरजेडी नेता तिवारी भी मानते हैं कि अभी की जो स्थिति है उसमें महागठबंधन कमजोर हुआ है। हमारी पार्टी बिहार की सबसे बड़ी पार्टी है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि हमारे नेता और कार्यकर्ता निराशा और हतोत्साह के दौर से जल्द ही उबर जाएंगे और सब ठीक हो जाएगा।
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इधर, आरजेडी की इस स्थिति पर उनके विरोधी मजे ले रहे हैं। जेडीयू के प्रवक्ता संजय सिंह कहते हैं कि आरजेडी नेतृत्वविहीन हो चुका है। उन्होंने दावा किया कि जल्द ही पार्टी में टूट होना तय है। हालांकि, आरजेडी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी इसे सही नहीं मानते। उन्होंने कहा कि आरजेडी का नेतृत्व कहीं असफल नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि समय का इंतजार कीजिए। तिवारी ने दावा किया कि पार्टी एकजुट है और आरजेडी का इतिहास रहा है कि संकट के दौर के बाद पार्टी और मजबूत होकर उभरती है।
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