अपने विवादित बयानों से अक्सर चर्चा में रहने वाले समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य ने मंगलवार को पद से इस्तीफा दे दिया है। स्वामी प्रसाद मौर्य ने इसकी जानकारी अपने एक्स अकाउंट पर त्यागपत्र को पोस्ट कर और उसमें सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी को टैग करते हुए दी है। हालांकि, उन्होंने पार्टी नहीं छोड़ी है, केवल महासचिव पद से इस्तीफा दिया है। लेकिन त्याग पत्र में उन्होंने पार्टी पर गंभीर आरोप लगाए हैं।
हालांकि, स्वामी प्रसाद मौर्य ने महासचिव पद से इस्तीफा दिया है, पार्टी का साथ नहीं छोड़ा है। लेकिन अपने त्यागपत्र में एक तरह से पार्टी में अलग-थलग किए जाने का उन्होंने आरोप लगाया है। मौर्य ने लिखा कि मैं नहीं समझ पाया कि मैं एक राष्ट्रीय महासचिव हूं, जिसका कोई भी बयान निजी बयान हो जाता है और पार्टी के कुछ राष्ट्रीय महासचिव और नेता ऐसे भी हैं, जिनका हर बयान पार्टी का हो जाता है, एक ही स्तर के पदाधिकारियों में कुछ का निजी और कुछ का पार्टी का बयान कैसे हो जाता है, यह समझ के परे है।
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मौर्य ने पत्र में आगे कहा कि दूसरी हैरानी यह है कि मेरे प्रयासों से आदिवासियों, दलितों, पिछड़ों का रुझान समाजवादी पार्टी की तरफ बढ़ा है। बढ़ा हुआ जनाधार पार्टी का और जनाधार बढ़ाने का प्रयास और वक्तव्य पार्टी का न होकर निजी कैसे? यदि राष्ट्रीय महासचिव पद में भी भेदभाव है, तो मैं समझता हूं, ऐसे भेदभावपूर्ण, महत्वहीन पद पर बने रहने का कोई औचित्य नहीं है। इसलिए, मैं समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पद से त्यागपत्र दे रहा हूं, कृपया इसे स्वीकार करें। पद के बिना भी पार्टी को सशक्त बनाने के लिए तत्पर रहूंगा।
उन्होंने अपने पत्र में लिखा कि जबसे मैं समाजवादी पार्टी में शामिल हुआ। तब से लगातार जनाधार बढ़ाने की कोशिश की। सपा में शामिल होने के दिन ही मैंने नारा दिया था- पच्चासी तो हमारा है, 15 में भी बंटवारा है। हमारे महापुरुषों ने भी इसी तरह की लाइन खींची थी। भारतीय संविधान निर्माता बाबा साहब डॉ. अंबेडकर ने "बहुजन हिताय बहुजन सुखाय" की बात की, तो डॉ. राम मनोहर लोहिया ने कहा कि "सोशलिस्टों ने बांधी गांठ, पिछड़ा पावै सौ में साठ।" इसी प्रकार सामाजिक परिवर्तन के महानायक कांशीराम साहब का नारा "85 बनाम 15 का" था।
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मौर्य ने आगे कहा कि 2022 विधानसभा चुनाव में अचानक प्रत्याशियों के बदलने के बावजूद भी पार्टी का जनाधार बढ़ाने में सफल रहे। उसी का परिणाम था कि सपा के पास जहां 2017 में सिर्फ 45 विधायक थे, ये संख्या बढ़कर 110 हो गई। बिना किसी मांग के आपने मुझे विधान परिषद में भेजा और ठीक इसके बाद राष्ट्रीय महासचिव बनाया, इस सम्मान के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद।
त्यागपत्र में मौर्य ने आगे लिखा, पार्टी को ठोस जनाधार देने के लिए जनवरी-फरवरी 2023 में मैंने आपके पास जातिवार जनगणना कराने, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ो के आरक्षण को बचाने, बेरोजगारी व बढ़ी हुई महंगाई, किसानों की समस्याओं व लाभकारी मूल्य दिलाने, लोकतंत्र और संविधान को बचाने, देश की राष्ट्रीय संपत्तियों को निजी हाथ में बेचे जाने के विरोध में प्रदेश व्यापी भ्रमण कार्यक्रम हेतु रथ यात्रा निकालने का प्रस्ताव रखा था, जिस पर आपने सहमति देते हुए कहा था होली के बाद इस यात्रा को निकाला जाएगा। आश्वासन के बाद भी कोई सकारात्मक परिणाम नहीं आया। नेतृत्व की मंशा के अनुरूप मैंने पुनः कहना उचित नहीं समझा।
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स्वामी प्रसाद मौर्य ने त्यागपत्र में यह भी कहा कि सपा को मजबूत करने के लिए खुद की परवाह नहीं की। उन्होंने कहा कि दलितों और पिछड़ों को जोड़ने के अभियान के दौरान, मुझे गोली मारने, हत्या कर देने, तलवार से सिर कलम करने, जीभ काटने, नाक-कान काटने, हाथ काटने आदि-आदि लगभग दो दर्जन धमकियां और हत्या के लिए 51 करोड़, 51 लाख, 21 लाख, 11 लाख, 10 लाख रुपये तक की सुपारी भी दी गई। अनेको बार जानलेवा हमले भी हुए, यह बात दीगर है कि प्रत्येक बार मैं बाल-बाल बचता चला गया। उल्टे सत्ताधारियों द्वारा मेरे खिलाफ अनेको एफआईआर भी दर्ज कराई गई, लेकिन अपनी सुरक्षा की बिना चिंता किये हुए मैं अपने अभियान मैं निरंतर चलता रहा।
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