साफ-सुथरी करने के प्रधानमंत्री मोदी के दावे के बीच बीजेपी-समर्थित राज्यसभा सांसद और एशियानेट न्यूज चैनल के चेयरमैन राजीव चंद्रशेखर ने राज्यसभा उम्मीदवार के रूप में भरे पर्चे में गलत जानकारी दी है।
नामांकन पत्र के मुताबिक, चंद्रशेखर की घोषित संपति 35 करोड़ रुपए की है और उन पर 88 लाख रुपए की देनदारी है। उन्होंने अपने पर्चे में यह भी जिक्र किया है कि वेक्ट्रा कंसलटेंसी सर्विसेज में उनके 99.97 फीसदी, ज्यूपिटर ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड में 50.75 फीसदी, मिंस्क डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड में 62.83 और गार्डेनसिटी प्लांटेशन प्राइवेट लिमिटेड में 88.05 शेयर हैं।
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लेकिन वे इस बात का बड़ी आसानी से जिक्र करना भूल गए कि वे ज्यूपिटर कैपिटल प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक है जो उनकी मुख्य कंपनी है। ज्यूपिटर ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड उसकी एक अनुषांगिक कंपनी है। चंद्रशेखर की अपनी वेबसाइट के अनुसार, उन्होंने ज्यूपिटर कैपिटल को 640 करोड़ रुपए के शुरूआती निवेश के साथ शुरू किया था और इसने 6455 करोड़ रुपए की संपति का प्रबंधन किया है। ज्यूपिटर कैपिटल प्राइवेट लिमिटेड 30 से ज्यादा कंपनियों की मालिक है।
कारपोरेट कार्य मंत्रालय के अनुसार, चंद्रशेखर 23 अगस्त 2005 से ज्यूपिटर कैपिटल प्राइवेट लिमिटेड के निदेशकों में से एक रहे हैं और उनके पिता एमके चंद्रशेखर मई 2005 से इसके निदेशक रहे हैं। बहुत बाद में मैथेवनपिल्लई शिवराम और सौरभ एस राव को निदेशक बनाया गया। चंद्रशेखर की कई दूसरी कंपनियों का भी संचालन राव करते हैं।
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राजीव चंद्रशेखर ने 1994 में बीपीएल मोबाइल कम्युनिकेशन बनाई थी और जुलाई 2005 में उन्होंने इसका 64 फीसदी हिस्सा एस्सार समूह को लगभग 7100 करोड़ (1.1 बिलियन डॉलर) में बेच दिया। 2008 में बीपीएल कम्युनिकेशन का नाम बदलकर लूप मोबाइल कर दिया गया था। इस ब्रिकी के बाद ही चंद्रशेखर ने ज्यूपिटर कैपिटल प्राइवेट लिमिटेड शुरू किया था।
चुनाव आयोग नियमों के फॉर्म 26 के मुताबिक, हर उम्मीदवार को खुद की, पति/पत्नी की और खुद पर निर्भर लोगों की संपति और देनदारी का ब्यौरा देना जरूरी है। उम्मीदवार को अपनी शिक्षा और आपराधिक पृष्ठभूमि के बारे में बताना पड़ता है। हलफनामे 26 के तहत कोई भी गलत जानकारी देना या किसी जानकारी को छिपाना एक चुनावी अपराध है।
2013 में दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि नामांकन के समय गलत हलफनामा दायर करना उस उम्मीदवार का चुनाव रद्द करने के लिए पर्याप्त है। गलत जानकारी के लिए न्यूनतम सजा के तौर पर 6 महीने की जेल और आर्थिक दंड के प्रावधान पर भी कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की थी।
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