उत्तर प्रदेश में लोकसभा और विधानसभा की तीन चौथाई से ज्यादा सीटें जीतने के बाद बीजेपी की आकांक्षाओं को पर लग गए हैं। अब वह ग्राम पंचायत स्तर पर खुद को इतना मजबूत कर लेना चाहती है कि अगले कई चुनावों में उसे हार का सामना न करना पड़े। इसीलिए वह अगले साल होने वाले जिला पंचायत अध्यक्षों का चुनाव सीधे मतदाताओं द्वारा कराने पर विचार कर रही है। इसके लिए उसे विधानसभा और लोकसभा के जरिये संविधान संशोधन करना होगा। दोनों जगह उसका बहुमत होने की वजह से इसमें कोई समस्याआने की आशंका नहीं है।
यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस एजेंडा का हिस्सा है जिसमें वह अमेरिकी मॉडल (प्रेसीडेंशियल मॉडल) लागू करना चाहते हैं, यानी जनता सीधे राष्ट्रपति का चुनाव करेगी जो अपनी पसंद के मंत्री और प्रधानमंत्री नियुक्त करने को स्वतंत्र होगा। वैसे, अब भी बीजेपी केवल मोदी के नाम के सहारे ही लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ रही है। अब वह ग्राम पंचायत के चुनाव भी मोदी के नाम के सहारे ही जीतना चाहती है।
Published: 04 Jul 2019, 8:59 PM IST
अभी तक चुने हुए जिला पंचायत सदस्य ही जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव करते हैं। यही तरीका क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में अपनाया जाता है। लेकिन इस तरह के चुनाव में अक्सर चुने हुए सदस्यों को दबंग उम्मीदवारों द्वारा डराने-धमकाने या रिश्वत देकर अपने पक्ष में मतदान कराने की शिकायतें आती हैं। जिला पंचायत सदस्यों का अपहरण भी कर लिया जाता है।
चार साल पहले हुए जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव के दौरान भी इस तरह की शिकायतें प्रतापगढ़, इटावा, आजमगढ़ सहित कई जिलों से मिली थीं। निर्दलीय ही नहीं, बल्कि बीजेपी समर्थित जिला पंचायत सदस्यों ने भी इस तरह डराने-धमकाने, अपहरण और रिश्वत की शिकायतें पार्टी के केंद्रीय नेताओं से की थीं। प्रतापगढ़ में बीजेपी के बैनर पर चुने गए जिला पंचायत सदस्यों को पार्टी के प्रदेश स्तर के एक पदाधिकारी की मौजूदगी में अखिलेश यादव की सरकार में एक दबंग मंत्री के समर्थकों ने उठवा लिया था। उन्हें उस मंत्री के समर्थक जिला पंचायत अध्यक्ष के पक्ष में वोट डालने के बाद ही छोड़ा गया था।
Published: 04 Jul 2019, 8:59 PM IST
ऐसे ही, कुछ जगहों से बीजेपी के जिला पंचायत सदस्यों को रिश्वत देने की सूचनाएं भी पार्टी आलाकमान को मिली थीं। लेकिन तब बीजेपी न तो केंद्र में सत्ता में थी और न ही यूपी में। अब दोनों जगह उनका शासन है। यूपी बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, अब पार्टी जमीनी स्तर, यानी ग्राम पंचायत स्तर से लेकर शहरों के वार्ड स्तर तक खुद को मजबूत करना चाहती है जिससे प्रतापगढ़ जैसी घटना ना दोहराई जा सके।
पंचायत चुनाव में बाहुबल और पैसे का इस्तेमाल कई दशकों से हो रहा है। सत्तर के दशक में लिखी श्रीलाल शुक्ल की कालजयी रचना ‘राग दरबारी’ हो या 1991 के दशक में यूपी की क्षेत्रीय पार्टियों की लड़ाई, सबके मूल में पंचायत चुनाव ही रहे हैं।
Published: 04 Jul 2019, 8:59 PM IST
1995 में एसपी-बीएसपी सरकार गिरने के मूल में लखनऊ जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव था। बीएसपी द्वारा समर्थित सीपीआई की जिला पंचायत अध्यक्ष पद की उम्मीदवार तारा देवी को चुनाव से ठीक पहले एसपी कार्यकर्ताओं ने उनके घर से उठा लिया था। चुनाव होने, यानी तीन दिनों तक उन्हें एसपी-बीएसपी सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के करीबी एक मंत्री के सरकारी घर में बंद रखा गया था।
मायावती ने इस घटना को बीएसपी को कमजोर करने और तोड़ने की साजिश का हिस्सा करार देते हुए 31 मई, 1995 को तत्कालीन मुलायम सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। उसी के बाद 2 जून को स्टेट गेस्टहाउस कांड के बाद राज्य में बीजेपी के समर्थन से मायावती पहली बार मुख्यमंत्री बनी थीं।
यही वजह है कि बीजेपी इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए ही यूपी में जिला और क्षेत्र पंचायत अध्यक्षों का चुनाव जिला और क्षेत्र पंचायत सदस्यों के चुनाव के साथ ही कराने पर विचार कर रही है। फिलहाल केवल ग्राम पंचायत अध्यक्ष का चुनाव ग्राम पंचायत सदस्यों के साथ ही सीधे कराया जाता है। नई प्रणाली में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में जिला और क्षेत्र पंचायतों में भी सदस्योंऔर अध्यक्षों का चुनाव एक साथ कराया जा सकता है।
Published: 04 Jul 2019, 8:59 PM IST
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि इस बार ग्रामीण इलाकों में पार्टी की जड़ें मजबूत करने के लिए ग्राम पंचायत से लेकर जिला पंचायत का चुनाव पार्टी के बैनर तले लड़ा जाएगा। अब तक वह केवल नगर पंचायत चुनाव ही पार्टी के चुनाव निशान पर लड़ती थी, क्योंकि उसे शहरी इलाकों में भरपूर समर्थन का भरोसा था। लेकिन अब विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव में तीन चौथाई से ज्यादा सीटें जीतने के बाद उसे ग्रामीण इलाकों से भी अच्छा समर्थन मिलने का भरोसा बना है।
पिछले ग्राम पंचायत चुनाव में बीजेपी ने उम्मीदवारों को समर्थन की सूची जारी की थी। लेकिन इस बार उम्मीदवार बाकायदा पार्टी निशान पर ही लड़ेंगे। यदि वह वहां भी इतनी धमक से जीतती है जितनी कि लोकसभा और विधानसभा चुनावों में जीती थी तो उसे लगता है कि जमीनी स्तर पर पार्टी इतनी मजबूत हो जाएगी कि पश्चिम बंगाल या त्रिपुरा की तरह अगले कई दशकों तक उसे सत्ता से हटाना मुश्किल होगा।
(नवजीवन के लिए सत्येंद्र त्रिपाठी की रिपोर्ट)
Published: 04 Jul 2019, 8:59 PM IST
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Published: 04 Jul 2019, 8:59 PM IST