राजनीति

झारखंड के आदिवासी बेल्ट से एनडीए का सफाया, 28 सीटों में से महज एक पर मिली जीत

झारखंड के आदिवासी बेल्ट में बीजेपी को लगातार दूसरी बार झटका लगा है। इससे पहले, संसदीय चुनाव में पार्टी को राज्य की कुल 14 लोकसभा सीटों में से सभी पांच आदिवासी बहुल सीटों पर करारी हार का सामना करना पड़ा था।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

झारखंड में हाल में संपन्न विधानसभा चुनावों में राज्य के आदिवासी बेल्ट में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का प्रदर्शन बेहद निराशानजक रहा। राज्य में आदिवासी बहुल 21 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने के बावजूद राजग को महज एक सीट से संतोष करना पड़ा।

दूसरी ओर, झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) नीत सत्तारूढ़ गठबंधन मजबूत आदिवासी लहर को हवा देने में सफल रहा और 27 सीटों पर विजयी बनकर उभरा।

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झारखंड के आदिवासी बेल्ट में बीजेपी को लगातार दूसरी बार झटका लगा है। इससे पहले, संसदीय चुनाव में पार्टी को राज्य की कुल 14 लोकसभा सीटों में से सभी पांच आदिवासी बहुल सीटों पर करारी हार का सामना करना पड़ा था।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाला सत्तारूढ़ गठबंधन शनिवार को 81 सदस्यीय विधानसभा की 56 सीटें जीतकर लगातार दूसरी बार झारखंड की सत्ता पर काबिज हुआ। वहीं, चुनाव अभियान के दौरान एड़ी-चोटी का जोर लगाने वाला राजग महज 24 सीटें हासिल कर सका।

विधानसभा चुनावों में जेएमएम और कांग्रेस ने आदिवासी बेल्ट की 27 सीटों पर कब्जा जमाया, जबकि बीजेपी महज सरायकेला में जीत दर्ज करने में सफल रही, जहां उसने पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन को मैदान में उतारा था।

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चंपई विधानसभा चुनावों से पहले जेएमएम छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए थे। उन्होंने हेमंत सोरेन नीत पार्टी पर उनका अपमान करने का आरोप लगाया था।

हालिया विधानसभा चुनावों में आदिवासी बेल्ट की 20 सीटें अकेले जेएमएम की झोली में गईं। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, पार्टी को लोकलुभावन योजनाओं के अलावा “मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ कथित अन्याय का मुद्दा उठाने से पैदा हुई सहानुभूति लहर” का फायदा मिला।

वहीं, जेएमएम की सहयोगी कांग्रेस सात सीटों पर विजयी रही। जबकि, 2014 के विधानसभा चुनावों में पार्टी आदिवासी बेल्ट में खाता तक खोलने में नाकाम रही थी। वहीं, 2019 के लोकसभा चुनावों में उसने छह सीटों पर कब्जा जमाया था।

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आदिवासी बहुल सीटों पर जेएमएम के दबदबे में वर्ष 2014 से ही वृद्धि देखी जा रही है। उस साल के विधानसभा चुनावों में जहां पार्टी ने 13 सीटें हासिल की थीं, वहीं 2019 के चुनावों में उसकी सीटों का आंकड़ा बढ़कर 19 हो गया था।

बीजेपी ने 2014 के विधानसभा चुनावों में आदिवासी बेल्ट की 11 सीटों पर जीत दर्ज की थी, लेकिन 2019 के चुनावों में पार्टी महज दो सीटों पर सिमटकर रह गई।

नवंबर 2000 में झारखंड राज्य के गठन के बाद पहली बार ऐसा हुआ है कि बीजेपी को खूंटी विधानसभा सीट पर हार झेलनी पड़ी है।

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वर्ष 2000, 2005, 2009, 2014 और 2019 के विधानसभा चुनावों में खूंटी से लगातार पांच बार विधायक चुने गए बीजेपी नेता नीलकंठ सिंह मुंडा ने इस बार 42,053 वोटों के अंतर से झामुमो उम्मीदवार सूर्या मुंडा के हाथों यह सीट गंवा दी।

बीजेपी के टिकट पर घाटशिला सीट से किस्मत आजमाने वाले बाबूलाल सोरेन (चंपई सोरेन के बेटे) और पोटका से मैदान में उतरी मीरा मुंडा (पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी) को भी हार का सामना करना पड़ा।

बाबूलाल को जेएमएम के रामदास सोरेन ने 22,446 वोटों से शिकस्त दी। वहीं, मीरा को जेएमएम उम्मीदवार संजीब सरदार ने 27,902 वोटों के अंतर से हराया।

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लोकसभा चुनावों से पहले बीजेपी का दामन थामने वाली कांग्रेस की पूर्व सांसद गीता कोड़ा को भी हार का सामना करना पड़ा। जगन्नाथपुर में कांग्रेस उम्मीदवार सोना राम सिंकू ने उन्हें 7,383 मतों से मात दी।

इसके अलावा, गुमला में बीजेपी के पूर्व लोकसभा सांसद सुदर्शन भगत को जेएमएम के भूषण तिर्की से 26,301 वोटों से हार झेलनी पड़ी। जबकि, बिशुनपुर में पार्टी के राज्यसभा सांसद समीर उरांव को जेएमएम के चमरा लिंडा ने 32,756 वोटों से शिकस्त दी।

बीजेपी का चुनाव प्रचार अभियान “बांग्लादेशी घुसपैठ”, भ्रष्टाचार और कानून-व्यवस्था की स्थिति पर केंद्रित रहा, इसके बावजूद जेएमएम हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना के आक्रामक प्रचार की बदौलत आठ पीवीटीजी (विशेष रूप से कमजोर आदिवासी) सहित 32 जनजातियों में यह भरोसा जगाने में कामयाब रही कि पार्टी उनके हितों को ध्यान में रखते हुए कल्याणकारी उपाय करेगी।

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जेएमएम की ‘मईया सम्मान योजना’ ने भी पार्टी की जीत में अहम भूमिका निभाई। इस योजना के तहत 18 से 51 साल के आयु वर्ग की महिलाओं को हर महीने 1,000 रुपये की आर्थिक मदद दी जाती है। पार्टी ने विधानसभा चुनावों में जीत के बाद सहायता राशि बढ़ाकर 2,500 रुपये प्रति माह करने का वादा किया था।

हेमंत सोरेन ने 1.75 लाख से अधिक किसानों को लाभ पहुंचाने के इरादे से दो लाख रुपये तक के कृषि ऋण माफ कर दिए। इसके अलावा, उनकी सरकार ने बकाया बिजली बिल माफ कर दिया और 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली प्रदान करने और सार्वभौमिक पेंशन जैसी कल्याणकारी योजनाएं शुरू कीं।

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चुनाव विश्लेषकों के मुताबिक, हेमंत और कल्पना आदिवासी मतदाताओं के बीच सहानुभूति की लहर पैदा करने में कामयाब रहे, जबकि बीजेपी सत्ता विरोधी भावना के बावजूद इसका फायदा उठाने में नाकाम रही।

राजनीतिक पर्यवेक्षक और रांची विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ. बागीश चंद्र वर्मा ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “मईया सम्मान योजना जैसी कल्याणकारी योजनाओं ने आदिवासी वोटों को अपने पक्ष में करने में ‘इंडिया’ (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस) गठबंधन की मदद की। दूसरी ओर, बीजेपी का ‘माटी, बेटी, रोटी’ नारा और घुसपैठ का मुद्दा आदिवासियों को नहीं लुभा सका, क्योंकि इन्हें चुनाव से पहले ही उठाया गया था।”

सूत्रों की मानें तो बीजेपी के खराब प्रदर्शन के लिए पार्टी में मौजूद अंदरूनी कलह भी जिम्मेदार थी।

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