जम्मू एवं उधमपुर लोकसभा सीटों से नेशनल कांफ्रेंस (एनसी) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने अपने उम्मीदवार न उतारने का फैसला किया है, जिसके चलते इन संसदीय क्षेत्रों में पलड़ा कांग्रेस की ओर झुका हुआ प्रतीत हो रहा है।
सिख समुदाय द्वारा जम्मू में कांग्रेस के उम्मीदवार रमन भल्ला का समर्थन करने का निर्णय भारतीय जनता पार्टी के जुगल किशोर शर्मा पर भारी पड़ सकता है। जम्मू शहर और जम्मू लोकसभा सीट के अन्य जगहों के गुरुद्वारों में यह घोषणा की जा रही है कि सिख समुदाय ने रमन भल्ला को समर्थन देने का फैसला किया है।
कांग्रेस के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन पर सहमति बनने के बाद एनसी ने दोनों सीटों पर अपने उम्मीदवार नहीं उतारने का फैसला किया है। एनसी के अध्यक्ष डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने जम्मू शहर से दो दिन पहले कांग्रेस उम्मीदवार रमन भल्ला और अन्य उम्मीदवार विक्रमादित्य सिंह के पक्ष में प्रचार अभियान शुरू कर चुके हैं। वहीं नेशनल कांफ्रेंस के कट्टर विरोधी पीडीपी ने भी दोनों सीटों से 'धर्मनिरपेक्ष मतों' को मजबूती देने के लिए अपने उम्मीदवार न उतारने का फैसला किया है।
बीजेपी की तरफ से जम्मू सीट से जुगल किशोर शर्मा और उधमपुर सीट से प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह दोबारा चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन पार्टी के लिए आसान दिख रही दोनों सीटों पर अब कड़ा मुकाबला होने की संभावना है।
'धर्मनिरपेक्ष ताकतों' के एकसाथ आने और सिख समुदाय के उन्हें समर्थन देने से बीजेपी के जुगल किशोर शर्मा के लिए एक गंभीर चुनौती पैदा हुई है।
राज्यसभा में विपक्ष के नेता और जम्मू एवं कश्मीर के पूर्व मंत्री गुलाम नबी आजाद डोडा जिले के भद्रवाह शहर से आते हैं, जो उधमपुर संसदीय सीट के तहत है। आजाद चिनाब घाटी के जिलों- डोडा, किश्तवार, रामबन और रईसी सीट पर अपना मजबूत प्रभाव रखते हैं। सभी सीटें उधमपुर लोकसभा सीट के अंतर्गत आती हैं। जितेंद्र सिंह ने हालांकि 2014 में उन्हें हराया था।
इसके अलावा, बीजेपी के बागी नेता चौधरी लाल सिंह ने डोगरा स्वाभिमान संगठन का गठन किया है और उधमपुर से चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है। उनका कठुआ जिले पर प्रभाव है, जोकि उधमपुर सीट के अंतर्गत ही है। अगर चौधरी चुनाव लड़ते हैं तो, जितने भी वोट वह प्राप्त करेंगे, उससे सीधे बीजेपी को ही नुकसान होगा। लाल सिंह पीडीपी-बीजेपी गठबंधन में मंत्री थे, लेकिन उन्हें कठुआ दुष्कर्म व हत्याकांड के बारे में विवादास्पद बयान देने के बाद पद से हटा दिया गया था।
इसलिए उधमपुर से एनसी और पीडीपी के चुनाव नहीं लड़ने के फैसले के बाद जितेंद्र सिंह के लिए भी यहां की राह आसान नहीं होने वाली है।
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