हरियाणा में बीजेपी के साथ सत्ता में भागीदार जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) राजस्थान के चुनाव परिणाम के बाद मुसीबत में घिरती दिख रही है। राजस्थान की सत्ता का ताला जेजेपी की चाबी से ही खुलने के दावे के साथ वहां के चुनाव मैदान में उतरी दुष्यंत चौटाला की पार्टी की अपने सभी उम्मीदवारों की जमानत गंवाने के बाद, हरियाणा में मिली सत्ता में भागीदारी भी बीजेपी हाईकमान के रहमोकरम पर है। राजस्थान में जेजेपी को महज 0.14 फीसदी वोट मिले हैं। माना जा रहा है कि हरियाणा की सत्ता से भी उसकी कभी भी विदाई का ऐलान हो सकता है।
देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल की विरासत पर दावे के दम पर कभी चौधरी देवीलाल की कर्मभूमि रहे राजस्थान में खम ठोंकने गई जेजेपी वहां की जनता को रास नहीं आई है। चौधरी देवीलाल 1989 में राजस्थान के सीकर से ही चुनाव जीतकर संसद पहंचे थे और देश के उप प्रधानमंत्री बने। यही नहीं, हरियाणा के उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के पिता और जेजेपी अध्यक्ष अजय चौटाला भी 1990 में सीकर की दांता रामगढ़ सीट से और फिर 1993 में हनुमान गढ़ के नोहर विधानसभा क्षेत्र से चौधरी देवीलाल की धमक के दम पर विधायक चुने गए थे। लेकिन राजस्थान की इसी धरा ने चौधरी देवीलाल की चौथी पीढ़ी की सियासी संभावनाओं को जोर का झटका दिया है।
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इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) को दो फाड़कर जन नायक जनता पार्टी के रूप में अपनी अलग पार्टी बनाने वाले दुष्यंत चौटाला को पार्टी बनाने के बाद यह सबसे बड़ा झटका लगा है। 9 दिसंबर, 2018 को जेजेपी बनाने के बाद 2019 में हुए हरियाणा के विधानसभा चुनाव में दुष्यंत चौटाला के 10 विधायक जीत कर आए थे। 75 पार का नारा देकर 40 पर अटकी बीजेपी को सत्ता पर पहुंचने के लिए 90 सदस्यीय विधानसभा में सरकार बनाने के लिए 6 और विधायकों की दरकार थी।
ऐसे में हिसार से लोकसभा सदस्य रहने के दौरान दिल्ली में बने संबंधों का फायदा उठाकर दुष्यंत चौटाला को बीजेपी हाईकमान से हुई चर्चा के बाद सत्ता में मिली भागीदारी में उप मुख्यमंत्री का पद मिल गया, लेकिन इसे स्वाभाविक गठबंधन नहीं माना गया। बीजेपी को यमुना पार भेजने के जेजेपी के वादे पर मिले जाटों के समर्थन के साथ इसे धोखा माना गया। रही-सही कसर किसान आंदोलन के दौरान 700 से अधिक किसानों के शहीद हो जाने के बाद भी दुष्यंत चौटाला के बीजेपी का साथ देने से पूरी हो गई।
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हरियाणा में दरकी जमीन की भरपाई के लिए राजस्थान गई जेजेपी के हिस्से वहां भी मायूसी ही आई है। मायूसी भी ऐसी कि उसके सभी उम्मीदवारों की राजस्थान में जमानत जब्त हो गई। एक भी उम्मीदवार को जीत नसीब नहीं हुई। किंग मेकर बनने की आस में राजस्थान में 25 उम्मीदवार उतार देने वाली जेजेपी को उस वक्त भी झटका लगा था जब उसके अंत में 19 प्रत्याशी ही मैदान में बचे थे। 19 उम्मीदवारों को भी मात्र 57,019 वोट मिले जो राजस्थान में वोटिंग का महज 0.14 फीसदी है। इससे छह गुना अधिक वोट तो नोटा को 0.96 प्रतिशत मिले हैं।
हालत तो यह रही कि पार्टी के चार उम्मीदवारों को 500 से भी कम वोट मिले। फतेहपुर विधानसभा से उतरे नंद किशोर को मिले 23,851 वोट को ही थोड़ा सम्मानजनक माना जा सकता है। जेजेपी ने जिन छह सीटों पर कांटे की टक्कर का दावा किया था, वहां भी पार्टी को तगड़ी हार का मुंह देखना पड़ा है। ऐसे में राजस्थान विधानसभा चुनावों से संभावनाओं के नए दरवाजे खुलने की आस टूटने की भरपाई जेजेपी के लिए आसान नहीं है।
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हरियाणा में जेजेपी के दरक चुके आधार को बखूबी समझ चुकी बीजेपी ने राजस्थान में उसे कोई भाव न देकर संदेश दे दिया था कि भगवा दल आगे की सोच रहा है। जेजेपी नामांकन वापसी तक उम्मीदें संजोए रही कि बीजेपी हाईकमान से उसकी बात बन जाएगी और कुछ सीटें उसे देकर भगवा दल उसके साथ चुनाव में समझौता कर लेगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। जेजेपी को उम्मीद थी कि जैसे 10 सीटें जीतकर हरियाणा में वह बीजेपी के साथ सत्ता में भागीदार बन गई वैसे ही राजस्थान में भी वह किंगमेकर बनकर उभरेगी। जेजेपी के पूरे शीर्ष नेतृत्व ने इसके लिए राजस्थान में पूरा दम भी लगाया। पार्टी के बड़े और मुख्य चेहरे दुष्यंत चौटाला ने भी राजस्थान में लगातार कैंप किया लेकिन उसका कोई भी प्रयास रंग नहीं लाया।
जेजेपी की एक गणित यह भी थी कि यदि उसे राजस्थान में सम्मानजनक वोटिंग प्रतिशत मिल गया तो लोकसभा चुनाव में बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व से उसकी कोई बात बन सकती है और मोलभाव में बीजेपी लोकसभा की एक-दो सीटें उसे दे सकती है। वह भी नहीं हो सका। राजस्थान चुनाव परिणामों के बाद अब दुष्यंत चौटाला के सुर बदल गए हैं। वह कह रहे हैं कि भले ही हम हारे हैं लेकिन जेजेपी राजस्थान के 13 जिलों में अपनी स्थापना कर चुकी है। हम 19 सीटों पर चुनाव लड़े। हमारे पास जहां एक कार्यकर्ता या बूथ एजेंट तक नहीं था वहां हम 60 हजार वोट लेकर आए। यह तो शुरुआत है। अगर पेड़ लगाना है तो बीच से शुरुआत होती है। राजस्थान में यह शुरुआत हो गई है।
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लेकिन राजस्थान के चुनाव परिणामों के बाद बीजेपी क्या सोच रही है, यह शायद हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज की टिप्पणी से ही साफ हो रहा है। अनिल विज ने कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना वाले अंदाज में जेजेपी को उसकी हैसियत बता दी है। विज ने आम आदमी पार्टी को जमानत जब्त पार्टी यानी जेजेपी करार देते हए हमला तो आप पर किया लेकिन निशाना जेजेपी पर था। तीन राज्यों के चुनाव परिणामों के बाद उत्साहित बीजेपी जिस अंदाज में हरियाणा में लोकसभा चुनावों के साथ ही विधानसभा चुनाव कराने की बात कर रही है, उसमें जेजेपी के लिए संभावनाएं न के बराबर ही मानी जा रही हैं।
राजस्थान चुनावों के दौरान यह बात भी कही जा रही है कि जेजेपी, बीजेपी को कुछ सीटों पर नुकसान भी कर रही है। चुनाव परिणाम के बाद यह बात सही साबित होती दिख रही है। जेजेपी ने दांताराम, फतेहपुर, सूरतगढ़, नीमका थाना, हिंदौन, कोटपुतली, भादर, खाजूवाला, गंगापर सिटी, नसीराबद, सूरसागर, तारानगर, सिकर, खंडेला, झोटावाड़ा, बगरू, रामगढ़, भरतपुर और महवा से अपने उम्मीदवार उतारे थे। 19 उम्मीदवार मैदान में थे। जिन सीटों पर जेजेपी के उम्मीदवार थे, उनमें से बीजेपी के दस उम्मीदवारों की हार हुई है। वहीं, कांग्रेस के नौ उम्मीदवार इन सीटों पर जीते हैं जबकि कांग्रेस के साथ समझौते पर खड़ा हुआ राष्ट्रीय लोकदल का प्रत्याशी जीता है।
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