दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा 20,000 रुपये का जुर्माना लगाए जाने के बाद नीतीश कुमार के लिए एक और मुश्किल खड़ी हो सकती है। बिहार के मुख्यमंत्री के खिलाफ चल रहे कॉपीराइट उल्लंघन के मामले में तीन वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों के कोर्ट में पेश होने की संभावना है। इनमें से सेवानिवृत्त हो चुके एक अधिकारी को शिकायतकर्ता ने बचाव पक्ष के गवाह के रूप में नामित किया है। शिकायतकर्ता अतुल कुमार सिंह का दावा है कि अदालत में इन अधिकारियों से जिरह के बाद वह यह साबित कर देंगे कि मुख्यमंत्री और अधिकारियों को पहले से पता था कि जिस किताब को नीतीश कुमार ने लिखने का दावा किया है, वह किताब वास्तव में जेएनयू के शोध छात्र की पीएचडी का शोध पत्र है।
हालांकि, मामले की सुनवाई की अगली तारीख नवंबर में तय है, लेकिन अब तक बिहार कैडर के अधिकारियों नवीन कुमार, सी के मिश्रा और अरुणीश चावला को कोर्ट का समन नहीं मिला है। वर्तमान में मिश्रा केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव हैं, चावला वाशिंगटन में भारतीय दूतावास में पदस्थापित हैं और कुमार सेवानिवृत्त होने से पहले जीएसटीएन (वस्तु एवं सेवा टेक्निकल नेटवर्क) अध्यक्ष थे।
नवीन कुमार ने नेशनल हेराल्ड को बताया कि उन्हें आपत्ति के उठाए जाने के बाद ही साहित्यिक चोरी और कॉपीराइट उल्लंघन के आरोपों के बारे में पता चला।
बिहार के मुख्यमंत्री द्वारा प्रतिवादी के रूप में अपना नाम हटाने के आवेदन को खारिज करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार ने इसे ‘कानून की प्रक्रिया का गंभीर दुरुपयोग’ बताते हुए जुर्माना लगाया था। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि शिकायतकर्ता के पास सिर्फ 'प्रतिवादी' चुनने का अधिकार ही नहीं है, बल्कि पहली नजर में उसकी शिकायत वास्तविक प्रतीत होती है।
अतुल सिंह के गाइड और जेएनयू के शिक्षक द्वारा दिये गए बयानों के अलावा जो बात मुख्यमंत्री के खिलाफ जाती है वह है उनके द्वारा समाचार एजेंसी पीटीआई और भाषा को दिया गया साक्षात्कार। पीटीआई को दिये साक्षात्कार में नीतीश कुमार ने कहा था, ‘मैंने राज्य की मौजूदा हालात पर एक किताब लिखी है।‘ इसके आगे उन्होंने कहा कि केंद्र की यूपीए सरकार से विशेष श्रेणी का दर्जा प्राप्त करने में विफल रहने के एक साल बाद उन्होंने इस किताब पर काम करना शुरू किया था।
समाचार एजेंसी भाषा पर इसी से संबंधित एक खबर का शीर्षक था, ‘सीएम ने लिखी किताब।‘
अतुल कुमार सिंह ने नेशनल हेराल्ड को बताया, ‘यह विश्वास करने के लिए मेरे पास पर्याप्त कारण हैं कि तीनों आईएएस अधिकारी मुख्यमंत्री द्वारा किये जा रहे कॉपीराइट उल्लंघन के बारे में जानते थे और फिर भी उन्होंने मेरी बौद्धिक संपदा पर दावा करने के लिए सीएम की सक्रिय तौर पर मदद की।‘ उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सीएम द्वारा दायर याचिका को उनसे और उनके वकील से छिपाने का प्रयास भी बेकार हो गया।
मई 2009 में पटना स्थित एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट (एडीआरआई) जिसे आमतौर पर आद्री कहा जाता है, ने एक किताब के विमोचन कार्यक्रम का निमंत्रण जारी करते हुए दावा किया था कि नीतीश कुमार द्वारा लिखी गई किताब, ‘स्पेशल केटेगरी स्टेटस: अ केस फॉर बिहार’ का विमोचन लॉर्ड मेघनाथ देसाई द्वारा किया जाएगा। आईएएस अधिकारी नवीन कुमार ने सेंटर ऑफ इकोनॉमिक पॉलिसी एंड पब्लिक फाइनेंस (जिसके वे अध्यक्ष थे) की ओर से एडीआरआई के निदेशक शैबाल गुप्ता के साथ मिलकर इस निमंत्रण को प्रसारित किया था।
शिकायतकर्ता का दावा है कि सी.के. मिश्रा उस समय दिल्ली में बिहार के रेजिडेंट कमिश्नर थे और वह शोधार्थी छात्र के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए जेएनयू अधिकारियों से बात कर रहे थे। अरुनीश चावला वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग में संयुक्त सचिव थे।
जेएनयू में पीएचडी में पंजीकृत और एडीआरआई के सहयोग से बिहार में अपना फील्ड वर्क करने वाले अतुल सिंह को पता चला कि सीएम की लिखी किताब उनके शोध की नकल है। उनके विरोध के बाद एडीआरआई ने किताब का आवरण बदल दिया और दावा किया कि यह किताब मुख्यमंत्री द्वारा लिखी नहीं गई बल्कि समर्थित/अनुलेखित की गई है।
लेकिन उस समय तक लेखक के तौर पर नीतीश कुमार के नाम से छपी किताब की कई प्रतियां आमंत्रित लोगों के हाथों में पहुंच चुकी थीं। अतुल सिंह का दावा है कि पुस्तक में नीतीश कुमार का लिखा सिर्फ दो पाराग्राफ है।
नई दिल्ली में अतुल सिंह ने लॉर्ड देसाई से मुलाकात की थी, जिन्होंने अन्याय को उठाने का विश्वास दिलाते हुए सिंह से इस मुद्दे को आगे नहीं बढ़ाने का वादा ले लिया था। लेकिन उनका दावा है कि एडीआरआई और बिहार सरकार द्वारा उनके खिलाफ शुरू किये गए अभियान से उन्हें गहरी निराशा हुई।
साहित्यिक चोरी और सेंटर ऑफ इकोनॉमिक पॉलिसी एंड पब्लिक फाइनेंस के साथ-साथ जेएनयू से भी वेतन लेने का आरोप लगाते हुए अतुल सिंह के खिलाफ जेएनयू से शिकायत की गई। सिंह पूछते हैं, उस मामले में एडीआरआई या राज्य सरकार द्वारा मेरे खिलाफ प्राथमिकी क्यों नहीं दर्ज करवाई गई।
उन्होंने 2010 में 25 लाख रुपये के मुआवजे की मांग करते हुए मामला दर्ज किया। मामले में दिलचस्प मोड़ तब आया जब नीतीश कुमार जनवरी 2017 में आरोपी की सूची से अपना नाम हटाने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट पहुंच गए।
इस बीच सिंह के खिलाफ जेएनयू द्वारा शुरू की गई जांच चीफ प्रॉक्टर के इस आदेश के साथ बंद कर दी गई कि ‘शिकायत में सिंह के खिलाफ लगाए गए नौकरी (अनियमितता) के आरोप असंगत हैं, इनमें कई विसंगतियां हैं और सबूतों के आधार पर नहीं टिकते हैं। इसलिए, मामले को बंद किया जा रहा है।‘
अजीत कुमार डोवल के साथ बैठक
सिंह का दावा है कि उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित कुमार डोवाल ने बुलाया गया था। "उन्हें (डोवाल) विस्तार से मामले की जानकारी थी। जब मैं उनसे मिला, तो वह मामले में मेरा पक्ष सुनना चाहते थे।" एक अनुमान यह है कि एनडीए ने नीतीश कुमार को बिहार में महागठबंधन तोड़ने के बदले इस कॉपीराइट उल्लंघन के मामले को सुलझाने में मदद की पेशकश की है। हालांकि यह बिहार के मुख्यमंत्री के खिलाफ दर्ज मामलों में सबसे कम महत्वपूर्ण है, लेकिन सुशासन बाबू के लिए सिरदर्द बनने की इसकी क्षमता को कमतर नहीं माना जा सकता है।
यही वजह हो सकती है कि अब एक पीएचडी की डिग्री होने के बाद भी सिंह को अपनी जिंदगी के लिए भागदौड़ करना पड़ रहा है। अपनी जान पर खतरा महसूस करते हुए सिंह लोगों से मुलाकात करने में अनिच्छुक रहते हैं और बार बार अपना ठिकाना और मोबाइल नंबर बदलते रहते हैं। दुर्भाग्य से, उन्हें बहुत बुरी तरह बीमार भी बताया जा रहा है।
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