लोकतंत्र के पन्ने में आज हम आपको बताने जा रहे हैं उत्तर प्रदेश के कैराना लोकसभा सीट के इतिहास के बारे में। फिलहाल इस सीट पर बीएसपी, एसपी और आरएलडी गठबंधन का कब्जा है। 2018 में हुए लोकसभा उपचुनाव में तबस्सुम हसन ने बीजेपी उम्मीदवार को हराया था। इस बार भी महागठबंधन का पलड़ा भारी दिख रहा है। 2014 लोकसभा चुनाव में इस सीट पर बीजेपी का कब्जा था लेकिन सांसद हुकुम सिंह के निधन के बाद यहां उपचुनाव कराया गया। इस उपचुनाव में एसपी, बीएसपी और आरएलडी ने गठबंधनकर चुनाव लड़ा। बीजेपी 2018 उपचुनाव में यहां से हार गई।
कैराना लोकसभा सीट साल 1962 में अस्तित्व में आई थी। पहले ही चुनाव में यहां से जाट किसान नेता यशपाल सिंह ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीत हासिल की। कैराना की सबसे खास बात यह है कि यहां कभी भी किसी एक दल का वर्चस्व नहीं रहा। लगभग हर चुनाव में यहां के लोगों ने अपने सांसद को बदल दिया। 1967 में भी कांग्रेस को यहां से हार का सामना करना पड़ा। संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के गयूर अली खान चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंचे। साल 1971 में कांग्रेस ने यहां खाता खोला और शफकत जंग ने चुनाव जीता। हालांकि 1977 और 1980 के चुनावों में ये सीट जनता दल के पास रही। 1984 में कांग्रेस के चौधरी अख्तर हसन ने बड़ी जीत दर्ज की। जनता दल ने फिर इस सीट पर वापसी की और 1989, 1991 के चुनावों में जनता दल के हरपाल सिंह ने अख्तर हसन को हराया।
1996 लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के मुनव्वर हसन चुनाव जीते। तो वहीं 1998 में पहली बार कैराना से बीजेपी को जीत नसीब हुई। बीजेपी के वीरेन्द्र वर्मा ने एसपी के मुन्नवर हसन को हरा दिया। हालांकि अगले दो चुनाव में आरएलडी ने यहां से जीत हासिल की। 1999 में आमीर आलम और 2004 में अनुराधा चौधरी सांसद बने। 2009 के लोकसभा चुनाव में मुन्नवर की पत्नी तबस्सुम ने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और लोकसभा पहुंची। 2014 में बीजेपी के दिवंगत हुकुम सिंह ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी। जबकि 2018 में हुए उपचुनाव में तबस्सुम हसन फिर से यहां से सांसद चुनी गईं।
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