हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला को फतह करना भारतीय जनता पार्टी के लिए हमेशा मुश्किल सवाल रहा है। हिमाचल प्रदेश के 6 बार मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह के गढ़ को भेदना इस बार भी भगवा दल के लिए दूर की कौड़ी नजर आ रहा है। कथित मोदी लहर में भी बीजेपी शिमला जिले की 8 विधानसभा सीटों में से महज 3 ही जीत पाई थी। फिर इस बार तो हवा का रुख और बदला-बदला है। सेब बागानों के आकर्षण से भरपूर शिमला जिले की धरती ने कभी भी बीजेपी को शिद्दत से गले नहीं लगाया है।
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हिमाचल के मतदाताओं के बीच तैर रहे मुद्दे भारतीय जनता पार्टी के रिवाज बदलने के दावे की राह का रोड़ा बन बनते दिख रहे हैं। शिमला की फिजा भी इन्हीं मुद्दों से सराबोर है। सेब बागानों के लिए मशहूर इस बेल्ट में सेब के पैकेजिंग मैटीरियल पर जीएसटी 12 से 18 फीसदी करना भी यहां एक बड़ा मुद्दा है। लोगों के पास मुद्दों की एक लंबी फेहरिस्त है। शिमला शहर से लेकर दूर-दराज के इलाके तक मुश्किलों से जूझते लोगों के सवाल यहां सभी की जुबां पर हैं। शिमला के माल रोड पर मिले रोहड़ू के रहने वाले, लेकिन अब शिमला निवासी रिटायर्ड आईपीएस बीके धान्टा कहते हैं कि शिमला से लेकर दिल्ली तक बीजेपी की सरकारें सिर्फ बातें करती रहीं। प्रधानमंत्री हिमाचल के चाहे जितने चक्कर लगा लें यहां के लोगों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। लोगों ने पहले ही तय कर लिया है कि क्या करना है। लोग परेशान हो गए हैं। इस सरकार ने बड़े-बड़े वादे छोड़कर कुछ नहीं किया। कोरोना काल में सब कुछ तबाह हो गया और सरकार कहीं नजर नहीं आई। महंगाई ने तो आम आदमी की कमर तोड़ कर रख दी है। बेशक, पैसा और शराब भी इन लोगों ने हिमाचल में झोंक दिया है, लेकिन इससे भी कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है।
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शिमला के रिज में स्थित आशियाना कैफे में मिले विजय कुमार और राजिंदर ने एक नए तथ्य का खुलासा किया। ओल्ड पेंशन स्कीम पर बीजेपी नेताओं के जुबान न खोलने के सवाल पर वह बोले कि नई पेंशन स्कीम में कर्मचारियों के वेतन से 2 फीसदी कट जाता था। यह 2 फीसदी इन्होंने पार्टी फंड में दे दिया और वहां से यह पैसा शेयर मार्केट में लगा दिया गया, जो अब डूब चुका है। यह बड़ा अमाउंट है। लिहाजा, इस मसले पर बोलने के लिए इनके पास कुछ नहीं है। हिमाचल में 3 लाख रेगुलर कर्मचारी, तकरीबन डेढ़ लाख पेंशनर और करीब 40 हजार आउट सोर्स कर्मचारी हैं। कुल मिलाकर कर्मचारियों की तादाद तकरीबन 5 लाख हो जाती है। यदि एक कर्मचारी के साथ औसतन 4 सदस्य भी जुडे हुए मानें तो यह संख्या 20 लाख हो जाती है। विजय और राजिंदर का कहना था कि सिर्फ ओपीएस का मसला ही इस सरकार की विदाई के लिए पर्याप्त है। वह कहते हैं कि हड़तालें हुईं। आउटसोर्स कर्मचारियों को भी इन्होंने बुलाया और कहा कि रेगुलर कर देंगे, लेकिन बाद में किया कुछ नहीं। पूरे 5 साल यह झूठ पर झूठ बोलते रहे। लोग बेवकूफ तो नहीं हैं। महंगाई और बेरोजगारी चरम पर है। युवा धक्के खा रहे हैं। कहीं नौकरी है नहीं। आम आदमी कैसे जिंदा रहेगा। कर्मचारियों के मसले कितने गंभीर हैं यह कसुम्प्टी विधानसभा क्षेत्र में पर्यटन स्थल कुफरी में मिले प्रतापचंद की बात से और समझा जा सकता है। प्रतापचंद कहते हैं कि वह कुफरी में पिछले 11 साल से वाटर गार्ड के पद पर हैं। उन्हें सिर्फ 4500 रुपये वेतन के तौर पर मिलते हैं। कुफरी में पहले 6 वाटर गार्ड होते थे। अब मैं अकेला हूं। लोग रिटायर होते हो गए और उनकी जगह सरकार ने एक भी भर्ती नहीं की। न तो 6 की जगह मैं अकेला काम कर सकता हूं और न इस वेतन में गुजारा हो पाता है। 11 साल यहां नौकरी करने के बाद अब जाएं भी तो कहां जाएं। हड़तालें भी कीं, लेकिन उसका भी सरकार पर कोई असर नहीं हुआ।
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ठियोग विधानसबा के प्रतापघाट चौक में जनरल स्टोर के मालिक भरत सिंह वर्मा और प्रेम सिंह कहते हैं कि ओपीएस ही बीजेपी के लिए मुसीबत का सबब बन जाएगा। बीजेपी के घोषणा पत्र में किए गए समान नागरिक संहिता लाने के सवाल पर भरत सिंह कहते हैं कि हमें तो पता भी नहीं हैं कि यह है क्या। इसकी यहां लाने की जरूरत ही क्या है। छात्राओं को साईकिल और स्कूटी बांटने के वादे के सवाल पर वह कहते हैं कि इसकी यहां किसी को जरूरत नहीं है। 5 मेडिकल कालेज खोलने के बीजेपी के वादे पर वह कहते हैं कि पहले क्यों नहीं खोले। यहां पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का असर भी साफ दिखता है। भरत सिंह और प्रेम सिंह कहते हैं कि वीरभद्र सिंह ने यहां बहुत काम करवाए हैं। जाते-जाते भी वह बस अड्डा समेत करीब आधा दर्जन काम यहां करवा गए। वह कहते हैं कि सेब के पैकेजिंग मैटीरियल पर 12 से 18 फीसदी जीएसटी करने से भी यहां बड़ी नाराजगी है। महंगाई ऐसा विषय है, जो गरीब को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। ठियोग विधनासभा क्षेत्र कांग्रेस की दिग्गज नेता विद्या स्टोक्स का गढ़ रहा है। वह यहां से तकरीबन दो दशक से ज्यादा समय तक विधायक रही हैं। प्रताप घाट में ही कैटरिंग और टेंट स्टोर चला रहे राजीव धीमान कहते हैं कि कई प्रत्याशी होने से ठियोग में मुकाबला तो कड़ा है। चुनाव के समीकरण बताते हुए वह यह मानते हैं कि पिछले 5 साल में इस सरकार ने कुछ नहीं किया। ठियोग बस टैंड पर 50 साल से अखबार बेंच रहे दुर्गा दत्त सवाल करते ही कहते हैं कि हिमाचल में रिवाज तो ऐसे बदलता नहीं। वह कहते हैं कि 5 साल में इन्होंने राज्य पर कर्ज चढ़ाने के अलावा और किया क्या है। 5 साल में न नौकरी दी और न महंगाई कम करने के लिए कुछ किया। दुर्गा दत्त कहते हैं कि पहले प्रधानमंत्री चुनाव के वक्त 2-3 रैलियां ही करते थे। अब तो यह शहर-शहर घूम रहे हैं। करोड़ों तो इसी पर फूंक रहे हैं। इसी पैसे का ही कुछ जनता के लिए कर देते। दुर्गा दत्त कहते हैं कि गली-गली प्रधानमंत्री को घूमने की क्या जरूरत पड़ी है। लोग समझ रहे हैं।
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प्रधानमंत्री को हर हफ्ते यहां आना तो शोभा भी नहीं देता। दुर्गा दत्त एक गंभीर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि बेरोजगार और पढ़े-लिखे युवक दिहाड़ी पर बीजेपी के प्रचार में घूम रहे हैं। यह जान बूझकर इन युवाओं को रोजगार नहीं दे रहे। यदि इन्हें रोजगार मिल जाएगा तो फिर इनके लिए जिंदाबाद-मुर्दाबाद कौन करेगा। बीजेपी के समान नागरिक संहिता के वादे पर दुर्गादत्त का कहना था कि यह हिंदू-मुसलमान हिमाचल में नहीं चलेगा। यह साबित करता है कि हिमाचल का मतदाता कितना जागरूक है। हर व्यक्ति के पास एक फेहरिस्त है, जिसे लेकर वह वर्तमान सरकार से सवाल पूछ रहा है। इससे एक बात फिर साफ निकल कर आई बीजेपी के लिए कांग्रेस के गढ़ रहे शिमला को फतह करना दूर की कौड़ी है।
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शिमला जिले के 8 विधनासभा क्षेत्रों में 50 उम्मीदवार अपना भाग्य आजमा रहे हैं। ठियोग विधानसभा क्षेत्र से 8, चौपाल से 6, कसुम्प्टी 6, शिमला शहर से 7, शिमला ग्रामीण से 6, जुब्बल कोटखाई से 6, रामपुर से 5 और रोहड़ू विधानसभा क्षेत्र से 6 उम्मीदवार मैदान में है। शिमला हमेशा से कांग्रेस का गढ़ रहा है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी कथित मोदी लहर के बावजूद भारतीय जनता पार्टी यहां 3 सीटें ही जीत पाई थी। 4 सीटें कांग्रेस को और 1 सीट सीपीएम उम्मीदवार को मिली थी। हिमाचल के 12 जिलों में से शिमला की 8 सीटें, कांगड़ा की 15 सीटें और मंडी की 10 सीटें सबसे अहम मानी जाती हैं। 2017 में कांगड़ा और मंडी में बीजेपी को एकतरफा जीत मिली थी। इन दो जिलों की 25 सीटों में से 20 बीजेपी के खाते में गई थीं। शिमला की 3 सीटें मिलाकर 3 अहम जिलों की 33 में से बीजेपी ने 23 सीटें जीतकर हिमाचल में सरकार बनाई थी। कुल 68 विधायकों वाली हिमाचल विधानसभा में 23 की संख्या मायने रखती है। इस बार हवा का रुख कुछ उल्टा दिख रहा है। शिमला तो वैसे भी बीजेपी को कभी नहीं भाया है। शिमला के कसुम्प्टी विधानसभा क्षेत्र में 12 चुनाव में बीजेपी महज 3 बार ही जीती है। 1998 के बाद तो बीजेपी यहां कभी नहीं जीती। इस बार बीजेपी ने दिग्गज मंत्री सुरेश भारद्वाज को विस क्षेत्र शिमला शहर से हटाकर कसुम्प्टी से उतार दिया है। यह भी कहा जा रहा है कि उन्हें बलि का बकरा बनाया गया है। सीट बदले जाने की टीस भी खुद सुरेश भारद्वाज निकाल चुके हैं। वह सार्वजनिक तौर पर कह चुके हैं कि मेरा तो यहां वोट भी नहीं है। मैं चुनाव नहीं जीतूंगा। जिले की अधिकांश सीटों पर बीजेपी एंटीइंन्कंबेंसी से जूझ रही है।
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