उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मेरठ की सभी विधानसभा सीट पर बीजेपी खराब स्थिति में है। मेरठ को लेकर उसके नेताओं की पेशानी पर बल हैं। सोतीगंज की पुलिस कार्रवाई और मुस्लिम वोटों का बंटवारा ही उनकी आखिरी उम्मीद है। इस ग्राउंड रिपोर्ट में मेरठ की सभी 7 सीटों पर मतदाताओं में बीजेपी के खिलाफ गुस्सा नजर आया।
मेरठ की किठौर विधानसभा के एक गांव अमीनाबाद के वसीम अकरम 3 साल पहले के एक घटनाक्रम को याद करते हुए बताते हैं कि हमारे गांव के एक युवक इकराम के लापता होने के बाद गांव के लोग सामूहिक प्रयास से उसे तलाशने में लग गए। गांव में बहुत मिलनसार माहौल होता है, पूरा गांव साथ में था। गांववालों में चर्चा हुई कि किसी नेता की मदद ली जाए। कुछ लोगों ने कहा कि पूर्व मंत्री शाहिद मंजूर के पास चलते हैं। कुछ ने कहा कि उनकी सरकार नहीं है, तो प्रशासन शायद उनकी न सुने। गांव में आपस में प्रेम है, पंचायत हुई। जाटों ने कहा कि बीजेपी के विद्यायक सत्यवीर त्यागी के पास मदद के लिए वो जाएंगे। जाट हमें साथ लेकर गए और वहां विद्यायक जी ने सरेआम कहा कि "वैसे मैं 'इनके' काम करता नही हूं, मगर आप साथ आए हैं तो कर दूंगा"।
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वसीम अकरम बताते हैं कि इस बात पर हमारे गांव के जाट भाई उखड़ गए। उन्होंने कहा कि रहने दो विधायक हम अपना काम खुद करा लेंगे। वो नाराज होकर चले गए। अब जब विधायक जी गांव में वोट मांगने पहुंचे तो किसी ने उनसे सीधे मुंह बात नहीं की। वसीम अकरम बताते हैं कि उनके जाट और मुस्लिम बहुल गांव अमीनाबाद में प्रेम-भाईचारा तो पहले से ही है मगर इस बार वोट डालने में कोई कन्फ्यूजन नहीं है। गांव में किसान आंदोलन का बहुत असर है, स्थानीय विधायक से नाराजगी भी है।
इसी गांव के जाकिर अली बताते हैं कि गांव पॉलिटिक्स में जनता के बीच रहने वाले और उनकी सुनने वाले का खासा असर रहता है। यहां के गठबंधन के प्रत्याशी शाहिद मंजूर एक खानदानी राजनेता हैं और वो लगातार संपर्क में रहते हैं। मनु शर्मा हमें बताते हैं कि यह बात आश्चर्यजनक है कि इस तरह के माहौल में भी व्यक्तिगत रूप से प्रत्याशी को वोट किया जा रहा है। शाहिद मंजूर का अपना असर है।
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किठौर विधानसभा मेरठ जनपद की सबसे चर्चित विधानसभा सीट है। इसे मुस्लिम राजनीति की जिले भर की धुरी समझा जाता है। यहां से बीजेपी के सतवीर त्यागी और सपा के शाहिद मंजूर के बीच मुकाबला है। यही एक ऐसी विधानसभा सीट है, जहां जातीय गणित फेल हो गई है। इसका कारण यह है कि बड़ी संख्या में यहां व्यक्तिगत संबधों पर वोट किया जा रहा है।
जाकिर अली बताते हैं कि 2017 का चुनाव हारने के बाद शाहिद मंजूर ने विभिन्न गांवों में आपसी रंजिश दूर करवाने का एक बड़ा काम किया। दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से यहां हर चुनाव में हिंसा हो ही जाती थी। शाहिद मंजूर अनुभव के साथ और अधिक परिपक्व हो गए हैं। किठौर में 31 फीसद मुस्लिम के साथ दलित, गुर्जर और त्यागी मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। बीएसपी और कांग्रेस दोनों गुर्जर प्रत्याशी लड़ा रहे हैं।
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किठौर के पल्ली गांव के भरत सिंह कहते हैं कि 60 हजार गुर्जर वोटों ने चारों ही पार्टी को खुश करने का मन बना लिया है और वो शाहिद मंजूर को भी छकवा (अच्छी मात्रा में) वोट देंगे। भरत सिंह बताते हैं कि बीजेपी के विधायक की निष्क्रियता और शाहिद मंजूर का हारने के बाद भी उनके साथ खड़े रहना उनके पक्ष में जाता है। किठौर विधानसभा सीट से शाहिद मंजूर कई बार विधायक रह चुके हैं। उनके पिता मंजुर अहमद भी यहां से विधायक चुनकर जाते रहे थे। जाट मतदाता इस सीट पर शाहिद मंजूर की ताकत को बहुत अधिक बढ़ा रहे हैं।
मेरठ की 7 विधानसभा सीटों में सिवालखास और सरधना की भौगोलिक स्थिति आश्चर्य पैदा करती है। जैसे सिवालखास लोकसभा बागपत में आती है और सरधना लोकसभा मुजफ्फरनगर में, मगर दोनों सीट मेरठ जनपद में लगती है। सिवालखास में बीजेपी प्रत्याशी के लगातार हो रहे विरोध से जूझ रही है तो सरधना में बीजेपी के फायरब्रांड नेता संगीत सोम की धुन इस बार मधुर नहीं बन पा रही है। सरधना से समाजवादी पार्टी के अतुल प्रधान गुर्जर चुनाव लड़ रहे हैं। जाट मतदाता का समर्थन भी उनका हिसाब किताब मजूबत कर रहा है। अतुल प्रधान यहां से दो बार चुनाव हार चुके हैं।गुर्जर मतदाताओं में यहां उनके प्रति सहानुभूति है।
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सरधना मुस्लिम बहुल सीट है। संगीत सोम ठाकुर और बीजेपी के परम्परागत वोट बैंक के सहारे हैं। मगर मुस्लिमों का एकतरफा समर्थन अतुल प्रधान की मुस्कान का कारण बन गया है। फलावदा कस्बे के शाहबाज अहमद बताते हैं कि पिछले दो विधानसभा चुनाव में अतुल प्रधान चुनाव हार गए थे। ऐसा मुस्लिम वोटों के बंटवारे से हुआ था। इस बार मुस्लिम एकजुट हैं और जाट मतदाता बड़ी तादाद में गठबंधन के साथ हैं। मुसलमानों के एकजुट होने का बड़ा कारण संगीत सोम का व्यवहार भी है।
सरधना से बिल्कुल मिली हुई हस्तिनापुर सीट पर गठबंधन बल्लियां उछल रहा है। इस सुरक्षित सीट का इतिहास है कि जो भी यहां से विधायक बनता है, सूबे में सरकार उसी दल की बनती है। बीजेपी यहां अपने विद्यायक दिनेश खटीक को लड़ा रही है। टकराव इस सीट पर भी सीधे गठबंधन और बीजेपी में दिखाई दे रहा है। कांग्रेस ने यहां फिल्म अभिनेत्री अर्चना गौतम को टिकट दिया है, जो आर्कषण का केंद्र हैं। सपा यहां योगेश वर्मा को लड़ा रही है। योगेश वर्मा इसी सीट से विधायक रह चुके हैं। उनकी पत्नी सुनीता वर्मा मेरठ शहर की मेयर हैं। योगेश वर्मा मेरठ जनपद में दलित राजनीति का सबसे बड़ा चेहरा हैं।
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हस्तिनापुर, किठौर और सरधना में गठबंधन प्रत्याशी का गणित जोरदार दिख रहा है। इन सीटों पर दलित, मुस्लिम और गुर्जर मतदाता कहानी बदलने में सक्षम हैं। बीजेपी ने इस गणित का जवाब ठाकुर, खटीक और त्यागी गठजोड़ से दिया है, जो अपेक्षाकृत कमजोर दिख रहा है। हस्तिनापुर के सुदेश कुमार कहते हैं कि जातियों का गणित और जनता का गणित दोनों बीजेपी सरकार के विरोधी हैं। किसानों का गुस्सा बीजेपी पर फूट कर पड़ने वाला है।
हालात यह है कि बीजेपी मेरठ शहर की जिन तीन सीटों पर मजबूत दिखाई देती है, वहां भी भीतरघात से जूझ रही है। मेरठ शहर, दक्षिण और कैंट तीनों सीट पर बीजेपी मुस्लिम वोटों के बंटवारे के सहारे है। शास्त्रीनगर में रहने वाले शशांक शर्मा बताते हैं कि मेरठ दक्षिण विधानसभा सीट पर सपा, बसपा और मजलिस के प्रत्यशियों के मुस्लिम होने के कारण बीजेपी के सोमेंद्र तोमर की जीत साफ दिखाई दे रही है। सपा यहां आदिल चौधरी को लड़ा रही है, जबकि बसपा ने दिलशाद शौकत को प्रत्याशी बनाया है। मेरठ शहर से बीजेपी ने कमलदत्त शर्मा को टिकट दिया है, जबकि सपा के विद्यायक रफीक अंसारी का खेल कुरैशी मतदाताओं ने बिगाड़ दिया है। मेरठ कैंट में पहली बार बीजेपी दिक्कत में है।
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मेरठ के रशीदनगर के रहने वाले गफ्फार अहमद बताते हैं कि मेरठ दक्षिण और शहर में बीजेपी ने लक्ष्मीकांत वाजपेयी को प्रत्याशी न बनाकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली थी। मगर कुरैशी बिरादरी की नाराजगी ने इसे ऑक्सीजन देने का काम किया है। फिलहाल बीजेपी इन तीन सीटों पर मजबूत दिखाई देती है। फिलहाल बीजेपी के पास मेरठ में 5 विधायक हैं। बीजेपी मेरठ में सोतीगंज में कबाड़ियों के विरुद्ध की गई कार्रवाई को चुनाव में मुद्दा बना रही है। इस कार्रवाई को एक प्रतीक के तौर पर प्रस्तुत कर रही है। हालांकि दलित वोटों की चुप्पी कोई और ही कहानी रच रही है।
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