संसद के उच्च सदन राज्यसभा में सत्ताधारी एनडीए के बहुमत के एकदम निकट पहुंचने को लेकर फैलाई जा रही खबरों का कोई आधार नहीं है। राज्यसभा की 6 सीटों के लिए हुए उपचुनावों में से 4 सीटें एनडीए को मिलने के बाद इस बात की खबरें उड़ाई गईं कि अब उच्च सदन में सत्ता पक्ष बहुमत से अब कुछ ही इंच दूर है। मीडिया में ऐसा आभास दिया गया कि वे सभी विधेयक जिनके कुछ विवादित प्रावधानों से विपक्ष असहमत है, उन्हें अब कुछ ही दिनों में एनडीए के बहुमत में आने के बाद पारित करवा दिया जाएगा।
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केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान (लोक जनशक्ति पार्टी) और अश्विनी वैष्णव (बीजेपी) के क्रमशः बिहार और ओडिशा से निर्विरोध चुनकर आने के बाद सोमवार को राज्यसभा में उन्होंने शपथ लिया। इन दोनों की संख्या को मिलाकर सदन में बीजेपी के सदस्यों की संख्या 76 और एनडीए की कुल संख्या 112 हो गई। बीजेपी की इसके पहले 111 सीटें थीं जो वैष्णव के बीजेपी के कोटे से जीतने के बाद एक बढ़ गई। यह सीट भी बीजू जनता दल अध्यक्ष और मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से पीएम मोदी के व्यक्तिगत आग्रह के बाद बीजेपी को मिली है।
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गौर करने वाली बात यह है कि पासवान बिहार की जिस सीट से उपचुनाव में जीते हैं, वह पहले से ही बीजेपी के पास थी। केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद के लोकसभा के लिए चुने जाने के बाद यह सीट खाली हुई थी। दूसरी ओर गुजरात में जो दो राज्यसभा सीटें बीजेपी के खाते में गई हैं, वे दोनों सीटें भी बीजेपी के पास पहले से थीं। अमित शाह और स्मृति ईरानी के लोकसभा के लिए चुने जाने के बाद उन्होंने अपनी सीटें खाली की थीं। वहीं इस उपचुनाव में ओडिशा की बाकी दो सीटें बीजेडी के खाते में गईं।
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आगामी 18 जुलाई को तमिलनाडु की जो छह सीटें खाली हो रही हैं, उनमें से एक भी सीट बीजेपी को नसीब नहीं होने वाली हैं। राज्य में सत्तारूढ़ एआईडीएमके को पहले की तरह 4 सीटों की बजाय 3 पर ही संतोष करना होगा। ऐसी सूरत में वहां एनडीए के पास कुछ भी पाने को नहीं है।
हालांकि, मोदी सरकार के संसदीय प्रबंधकों को यह ढांढस बंधा है कि राज्यसभा में पूरा बहुमत नहीं होने के कारण उसे बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस और टीआरएस सांसदों की बैसाखी का सहारा मिल सकता है। लेकिन इन पार्टियों के निकट सूत्रों का कहना है कि अपने राज्यों के आंतरिक समीकरणों के लिहाज से वे बीजेपी के हर विधेयक पर आंख मूंदकर अपना समर्थन नहीं देंगे।
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