शिरोमणि अकाली दल और बीजेपी की हरियाणा में जारी सियासी जंग का सीधा नकारात्मक असर पंजाब की चार विधानसभा सीटों के उपचुनाव पर पड़ने लगा है। हरियाणा में आमने-सामने चुनाव लड़ रहे बीजेपी और अकाली दल पंजाब उपचुनाव में गठबंधन करके चुनाव लड़ रहे हैं। इसके तहत दो विधानसभा सीटों पर बीजेपी लड़ रही है और दो पर शिरोमणि अकाली दल। लेकिन चारों सीटों पर ‘गठबंधन धर्म’ तार-तार होता साफ दिख रहा है।
'नवजीवन' की छानबीन बताती है कि अब मंशा 'एक' होकर चुनाव लड़ने-जीतने की बजाए, एक दूसरे को 'सबक' सिखाने की है। भीतरघात का खुला खेल शुरू हो गया है। पंजाब में बीजेपी गठबंधन के साए तले फगवाड़ा और मुकेरियां से चुनाव लड़ रही है तो अकाली दल दाखा और जलालाबाद से। चारों क्षेत्रों की जमीनी सच्चाई यह है कि बड़े अकाली और बीजेपी नेताओं ने फिलहाल तक मंच भी साझा नहीं किया है और दोनों दलों के आम कार्यकर्ता भी एक-दूसरे से सहयोग नहीं कर रहे हैं।
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हरियाणा में शिरोमणि अकाली दल प्रमुख सुखबीर सिंह बादल और बीजेपी के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के बीच कड़वाहट भरी तल्खी और बयानबाजी ने पंजाब में दोनों पार्टियों की राह और ज्यादा मुश्किल कर दी है। तिस पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत की भारत को हिंदू राष्ट्र बताने की टिप्पणी से अकाली तो खफा हैं ही, बीजेपी और उसके सहयोगी दल राष्ट्रीय सिख संगत से जुड़े सिख भी खासे नाराज हैं। जालंधर में अकाली-बीजेपी गठबंधन तालमेल कमेटी में तय हुआ था कि बड़े अकाली और बीजेपी नेता मिलकर चारों हलकोंं में चुनाव प्रचार करेंगे और अपने-अपने स्टार चुनाव प्रचारक चारों उम्मीदवारों के लिए भेजेंगे। लेकिन फिलहाल तक इस पर रत्तीभर भी अमल नहीं हुआ है।
वजह एकदम साफ है- दोनों दिल से साथ नहीं हैं और एक-दूसरे की जड़ें काटने में लगे हैं। एक वरिष्ठ अकाली नेता ने नाम न छापने की शर्त पर दाखा में कहा कि सुखबीर सिंह बादल ने हरियाणा में जाकर जिस तरह बीजेपी को गरियाया, वह भगवा पार्टी की पंजाब इकाई को बर्दाश्त नहीं हो रहा। दो सीटों पर अकाली उमीदवार खड़े हैं और वहां बीजेपी कार्यकर्ता अब पीछे हट रहे हैं। गठबंधन तो नाम भर का बचा है। 22 अक्टूबर के बाद कभी भी बाकायदा टूट सकता है।
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वहीं पंजाब बीजेपी से जुड़े रहे पार्टी के राष्ट्रीय सचिव तरुण चुघ ने सुखबीर के बीजेपी विरोधी बयानों पर तंज कसा कि हरियाणा में बीजेपी सभी सीटें जीतेगी और दोबारा सरकार बनने पर सुखबीर को शपथ ग्रहण समारोह में बतौर मुख्य अतिथि न्योता देंगे। अकाली दल के लोग इस कथन को खुद पर व्यंग्य मान रहे हैं।
पंजाब में दो सीटों पर चुनाव लड़ रही बीजेपी गुटबंदी के चलते भी मुश्किलों में है। उसने स्टार प्रचारकों की जो लिस्ट जारी की थी, उनमें से एक भी अभी तक पंजाब नहीं आया। गुरदासपुर से सांसद सनी देओल का नाम सबसे ऊपर था, बीजेपी के हिस्से वाली मुकेरियांं विधानसभा सीट उन्हीं के संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है। लेकिन स्टार प्रचारक सनी देओल गायब हैं। विधानसभा उपचुनाव की घोषणा के बाद वह एक बार भी पंजाब नहीं आए। अन्य स्टार प्रचारकों का भी ठीक यही हाल है। पंजाब भाजपा के नेता इस पर कुछ कहने से बच रहे हैं।
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उधर, राज्य कांग्रेस हरियाणा में अकालियों और भाजपाइयों में गहरी तनातनी को अहम मुद्दा बना रही है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुनील कुमार जाखड़ पूछते हैं कि “सुखबीर यह बताएं कि जो बीजेपी हरियाणा में किसान और लोक विरोधी है, वह केंद्र में कैसे सही है? क्या इसलिए कि उनके परिवार का एक सदस्य केंद्रीय काबीना में मंत्री है?” जाखड़ और पंजाब कांग्रेस के अन्य वरिष्ठ नेता कहते हैं कि पंजाब में अकाली-बीजेपी गठबंधन कहने को ही बचा है। हकीकत में दोनों एक दूसरे को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
जो भी हो, फिलहाल अकाली-बीजेपी गठबंधन में दरार और भीतरघात का साफ तौर पर सीधा चुनावी फायदा कांग्रेस को मिल रहा है। ऐसा गुपचुप तौर पर गठबंधन के कई नेता और कार्यकर्ता भी मानते हैं। हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर की सोनिया गांधी पर की गई विवादास्पद टिप्पणियों को पंजाब की महिला वोटर जमकर धिक्कार रही हैं। सिख और पंजाब की चारों विधानसभा सीटों पर न्यूनतम असर रखने वाले अन्य अल्पसंख्यक भी मोहन भागवत के हालिया बयानों से खासे खफा हैं। इसका नुकसान भी गठबंधन उम्मीदवारों को उठाना पड़ रहा है।
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