बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को यहां कहा कि जातीय जनगणना समाज बांटने के लिए नहीं बल्कि एकजुट करने के लिए जरूरी है। उन्होंने किसान आंदोलन के संबंध में कहा कि यह कुछ इलाकों की समस्या है। मुख्यमंत्री ने माना कि कोरोना के कारण आर्थिक स्थिति पर भी प्रभाव पड़ा है। मुख्यमंत्री जनता के दरबार कार्यक्रम के बाद पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहा कि कुछ लोग जातिगत जनगणना के खिलाफ बोलते और लिखते हैं, लेकिन यह समाज को बांटने के लिए नहीं है।
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उन्होंने कहा, कुछ लोग जातीय जनगणना के खिलाफ में बोलते और लिखते रहते हैं, लेकिन ऐसी बात नहीं है। यह समाज को बांटने के लिए नहीं बल्कि एकजुट करने के लिए जरूरी है। उन्होंने कहा कि देश के कई अन्य राज्यों से भी जातीय जनगणना के लिए आवाज उठ रही है। निर्णय तो केंद्र सरकार को करना है। अपनी बात तो हम लोगों ने पूरी तौर पर कह दी है। अभी केंद्र की ओर से इस बारे में कोई सूचना नहीं आई है।
उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि वैसे भी अभी जनगणना शुरू नहीं हुई है। अगर जातीय जनगणना होती है तो सभी को लाभ होगा। पिछड़ गए लोगों को आगे निकालने के लिए यह जरूरी है।
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किसान आंदोलन पर पूछे गए एक प्रश्न पर मुख्यमंत्री ने कहा कि यह कुछ इलाकों की समस्या है। केंद्र सरकार ने कई बार बात भी की है। केंद्र सरकार जो उचित समझेगी, वह करेगी। किसान आंदोलन को राजनीति से जोड़ने से संबंध में पूछे जाने पर उन्होंने सीधे तौर पर कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन इतना जरूर कहा कि अगर इस पर कोई राजनीति करता है तो यह उन लोगों की इच्छा है, इस पर हमें कुछ नहीं कहना।
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उन्होंने कहा, राजनीति करने वाले सभी का अपना अलग-अलग तरीका है। हम लोग जनता की भलाई और राज्य के विकास के लिए काम करते हैं। बिहार में कृषि रोड मैप बनाकर कृषि की उत्पादकता बढ़ाने की दिशा में काम हुआ। बड़े स्तर पर उत्पादकता बढ़ी है। अनाज का क्रय (प्रोक्योरमेंट) बढ़ा है।
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कोरोना काल में बेरोजगारी की समस्या बढ़ने से जुड़े एक प्रश्न पर उन्होंने कहा कि कोरोना के कारण कई चीजों में रुकावट आने से स्वाभाविक रूप से आर्थिक स्थिति पर इसका प्रभाव पड़ा है। उन्होंने जल्द से जल्द कोरोना से मुक्ति पाने को जरूरी बताते हुए कहा कि बिहार में लगभग चार करोड़ टीकाकरण हो चुका है। बड़ी संख्या में कोरोना जांच की जा रही है।
आईएएनएस के इनपुट के साथ
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