राजनीति

नरेंद्र मोदी की दूसरी पारी में अमित ही हैं ‘शाह’, बीजेपी में पीएम के ‘मन की बात’ तक नहीं सुनता कोई

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के करीबी कैलाश विजयवर्गीय के बेटे के मामले में पीएम मोदी के सार्वजनिक तौर पर नाराजगी जताने के बावजूद पार्टी की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं होना बहुत कुछ कहता है। पिछली सरकार में बीजेपी के जो नेता अक्सर नजर आते थे, वे सब अब चुप हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

दो महीने में ही मौसम हौले-हौले बदल गया है। कई लोग सीन से ओझल हो गए हैं और एक, सिर्फ एक व्यक्ति हर जगह छाया हुआ है। अब यह न पूछिएगा कि क्या इसका कोई मतलब निकाला जाना चाहिए। अभी कुछ नहीं कह सकते। हां, यह जरूर है कि परिवार, उद्योग से लेकर राजनीति में इस तरह के इशारे के अर्थ बहुत कुछ हो सकते हैं। फिलहाल अभी सिर्फ कुछ घटनाओं पर निगाह डालिए।

आकाश विजयवर्गीय ने इंदौर में 26 जून को नगर निगम के अधिकारी की बल्ले से पिटाई कर दी। आकाश राजनीति में नए हैं लेकिन वह, दरअसल, पिता की परंपरा निभा रहे थे। उनके पिता कैलाश विजयवर्गीय इन दिनों बीजेपी के पावरफुल राष्ट्रीय महासचिव हैं। जब कैलाश ने राजनीति में प्रवेश किया था, तब उन्होंने इसी तरह का व्यवहार इंदौर में एक अफसर के साथ किया था। खैर! इस मामले में तो परंपरा का पालन हो गया।

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पर इस घटना के बाद पीएम मोदी ने 2 जुलाई को बीजेपी संसदीय दल की बैठक में किसी का नाम लिए बिना कहा कि ‘मनमानी नहीं चलेगी। कोई हो... किसी का बेटा हो, इस तरह का अहंकार, दुर्व्यवहार वाला व्यवहार बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। जिन लोगों ने उस आदमी का स्वागत किया है, उन्हें भी पार्टी में रहने का हक नहीं है। उन्हें पार्टी से निकाल दिया जाना चाहिए।’

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस मामले में परंपरा का पालन नहीं हुआ। किसी को पार्टी से नहीं निकाला गया। पीएम मोदी की भी बात पार्टी में नहीं मानी गई। वैसे, यहां यह बता देना जरूरी है कि कैलाश विजयवर्गीय पसंद पार्टी अध्यक्ष और गृह मंत्री अमित शाह के हैं। ऐसे में कोई एक्शन मुश्किल है। सांप-छछुंदर वाला हाल होना ही है!

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खैर, छोड़िए। यह बताइए, मोदी के पहले कार्यकाल में जो लोग टीवी पर, सरकार की जरूरत के समय, दिख जाया करते थे, उनमें से कितने चेहरे आपको इन दिनों, खास तौर से सरकार बनने के बाद, दिख रहे हैं? जरा, स्मृति पर जोर डालिए। अपने को ‘मोदी की बहन’ बताने में फख्र महसूस करने वाली स्मृति ईरानी भी इन दिनों नजर नहीं आ रहीं। प्रत्यक्ष चुनाव में कभी पार्षद का चुनाव भी न जीत पाने वाले रविशंकर प्रसाद ने मोदी लहर में पटना लोकसभा सीट जीत ली, लेकिन ये नए ‘बिहारी बाबू’ पता नहीं कहां गायब हैं। वह तो कानून की तमाम गुत्थियां सुलझाने में अपने को प्रवीण मानते रहे हैं लेकिन उनकी कथित भारी-भरकम अंग्रेजी सुनने को जनता तरस गई है।

मोदी इस बार जब से आए हैं, बाबू राजनाथ सिंह का तो, खैर, शनि चक्र ही चल रहा लगता है। गृह मंत्री थे, तो सब जगह छाए रहते थे। केंद्रीय मंत्रिमंडल में है तो दूसरा स्थान लेकिन लगता है, ऊंट पहाड़ के नीचे आ गया है। इस दफा सरकार बनने के बाद जब कैबिनेट कमेटियां बनीं, तो सबमें कैबिनेट में नंबर थ्री अमित शाह तो थे लेकिन नंबर दो का नाम छह कमेटियों में नहीं था। पता नहीं, दोनों में कौन-सी बात सच हैः ऐसा होने पर राजनाथ ने संघ का दरवाजा खटखटाया और कैबिनेट से इस्तीफे की धमकी तक दी। खैर, हो चाहे जो, उन्हें छह कमेटियों में जगह दे दी गई और वह फिलहाल इस्तीफे से बचे हुए हैं। इन कठिन परिस्थितियों में इस उम्र में इतना ही बहुत है। हां, फोटो-वोटो अखबारों में जब-तब दिख जाती है। तो, यही कम है क्या?

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सबसे बुरा तो नितिन गडकरी को देखकर लगता है। मोदी के पहले कार्यकाल में ऐसा लगता था कि सबसे ज्यादा काम उनका मंत्रालय ही कर रहा है। मीडिया फ्रेंडली हैं, तो उनके चुनाव-क्षेत्र को कुछ अखबार-मैगजीन ने ऐसा फोकस किया, मानो अगले प्रधानमंत्री वही हैं। वह संकेत ऐसे दे भी रहे थे लेकिन प्रकट तौर पर यह कह रहे थे कि वह जो हैं, वही रहना उन्हें पसंद है, वह किसी रैट रेस में नहीं हैं।

अब कैबिनेट कमेटियों की सदस्यता में तो पिछड़ ही गए, मीडिया कवरेज से भी गायब हो गए लगते हैं। उनसे सवाल तो कई पूछे जाने हैंः जैसे उन्होंने कहा था, गंगा की सफाई मार्च, 2019 तक लगभग पूरी हो जाएगी, उसका क्या हुआ; नदियों में मालवाहक जहाज तैरने की जगह दौड़ने लगेंगे और इस वजह से एफएमसीजी प्रोडक्ट्स सड़कों की जगह इनसे ही भेजा जाने लगेगा, वह कब शुरू होगा; कई सड़क परियोजनाएं लगभग पूरी होनी हैं, वे किस स्टेज में हैं। अब किन्हीं को वह मिल ही नहीं रहे कि ये सब पूछा जाए।

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जेपी नड्डा का भी वही हाल है। वह बीजेपी में सचमुच के कार्यकारी अध्यक्ष होकर रह गए हैं। पद पर हैं भी, नहीं भी हैं। मोदी ने यह सोचकर उन्हें पद सौंपा होगा कि अमित शाह के पास इतने तरह के काम हो गए हैं, उन्हें मदद मिलेगी लेकिन नड्डा को लगता है, सब चीज के लिए शाह की अनुमति लेनी पड़ती है। सरकार की तरह पार्टी में भी पत्ता अब शाह के कहने पर ही हिलता है!

वैसे, पहले जिन लोगों को शिकायत थी कि सभी चैनलों पर मोदी ही छाए रहते हैं, वे थोड़ा बदलाव महसूस कर सकते हैं। संसद में ही सही, अपने तरह-तरह के बयानों की वजह से चर्चा मोदी की कम, अपने मोटे भाई अमित शाह की ज्यादा रहती है। वह सारी सीमाएं लांघ जाने का हुनर रखते हैं। आज तक संसद में जिस तरह की भाषा, जिस तरह के तेवर किसी मंत्री ने इस्तेमाल करने का साहस नहीं किया होगा, वह सब कर शाह बड़ी, लंबी, चौड़ी रेखाएं खींच रहे हैं। उनके घटाटोप में तो मानो, प्रधानमंत्री मोदी भी छिप रहे हैं।

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जब दो हिंदू हृदय सम्राट की बात हो और पौराणिक कथा की चर्चा न हो, तो सब कुछ अधूरा लगेगा। इस वजह से यह प्रसंग- कहते हैं, एक दफा राजा जनक सत्संग समारोह में अष्टावक्र का प्रवचन सुन रहे थे। उसी वक्त एक सैनिक दौड़ता हुआ आया और उसने बताया कि उनके महल में आग लग गई है। चूंकि यह महल लकड़ी का बना था, इसलिए आग तेजी से फैल रही थी। जनक ने बिल्कुल शांत चित्त से कहा कि जब वह सत्संग में हों, तो उन्हें इस तरह की सूचना देने का साहस उस सैनिक को कैसे हुआ। वह यहां से चला जाए।

लगता है, मोदी जी उसी गति में पहुंच गए हैं। इसलिए देश के विभिन्न क्षेत्रों में हो रही अजीब-अजीब घटनाओं से वह जरा भी विचलित नहीं होते। वह इन दिनों सिर्फ जल-संकट, पर्यावरण, बाघ, सिंह को लेकर चिंतित रहते हैं। ऐसे में ही शाह के तेवर देखकर शुरू वाली बात दोहराने का मन करता हैः परिवार, उद्योग से लेकर राजनीति तक में इस तरह छा जाने के अर्थ बहुत कुछ हो सकते हैं!

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