राजनीति

लोंगोवाल को पार्टी में लाकर धर्म की राजनीति पर लौटा अकाली दल, खालिस्तान समर्थक पर बीजेपी की चुप्पी सवालों में

लोंगोवाल के अकाली दल की कोर कमेटी का सदस्य बनने का मतलब है कि अब एसजीपीसी पर बादलों का अपरोक्ष नहीं सीधा कब्जा है। सुखबीर सिंह बादल की इस नई रणनीति से नए सिरे से साफ हुआ है कि शिरोमणि अकाली दल दरअसल ‘धर्म और राजनीति’ के घालमेल वाले सिद्धांत पर चल रहा है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

शिरोमणि अकाली दल अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने हाल ही में खालिस्तान का खुला समर्थन करने को लेकर चर्चा में आए शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के प्रधान भाई गोबिंद सिंह लोंगोवाल को पार्टी की कोर कमेटी में शामिल कर पार्टी की पुरानी राजनीति की तरफ लौटने का संकेत दे दिया है। अकाली दल की ओर से यह कदम ऐसे समय उठाया गया है जब एसजीपीसी प्रधान के खालिस्तान समर्थन रुख पर सवालिया निशान उठ रहे हैं और इस बाबत प्रकाश सिंह बादल, सुखबीर सिंह बादल और पार्टी सवालों के घेरे में आ गई है।

गौरतलब है कि 6 जून को भाई गोबिंद सिंह लोंगोवाल ने श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह के साथ के मिलकर सिखों के लिए अलग देश खालिस्तान की खुली हिमायत की और 8 जून को सुखबीर सिंह बादल ने उन्हें अपनी पार्टी की 19 सदस्यीय कोर कमेटी का सदस्य बना दिया। तब तक सभी पूछ रहे थे कि शिरोमणि अकाली दल का एसजीपीसी प्रधान और अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार की खालिस्तान समर्थन पर क्या रुख है? तो क्या अब एसजीपीसी प्रधान को कोर कमेटी में लाकर बादलों और उनकी सरपरस्ती वाले शिरोमणि अकाली दल ने अपना रुख जाहिर कर दिया है?

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दरअसल सर्वोच्च सिख धार्मिक संस्था एसजीपीसी के प्रधान लोंगोवाल का अकाली दल की कोर कमेटी का सदस्य बनने के बाद यह भी साफ हो गया है कि शिरोमणि अकाली दल 'धर्म और राजनीति' के अपने पुराने एजेंडे की तरफ वापस लौट रहा है। माना जा रहा है कि सुखबीर सिंह बादल ने लोंगोवाल को पार्टी में शामिल करके एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है। हालांकि इस कदम ने नए विवादों को जन्म दे दिया है और पंजाब में इसका विरोध भी शुरू हो गया है।

बता दें कि एसजीपीसी एक सर्वोच्च सिख धार्मिक संस्था है और इसे बाकायदा संवैधानिक दर्जा हासिल है। यह गुरुद्वारों की देखभाल करती है और इसका सालाना बजट खरबों रुपए का है। अमृतसर स्थित श्री स्वर्ण मंदिर साहिब और अन्य बड़े-छोटे गुरुद्वारे सीधे इसके नियंत्रण में हैं। लोकसभा और विधानसभा चुनावों की तरह पूरी संवैधानिक प्रक्रिया के जरिए इसके सदस्यों का भी चुनाव होता है। ये सदस्य बाद में प्रधान का चुनाव करते हैं। लंबे अरसे से एसजीपीसी की कार्यकारिणी में बादल समर्थक ही पहुंचते रहे हैं। इसलिए अध्यक्ष भी बादलों की पसंद का ही बनता आया है। मौजूदा अध्यक्ष भाई गोबिंद सिंह लोंगोवाल भी बादलों के खास चेहते हैं। एसजीपीसी ही श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार का चयन भी करती है।

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ऐसे में लोंगोवाल के शिरोमणि अकाली दल की कोर कमेटी का सदस्य बनने का मतलब है कि अब एसजीपीसी पर बादल दल का अपरोक्ष नहीं सीधा कब्जा है। प्रधान ही जब उनके दल की कार्यकारिणी में है तो इसका दूसरा कोई अर्थ नहीं रह जाता है। सुखबीर सिंह बादल की इस नई पहलकदमी से नए सिरे से साफ हुआ है कि शिरोमणि अकाली दल दरअसल 'धर्म और राजनीति' के घालमेल वाले सिद्धांत पर चल रहा है। यह समझना मुश्किल नहीं है कि लोंगोवाल ने किसकी शह पर खालिस्तान की हिमायत की और बादल इस पर खामोशी क्यों अख्तियार किए हुए हैं।

इस पूरे विवाद के बीच 9 जून को चंडीगढ़ में सुखबीर सिंह बादल की अगुवाई में अकाली दल की अहम बैठक हुई। इसमें तमाम मुद्दे उठे, लेकिन अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार और एसजीपीसी प्रधान के खालिस्तान समर्थन पर उठे हंगामे का मुद्दा सिरे से गायब था। माना जा रहा था कि 9 जून की बैठक में सुखबीर बादल, अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ विचार-विमर्श करके इस पर कुछ बोलेंगे। चर्चा तो दूर की बात, इस पर किसी ने भी जुबान तक नहीं खोली। बैठकों के बाद अक्सर मीडिया से मुखातिब होने वाले सुखबीर बादल इस बार मीडिया से भी दूर रहे। अकाली दल का कोई भी नेता फिलहाल इस मामले पर बातचीत के लिए तैयार नहीं है। संपर्क करने पर यही जवाब मिलता है, "किसी और विषय पर बात कीजिए, इस पर हम नहीं बोलेंगे।" एक ने इशारों में बताया कि बोलने की ही इजाजत नहीं है!

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उधर, एसजीपीसी चीफ भाई गोबिंद सिंह लोंगोवाल को शिरोमणि अकाली दल की कोर कमेटी में शामिल करने के खिलाफ प्रतिद्वंदी विपक्षी दल आम आदमी पार्टी (आप) ने मोर्चा खोल दिया है। आप प्रवक्ता और विधायक प्रोफेसर बलजिंदर कौर कहती हैं, "सियासी पार्टियों में धार्मिक नुमाइंदों को शामिल करना नागवार रिवायत है। एसजीपीसी मुखी लोंगोवाल को शामिल करके शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने गलत परंपरा को आगे बढ़ाया है। यह संविधान की भी खुली अवहेलना है। हमारी पार्टी चुनाव आयोग में पूरे तथ्यों के साथ जाएगी और मांग करेगी की शिरोमणि अकाली दल की मान्यता इस आधार पर रद्द की जाए कि उसने एक धार्मिक संस्था के रहनुमा को अपनी कोर कमेटी में शामिल किया है।"

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पंजाब के बठिंडा ग्रामीण से विधायक रूपिंदर कौर रूबी के अनुसार, "सुखबीर सिंह बादल ने गोबिंद सिंह लोंगोवाल को शिरोमणि अकाली दल की कोर कमेटी का सदस्य बना कर एसजीपीसी की अध्यक्षता अधिकृत रूप से अपने अधीन कर ली है। लोंगोवाल को सदस्य बनाना संविधान का उल्लंघन ही नहीं बल्कि सिख मर्यादा का अपमान भी है।"

बाहरहाल, एसजीपीसी प्रधान भाई गोबिंद सिंह लोंगोवाल के शिरोमणि अकाली दल के कोर कमेटी में शामिल होने के बाद पंथक सियासत और पंजाब में नई बहस का आगाज हुआ है। यकीनन यह बहुत संवेदनशील मामला है। ऐसे में केंद्र में साथ में सरकार चला रही और राष्ट्रवाद की राजनीति का ढींढोरी पीटने वाली अकाली दल की परंपरागत सहयोगी बीजेपी की इस मुद्दे पर रहस्यमयी खामोशी भी लोगों के गले नहीं उतर रही है। खालिस्तान समर्थक के सहयोगी दल में शामिल होने पर केंद्रीय बीजेपी ने पूरी तरह से चुप्पी साध रखी है।

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