रामलीला में मंच की भव्यता और कुछ प्रसंगों के अनूठे मंचन की होड़ का रिश्ता आयोजकों और कलाकारों के उत्साह से होता है, साथ ही आयोजन के लिए जुटे फंड से भी। रामलीला सिर्फ राम के किरदार का बखान नहीं है, एक खास समय में खास समाज और उसकी चेतना को समझने-पढ़ने का जरिया भी है।
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मंच पर अभिनय-आख्यान से परे ग्रीन रूम में बसी कलाकारों की दुनिया में दाखिल होकर इसे और बेहतर ढंग से समझा जा सकता है। मंच की अपनी छवि को आकार देने के उद्यम के बीच वहां की हलचल बहुत सी सांसारिक मान्यताओं को दरकिनार करती है।
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शाहजहांपुर में ऑर्डिनेंस फैक्ट्री की रामलीला में हनुमान की भूमिका करने वाले कल्यान राम मिले, जो इस भूमिका की खातिर 41 दिनों तक उपवास रखते हैं।
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वहीं विभीषण बनने वाले रंगकर्मी अरशद आजाद से मुलाकात हुई, जिन्हें खुद परशुराम की भूमिका पसंद है। बकौल अरशद, “परशुराम अवतारी पुरुष थे, विष्णु के अवतार। शिव उनके इष्ट हैं, उनका किरदार बहुत वजनदार है।”
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बरेली में सुभाषनगर की रामलीला में महावीर प्रसाद को उनकी कद-काठी और रोबदार आवाज की वजह से रावण की भूमिका मिली थी। इसी में वह इतना रमे कि दो दशकों से ज्यादा समय से रावण का रोल उन्हीं के लिए है। उनकी रोजी का जरिया आटे की चक्की है, बोर्ड पर जिसका नाम रावण आटा चक्की दर्ज है।
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ग्रीन रूम में राम के किरदार को आप मेघनाथ के मेकअप में मदद करते हुए या सुषेण वैद्य को रावण का मुकुट बांधते पा सकते हैं।
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पोशाक, मेकअप का सामान, मंच की स्थिति और यहां तक कि पार्श्व में टंगे पर्दे के हाल से आपको रामलीला देखने वाले समाज की हैसियत का अंदाज भी हो जाता है।
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ये तस्वीरें ऐसे ही एक डॉक्युमेंट्री प्रोजेक्ट ‘बैकस्टेज‘ का हिस्सा हैं।
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