शख्सियत

जवानी के साथ कामयाब भी हैं, फिर भी हो सकते हैं आप डिप्रेशन में: परवीन बॉबी की बायोग्राफी के कुछ पन्ने

अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के साथ ही एक बार फिर डिप्रेशन और मानसिक बीमारी को लेकर बातें होने लगी हैं। ऐसे ही समय में परवीन बॉबी की बायोग्राफी सामने आने वाली है जिसमें उनकी जिंदगी के अकेलेपन का विस्तार से जिक्र है।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

परवीन बॉबी ने करीब 50 फिल्मों में काम किया और हर फिल्म में उनके हीरो उस समय के टॉप हीरो होते थे। टाइम पत्रिका ने अपने कवर पर उन्हें जगह दी और वह कम से कम दो बार मानसिक तनाव से बाहर निकलीं। लेकिन आखिरकार एक अकेली और हताश महिला के रूप में उनकी मौत हो गयी।

परवीन बॉबी की जिंदगी पर करिश्मा उपाध्याय ने एक किताब लिखी है जिसे हेचेट ने प्रकाशित किया है। करिश्मा कहती हैं, “मैं इस किताब से उम्मीद करती हूं कि लोगों को समझ आएगा कि आप युवा, कामयाब और एक साधारण और शानदार जिंदगी जीते हुए भी मानसिक बीमारी का शिकार हो सकते हैं। इसके अलावा यह भी कि मानसिक बीमारी सिर्फ वैसी ही नहीं होती जैसा कि हिंदी फिल्मों में दिखाया जाता है। कई बार कोई दिखने में एकदम स्वस्थ्य और सही दिखता है, लेकिन वह मानसिक बीमारी का शिकार हो सकता है।”

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करिशमा बताती है कि, “इस किताब को लिखने में मुझे 3 साल लगे, लेकिन मैं खुश हूं। कई बार लगता है कि क्या होता अगर परवीन बॉबी के समय से मिडिकल हेल्प मिल गई होती। यह दुख की बात है कि मानसिक बीमारी को लेकर जो भ्रांतियां 70 और 80 दशक में थीं, वह आज भी बरकरार हैं।” इस किताब में करिश्मा ने परवीन बॉबी की जिंदगी के चार दौर का जिक्र किया है। एक में उनकी अहमदाबाद की जिंदगी है जहां उकी पढ़ाई लिखाई हुई और वह अपनी जिंदगी के फैसले इस हद तक अपने आप कर सकती थीं कि उन्होंने उस मंगनी को तोड़ दिया जो उनकी मां ने तय की थी।

दूसरा दौर उनके बम्बई (अब मुंबई) शिफ्ट होने का है, जहां वह शुरु में एक फैशन जिडायनर और मॉडल के रूप में सामने आईं और फिर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का हिस्सा बनीं। इसी में एक अहम दौर है जिसमें उस समय के उभरते कलाकार डैनी डेंनजोंगपा के साथ उनके प्लेटोनिक यानी एक किस्म के आध्यात्मिक या एकतरफा रिश्ते का जिक्र है। इसी दौर में उनकी जिंदगी के वह किस्से हैं जिसमें उन्होंने कबीर बेदी और महेश भट्ट के वैवाहिक जीवन में खलल डाला और डैनी और किम के रिश्ते को लगभग बरबाद ही कर दिया।

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1976 में रोम में कबीर बेदी के साथ परवीन बॉबी Photo by Giorgio Ambrosi/Mondadori via Getty Images

कबीर बेदी के साथ परवीन बॉबी का रिश्ता उस समय खत्म हो गया जब वह बेदी के साथ उनके टीवी सीरियल सैंडोकन की कामयाबी का जश्न मनाने इटली गईं। वहां उन्हें एहसास हुआ कि कबीर बेदी उनसे बड़े और लोकप्रिय स्टार हैं। महेश भट्ट के साथ उनका रिश्ता एक तरह से दो व्यक्तित्वों के टकराव का रिश्ता बना और परवीन बॉबी को पहला ब्रेकडाउन इसी दौरान हुआ। और दूसरा ब्रेकडाउन महेश भट्ट की फिल्म ‘अर्थ’ के बाद हुआ। अर्थ को आमतौर पर महेश भट्टी की जिंदगी की ही फिल्म माना जाता है।

परवीन बॉबी पर लिखी गई इस किताब का तीसरा दौर अमिताभ बच्चन के आसपास है, लेकिन इतना जरूर है कि इस रिश्ते में परवीन बॉबी, अमिताभ बच्चन के वैवाहिक जीवन में खलल नहीं डाल पाईं। करिश्मा उपाध्याय बताती हैं कि परवीन बॉबी को जानने वाले जो कुछ चंद लोग हैं वे बताते हैं कि परवीन बॉबी को यह एहसास होने लगा था कि उनके साथी कलाकार उनके जज्बातों के साथ खेलते हैं। लोगों का कहना है कि परवीन के जहन में एक बात और आने लगी थी कि अमिताभ की हेरोइन होने के नाते उन्हें लगने लगा था कि इंडस्ट्री में उन्हें एक अलग मुकाम मिलेगा साथ ही वे एक अभिनेता के तौर पर खुद को बेहतर कर सकेंगी। इसके साथ ही वह यह भी मानने लगी थीं किउन्हें अमिताभ का प्यार भी मिलेगा और वह अमिताभ बच्चन की जिंदगी का केंद्र बन सकेंगी। लेकिन ऐसा हो न सका।

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करिश्मा उपाध्याय लिखती हैं कि, “आखिर उनके ब्रेकडाउन का कारण क्या था? कौन था जो उन्हें इस हालत तक पहुंचाने के लिए जिम्मेदार था? इंडस्ट्री और मीडिया दोनों ही किसी को बलि का बकरा बनाने की कोशिश में थे। और यह सब इसपर निर्भर था कि उन दिनों कौन किससे बात करता था, या तो अमिताभ बच्चन की गलती थी या फिर महेश भट्ट की।” लेकिन “परवीन बॉबी की जिंदगी को असंतुलित करने केलिए अगर कुछ जिम्मेदार था तो वह थी उनकी मानसिक हालत।”

परवीन की जिंदगी का आखिरी पड़ाव उनके उन दिनों का दौर था जब वे किसी पर भी आरोप लगा देती थीं। वे कभी कहती थीं कि अमिताभ बच्चन या फिर बिल क्लिंटन या फिर केजीबी उनकी हत्या करना चाहचे हैं....यहां तक कि उन्होंने 1993 के बम धमाकों के लिए खुलेआम संजय दत्त पर आरोप लगा दिया था, लेकिन इस सिलसिले में वे कभी भी कोर्ट में पेश नहीं हुईं।

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करिश्मा उपाध्याय कहती हैं कि, “जब कोई व्यक्ति मानसिक ब्रेकडाउन से दोचार होता है तो उसे लगने लगता है कि हर कोई उसके पीछे पड़ा है। परवीन बॉबी के साथ भी ऐसा ही था। उन्हें लगने लगा था कि कुछ लोग उनकी हत्या करने की साजिश रच रहे हैं।”

कुछ भी हो, लेकिन परवीन बॉबी की मृत्यु, जिसकी तारीख 20 जनवरी 2005 दर्ज की गई है, काफी ट्रैजिक रही। उनकी हाऊसिंग सोसायटी के सचिव नेपुलिस को इत्तिला दी कि बीते तीन दिन से परवीन बॉबी ने अपने दरवाजे से दूध और अखबार नहीं उठाए हैं। पुलिस को संदेह है कि जब उनका शव मिला तो उनकी मृत्यु हुए 72 घंटे हो चुके थे। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट बताती है कि उनका पेट खाली था और उन्होंने तीन दिन से कुछ नहीं खाया था, जिस कारण उनके जरूरी अंगों ने काम करना बंद कर दिया और संभवत: भूख से उनकी मृत्यु हो गई। एक हलचल भरी जिंदगी का यह एक खामोश अंत था। लेकिन अकेलापन ही ऐसा था, जो निरंतर उनके साथ रहा।

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