शख्सियत

शिक्षक दिवस विशेष :  पूरी दुनिया को एक विद्यालय मानते थे डॉ. राधाकृष्णन

आज 5 सितंबर है, शिक्षक दिवस, भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिवस। आइए आपको बताते हैं उनके जीवन के बारे में...

डॉ. एस राधाकृष्णन
डॉ. एस राधाकृष्णन 

डॉ. राधाकृष्णन के नाम के साथ, प्रख्यात शिक्षाविद, दार्शनिक, विचारक, भारतीय संस्कृति का सच्चा संवाहक, जन नायक आदि अलंकार जुड़े हुए हैं। एक शानदार वक्ता और अपने जीवन के 40 दशक शिक्षा को देने वाले राधाकृष्णन क्या राजनेता भी थे? नहीं, वे मुख्यधारा की राजनीति से कभी नहीं जुड़े। हालांकि वे कांग्रेस पार्टी में शामिल जरूर रहे। वे तो विशुद्ध शिक्षाविद और उच्च कोटि के दर्शनशास्त्री थे। इसीलिए जब स्वतंत्रता के बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें देश के पहले उपराष्ट्रपति पद पर शोभायमान किया तो बहुतों ने, और खासकर राजनीतिज्ञों ने आश्चर्य जताया।

Published: 05 Sep 2017, 3:43 PM IST

संविधान के तहत भारत के उपराष्ट्रपति पद का सृजन 1952 में किया गया। और इस बेहद सम्मानित और अहम पद के लिए डॉ. राधाकृष्णन का चयन कर पं नेहरू ने सभी को चौंका दिया था। लोग अचंभित थे कि इस अहम राजनीतिक पद के लिए कांग्रेस पार्टी के किसी मुख्यधारा के राजनीतिज्ञ का चुनाव क्यों नहीं हुआ। उपराष्ट्रपति होने के नाते राधाकृष्णन ने राज्यसभा के अध्यक्ष की भी जिम्मेदारी संभाली। और इसी पद पर रहते हुए उन्होंने उन सभी आलोचकों के मुंह बंद कर दिए, जो नेहरू के इस फैसले पर सवाल उठा रहे थे। उपराष्ट्रपति और राज्सयभा के सभापति के तौर पर एक गैर राजनीतिक शख्स ने सभी दलों और राजनेताओं को समान रूप से प्रभावित किया। 1962 में देश के राष्ट्रपति बनने से पहले तक डॉ. राधाकृष्णन ने इस पद की गरिमा को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।

Published: 05 Sep 2017, 3:43 PM IST

इससे पहले आजादी के ठीक बाद डॉ. राधाकृष्णन से पं नेहरू ने विशिष्ट राजदूत के रूप में सोवियत संघ जाकर राजनयिक कार्य संभालने का आग्रह किया था। पं. नेहरू के इस कदम पर भी कई राजनीतिज्ञों और राजनयिकों ने गहरा आश्चर्य व्यक्त किया। सभी का तर्क था कि राजनयिक सेवा के लिए एक दर्शनशास्त्री को कैसे चुना जा सकता है। लोगों को भरोसा नहीं था कि एक शिक्षाविद रहे राधाकृष्णन एक राजनयिक की भूमिका सही से निभा पाएंगे। लेकिन राधाकृष्णन ने मॉस्को के साथ भारत के संबंधों की नई इबारत लिखकर अपनी राजनयिक प्रतिभा भी साबित कर दी। राजनयिक संबंधों में अपनी अलग छाप छोड़कर उन्होंने साबित कर दिया कि रूस में रहे अन्य भारतीय राजनयिकों में वे सबसे बेहतर थे।

Published: 05 Sep 2017, 3:43 PM IST

डॉ॰ राधाकृष्णन संपूर्ण विश्व को एक विद्यालय के रूप में मानते थे। उनका कहना था कि इंसान के मस्तिष्क का सार्थक उपयोग शिक्षा के जरिये ही हो सकता है। डॉ. राधाकृष्णन एक गैर परम्परावादी राजनयिक के तौर पर मशहूर हुए। वे कभी भी नियमों और कायदों के दायरे में नहीं बंधे। देश, समाज और मानवता के लिए उनके योगदान को सम्मानित करते हुए भारत सरकार ने 1954 में उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा।

Published: 05 Sep 2017, 3:43 PM IST

उनकी असली पहचान हमेशा एक शिक्षक की ही रही। आज के समय जब गुरू-शिष्य की परंपरा तेजी से विलुप्त होती जा रही है, ऐसे में पूर्व राष्ट्रपति डॉ॰ राधाकृष्णन का जीवन सभी के लिए उदाहरण और प्रेरणा के रूप में अनुकरणीय है। डॉ. राधाकृष्णन की शिक्षण शैली, शिक्षकों के लिए एक तरह से प्रशिक्षण पाठ्यक्रम की तरह है। वे अपने व्याख्यानों और विषय से संबंधित हल्की-फुल्की कहानियां गढ़कर छात्रों को अपने वश में कर लेते थे। अपनी विशिष्ट और अनोखी शैली से दर्शनशास्त्र जैसे नीरस और गंभीर विषय को भी छात्रों के लिए आसान और रोचक बना देने वाले डॉ. डॉ. राधाकृष्णन के छात्र हमेशा उनसे प्रभावित रहे।

Published: 05 Sep 2017, 3:43 PM IST

1962 में जब राधाकृष्णन राष्ट्रपति बने, तब उनके कुछ शिष्यों और समाज के उनके प्रशंसकों ने उनके जन्म दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की उनसे अनुमति मांगी। तब उन्होंने यह कहते हुए अपनी स्वीकृति दी कि सिर्फ मेरे जन्मदिवस के रूप में नहीं, बल्कि समस्त शिक्षकों के सम्मान में मनाया जाए तो उन्हें खुशी होगी। तब से ही उनके जन्म दिन 5 सितंबर को सारे देश में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जा रहा है।

Published: 05 Sep 2017, 3:43 PM IST

सितंबर 1888 को दक्षिण भारत के एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे राधाकृष्णन के पूर्वज पहले सर्वपल्ली नामक गांव में रहा करते थे, जहां से 18वीं शताब्दी में तिरूतनी आकर बस गए थे। उनकी इच्छा थी कि उनके परिजन अपने नाम के पहले सर्वपल्ली लगाएं जिससे उनके जन्मस्थान का हमेशा बोध हो। डॉ॰ राधाकृष्णन के पिता का नाम सर्वपल्ली वीरास्वामी और माता का नाम सीताम्मा था। उनके निर्धन, किन्तु विद्वान ब्राह्मण वीरास्वामी राजस्व विभाग में काम करते थे। उनके पांच पुत्र और एक पुत्री थी। राधाकृष्णन अपने बहन-भाइयों में दूसरे स्थान पर थे। पिता की आय बेहद कम होने की वजह से उनका बचपन सुख-सुविधा के साथ नहीं गुजरा। उनके बचपन के दिन तिरूतनी और तिरुपति जैसे धार्मिक स्थानों पर गुजरे।

Published: 05 Sep 2017, 3:43 PM IST

पुरानी सोच और धार्मिक भावनाओं वाले उनके पिता ने उन्हें पढ़ाई के लिए एक ईसाई मिशनरी संस्थान में भेजा। शुरू के कुछ साल वहां पढ़ने के बाद उनकी आगे की शिक्षा वेल्लूर में संपन्न हुई। फिर उन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से उच्च शिक्षा प्राप्त की। छात्र काल से ही राधाकृष्णन को बाइबिल के प्रमुख अंश कंठस्थ थे। छोटी उम्र में ही उन्होंने स्वामी विवेकानन्द को भी पढ़ लिया था। दर्शनशास्त्र में एम.ए. के बाद 1916 में वे मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के सहायक प्रोफेसर नियुक्त हुए। बाद में वहीं प्राध्यापक भी हुए। अपने लेखों और व्याख्यानों के जरिये उन्होंने विश्व को भारतीय दर्शन शास्त्र से परिचित कराया। डॉ॰ राधाकृष्णन अपने व्याख्यानों के लिए यूरोप और अमेरिका की यात्रा पर भी गए जहां उन्होंने कई विश्वविद्यालयों में अपने व्याख्यान दिए। डॉ. राधाकृष्णन 1939 से 48 तक काशी हिन्दू विश्‍वविद्यालय, बनारस के चांसलर भी रहे। आजादी के बाद 1953 सो 1962 तक वह दिल्ली विश्वविद्यालय के चांसलर पद पर रहे।

Published: 05 Sep 2017, 3:43 PM IST

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: 05 Sep 2017, 3:43 PM IST