शोहरत ने उनकी ऐसी हालत कर दी कि सार्वजनिक स्थानों पर जाना दूभर हो गया। वे थे अभिनेता प्रेम अदीब, जिन्होंने फिल्म राम राज्य (1943) में भगवान राम का ऐसा अभिनय किया कि लोग उनकी पूजा करने लगे। वे लाख मना करते लेकिन उन्हें देखते ही उनके पैर छूने वालों की कतार लग जाती। उनके चित्र कैलेंडर पर छपे और फ्रेम करवा कर घरों में लगाए जाते थे। जिन पर प्रेम अदीब और शोभना समर्थ को राम सीता के रूप में देख कर लोग पोस्टर के आगे पैसे चढ़ाते थे। ऐसी लोकप्रियता इससे पहले किसी के हिस्से में नहीं आई थी। प्रेम अदीब ने तो इसकी कल्पना भी नहीं की थी।
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मूक फ़िल्मों के दौर में राम के चरित्र को लेकर बहुत सी फ़िल्में बनीं, लेकिन भारतीय समाज में भगवान राम की जो लोकप्रियता है उसके अनुपात में वे फ़िल्में दर्शकों को प्रभावित नहीं कर सकीं। लेकिन विजय भट्ट के प्रभावशाली निर्देशन ने फिल्म राम राज्य को भारत में बनी सैकड़ों धार्मिक फिल्मों के इतिहास में सर्वाधिक प्रतिष्ठित बना दिया और साथ ही प्रेम अदीब की जिंदगी को भी पूरी तरह से बदल डाला।
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कश्मीरी पंडित परिवार से संबंध रखने वाले प्रेम अदीब के दादा पंडित देवी प्रसाद धर फैजाबाद के तहसीलदार थे। वे शायर भी थे और अदीब उपनाम से शायरी करते थे। फिर यह अदीब उपनाम उनके परिवार की पहचान बन गया। 10 अगस्त 1916 को जन्मे प्रेम अदीब का असली नाम शिव प्रसाद अदीब था। कालेज तक पहुंचते-पहुंचते ऊंचे कद के प्रेम अदीब की सुंदरता सबको आकर्षित करने लगी। एक अभिनेता के पास होने वाला आकर्षक व्यक्तित्व और सुंदर कद काठी उनके पास थी। साथ ही उनका हिंदी, उर्दू और अंग्रेज़ी का उच्चारण भी बहुत स्पष्ट था। अपनी इन विशेषताओं का उन्हें एहसास था, इसलिये एक दिन घरवालो को बताए बिना वे अभिनेता बनने के लिये कोलकाता जा पहुंचे। वहां बात नहीं बनी तो लाहौर और फिर मुंबई का रूख किया।
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मुंबई में एक दिन उन्होंने राजपूताना फिल्म्स के लिये नए चेहरों की तलाश का विज्ञापन देखा। उन्होंने आवेदन कर दिया और निर्माता निर्देशक मोहन सिन्हा ने उन्हें देखते ही फिल्म के लिये चुन लिया। प्रेम अदीब अभिनीत पहली फिल्म रोमांटिक इंडिया (1936) थी। मोहन सिन्हा ने उन्हें फ़िल्मी नाम दिया प्रेम। फिर कई फ़िल्मों में उन्होंने प्रेम के नाम से ही अभिनय किया।
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1942 में उनकी एक उल्लेखनीय फ़िल्म आयी भरत मिलाप। विजय भट्ट इसके निर्देशक थे इसमें प्रेम अदीब ने भगवान राम की भूमिका निभायी और खूब प्रशंसा बटोरी। लेकिन 1943 में आयी फ़िल्म ‘राम राज्य’ ने उनके जीवन में चमत्कार कर दिया। इसमें भी उन्होंने भगवान राम की भूमिका निभायी थी और निर्देशन भी विजय भट्ट ने ही किया था। राम राज्य भारत में बनी धार्मिक फिल्मों में सर्वाधिक चर्चित और श्रेष्ठ फिल्म साबित हुई। अपने समय में यह फिल्म जहां लगी वहां महीनो चली। कई स्थानो पर तो साल भर से भी अधिक। यह इकलौती भारतीय फिल्म थी जिसे सिनेमा को नापसंद करने वाले महात्मा गांधी ने भी देखा।
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इसके बाद तो कई फ़िल्मों में राम का किरदार निभाना प्रेम अदीब की मजबूरी बन गया। वे धार्मिक फ़िल्मों की ज़रूरत बन चुके थे। शोभना समर्थ के साथ उनकी जोड़ी इतनी लोकप्रिय हुई कि दोनो ने साथ साथ 13 फ़िल्मों में अभिनय किया। लेकिन दर्शकों की पसंद नापसंद को लेकर आज तक कोई पैमाना नहीं बन सका है। अब प्रेम अदीब बेहद चर्चित हो चुके थे। उन्होंने अपनी शोहरत का ज्यादा फायदा खुद कमाने के लिये अपनी फिल्म कंपनी स्थापित की और नाम रखा प्रेम पिक्चर्स। प्रेम अदीब धार्मिक फ़िल्मों में अपनी लोकप्रियता से बख़ूबी वाकिफ़ थे लेकिन ना जाने क्यों उन्होंने अपने बैनर तले सामाजिक विषयों पर आधारित फ़िल्में ‘कसम’ (1947) और देहाती (1947) बनायीं। और दोनो फिल्में असफल हो गयीं।
इसके बाद शुभचिंतकों की राय के आधार पर उन्होंने फ़िल्म ‘राम विवाह’ (1949) बनायी। इसका निर्देशन भी प्रेम अदीब ने ही किया। लेकिन इसे दुर्भाग्य कहें या इसे फ़िल्म निर्माण और निर्देशन की कला में प्रेम अदीब की कमज़ोरी माना जाए, राम विवाह अपनी लागत भी नहीं निकाल सकी। और धार्मिक फिल्मों के सर्वाधिक सफल अभिनेता को घाटे की वजह से अपनी फिल्म कंपनी बंद करनी पड़ी।
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अब प्रेम अदीब दूसरी फिल्म कंपनियों के बैनर पर काम करने लगे। उन्होंने करीब 70 फ़िल्मों में काम किया। मगर राम राज्य जैसी सफलता का मुंह दोबारा नहीं देख पाए। इसका मलाल उन्हें अंत तक रहा। 25 दिसंबर 1959 को अचानक ब्रेन हैमरेज की वजह से हिंदी फिल्मी पर्दे के सर्वाधिक लोकप्रिय ‘राम’ ने इस संसार से विदा ले ली।
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