भारत समेत पूरी दुनिया आज यानी 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद की 157वीं जयंती मना रही है। स्वामी विवेकानंद का मूल नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। उनका जन्म कोलकाता के एक अभिजात्य बंगाली परिवार में 12 जनवरी, 1863 को हुआ। उनका निधन महज 39 वर्ष की उम्र में 12 जुलाई, 1902 को हो गया। लेकिन इस अल्प जीवनकाल में ही वह पश्चिमी दुनिया को प्राचीन भारतीय दर्शन और हिंदू धर्म के मर्म और इसकी गहराइयों के बारे में समझाने में सफल रहे।
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आधुनिक संदर्भों में हिंदू धर्म की फिर से व्याख्या करने का श्रेय उन्हीं को जाता है। वह हिंदू धर्म जो जाति-आधारित शोषण और अस्पृश्यता की हठधर्मिता से सर्वथा परे है। यहां हम स्वामी विवेकानंद की कुछ प्रेरणादायी उक्तियों के साथ उनके घटनापूर्ण और उद्देश्यपूर्ण जीवन के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं / घटनाओं पर गौर करेंगे।
विवेकानंद हिंदुत्व में सदियों के दौरान घुस आए जातिवाद, अस्पृश्यता और आडंबरपूर्ण धार्मिक रीति- रिवाजों के बड़े आलोचक थे।
स्वामी विवेकानंद ने एफए (बाद में यह परीक्षा आईए या कला में इंटरमीडिएट कहलाने लगी) की परीक्षा में केवल 46 फीसदी अंक और स्नातक (बीए) में 56 प्रतिशत अंक हासिल किए थे। इससे यह बात फिर से साबित होती है कि महानता और ज्ञान को अंकों से नहीं मापा जा सकता।
वर्ष 1884 में अपने पिता विश्वनाथ दत्त के निधन के बाद विवेकानंद का परिवार गरीबी से घिर गया और दिवालिएपन की स्थिति में आ गया। 19वीं शताब्दी के मध्य के उन कठिन वर्षों के दौरान कई बार विवेकानंद अपनी मां से यह कहकर सुबह ही निकल जाया करते कि दोपहर के भोजन के लिए वह कहीं आमंत्रित हैं। लेकिन वास्तविकता यह थी कि वह इसलिए अक्सर निकल जाया करते कि घर के बाकी सदस्यों के हिस्से ज्यादा भोजनआ सके। घर से बाहर निकलकर वह भूखे रहते लेकिन किसी से यह बात साझा नहीं करते।
विवेकानंद के पास बीए की डिग्री थी और वह नौकरी के लिए काफी हाथ-पैर भी मार रहे थे, इसके बावजूद उन्हें निराशा ही हाथ लगी।
जिस संत ने हिंदू धर्म की दार्शनिक गहराइयों और सूक्ष्मता से पश्चिम का परिचय कराया, वह जीवन के अपने 39 वर्षों के दौरान कई बीमारियों से पीड़ित रहा जिनमें माइग्रेन, अस्थमा, टॉन्सिलाइटिस, टायफायड, मलेरिया, लीवर संबंधी समस्याएं, अनिद्रा, लगातार बुखार, गैस्ट्रोएंटेराइटिस, दस्त, अपच, मधुमेह, पेट दर्द प्रमुख थीं।
उन्हें चाय का बहुत शौक था और उन्होंने अपने बेलूर मठ में इसका चलन शुरू किया। बेलूर कोलकाता के पास गंगा से कुछ ही दूरी पर बसा एक छोटा-सा शहर है।
विवेकानंद धूम्रपान करते थे और वह सिगार के भी शौकीन थे। उन्हें आइसक्रीम बहुत अच्छी लगती थी। खिचड़ी उनके पसंदीदा व्यंजनों में थी।
हिंदू धर्म के बड़े ज्ञाता विवेकानंद यीशु मसीह के बड़े प्रशंसक थे।
भारतीय और पश्चिमी दर्शन, इतिहास, धर्म, कला और साहित्य-जैसे विविध विषयों पर विशद अध्ययन करने के अलावा स्वामी विवेकानंद ने भारतीय शास्त्रीय संगीत में भी प्रशिक्षण ले रखा था।
उनकी स्मृति अद्भुत थी। एकदम अलौकिक। कहते हैं कि एक बार उन्होंने एक पुस्तकालय से कुछ किताबें लीं और अगले ही दिन यह कहते हुए उन्हें लौटा दिया कि उन्होंने सभी को पढ़ लिया है। स्वाभाविक ही लाइब्रेरियन को लगा कि विवेकानंद शेखी बघार रहे हैं और उसने बड़ी सावधानीपूर्वक उनसे पुस्तकों में दी गई सामग्री के बारे में काफी पूछताछ की जिससे पता चला कि विवेकानंद ने वास्तव में उन किताबों को पढ़ लिया था। वह भी एक दिन में! एक बार एक बातचीत के दौरान उन्होंने चार्ल्स डिकेंस के प्रसिद्ध उपन्यास पिकविक पेपर्स के तीन पन्नों को शब्दशःउद्धृत कर दिया।
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