संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा न्यूयॉर्क में आयोजित 15वें विशेष सत्र को सम्बोधित करते हुए भारत के तत्कालीन करिश्माई, आदर्शवादी, स्वप्नद्रष्टा प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 9 जून 1988 को कहा था, "हम एक ऐसी विश्व व्यवस्था का निर्माण करने को प्रतिबद्ध हैं जो पूर्णरूपेण परमाणु हथियारों से मुक्त होगा। इसके माध्यम से हम एक अहिंसक विश्व व्यवस्था का निर्माण चाहते हैं। यह एक ऐसी शांतिपूर्ण, सहिष्णु, सतत व्यवस्था होगी जहां मानवता का कल्याण सर्वोपरि होगा। निशस्त्रीकरण के माध्यम से हम विश्व भर के मानव को गरिमामयी जीवन प्रदान कर सकेंगे।"
भारत को 21वीं सदी का महानायक बनाने की आधारशिला रखने वाले राजीव गांधी ने निश्चित रूप से भांप लिया था कि युद्ध और शांति दोनों का जन्मस्थान मानव मस्तिष्क है। विदित हो कि यह 'शीत युद्ध' ( एक ऐसा छद्म युद्ध जो लगभग 5 दशक तक विचारधारा के आधार पर लड़ा गया था। जिसमें हथियारों का प्रयोग तो नहीं हुआ था। तथापि इस अवधि में युद्ध की पुरजोर आशंका व्याप्त थी। इस स्थिति को अमेरिकी विद्वान बर्नार्ड बारूच ने 'शीत युद्ध' की संज्ञा प्रदान की थी। ) इस अवधि में विश्व दो अलग-अलग पूंजीवादी एवं साम्यवादी गुटों में विभक्त था। पूंजीवादी गुट का नेतृत्व संयुक्त राज्य अमेरिका कर रहा था वहीं सोवियत गणराज्य रूस साम्यवादियों का प्रहरी था। ऐसे कठिन दौर में, दो महाशक्तियों के मध्य राजीव गांधी ने 'शस्त्र-नियंत्रण' एवं 'निशस्त्रीकरण' के माध्यम से विश्व शांति के लिए एक नई लकीर खींचने का आह्वान किया था।
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पड़ोसी राष्ट्र मालदीव में राष्ट्रपति मैमून अब्दुल गयूम एवं मित्र राष्ट्र सेशेल्स के राष्ट्रपति फ्रैंक अल्बर्ट रेने के विरुद्ध असंवैधानिक तख्तापलट का पुरजोर विरोध करते हुए राजीव गांधी ने दोनों देशों की सरकारों को सुरक्षित ढंग से पुनर्स्थापित करने का महान कार्य किया था।
राजीव गांधी की अंतरराष्ट्रीय छवि और आभामंडल की झलक दो और प्रसंगों से सामने आती है : जब चीन की राजधानी बीजिंग में वहां के तत्कालीन सुप्रीम लीडर देंग जियाओपिंग जो राजीव गांधी से उम्र में दोगुने थे, ने स्वागत पुरजोर तरीके से करते हुए कहा था- My Young Friend; दूसरा प्रसंग है जब अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ससम्मान स्वयं छाता लेकर राजीव गांधी को व्हाइट हाउस के पोर्टिको तक सी ऑफ करने आए थे। अंतरराष्ट्रीय शांति के प्रति राजीव गांधी के सदाग्रह का ही परिणाम है कि उनकी पुण्यतिथि 'आतंकवाद - विरोधी दिवस' के रूप में मनाई जाती है।
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प्रधानमंत्री के अपने कार्यकाल (31 अक्टूबर 1984- 2 दिसंबर 1989) में राजीव गांधी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों ही स्तर पर शांति स्थापना के लिए अग्रसर रहे थे। पंजाब, असम, मिज़ोरम तीन ऐसे सीमावर्ती राज्य हैं जो उन दिनों भीषण हिंसा की चपेट में आ चुके थे। यहां तक कि कुछ हलकों में कुछ लोगों ने अलगाववाद को प्रश्रय देना शुरु कर दिया था। ऐसे में उन्होंने तमाम पक्षकारों - भारत सरकार, राज्य सरकारों और आंदोलनकारियों के साथ संवाद प्रक्रिया के माध्यम से शांतिपूर्ण समाधान का रास्ता अपनाना समुचित समझा था। तमाम समझौते आज भी सुचारुपूर्वक अहर्निश जारी है।
इस कड़ी में पंजाब में शांति स्थापना के लिए 24 जुलाई 1985 को 'राजीव गांधी-संत हरचरण सिंह लोंगोवाल समझौता' सम्पन्न हुआ था। स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर 15 अगस्त 1985 को 'असम एकॉर्ड' पर हस्ताक्षर हुआ था। भारत के इतिहास में यह एक अनन्य कालजयी समझौता था जो भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी और असम में प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे छात्र संगठन (AASU : All Assam Students Union) के मध्य सम्पन्न हुआ था। इस समझौते का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि इस छात्र संगठन ने स्वयं प्रधानमंत्री की पहल पर उसी वर्ष 'असम गण परिषद' नाम से एक राजनीतिक पार्टी का गठन करके न सिर्फ चुनाव में शिरकत की बल्कि राज्य विधानसभा में बहुमत प्राप्त करके सफलतापूर्वक सरकार का गठन करके इतिहास रचने का काम किया था। 32 वर्षीय छात्र नेता प्रफुल्ल कुमार महंत गुवाहाटी विश्विद्यालय के छात्रावास से सीधे मुख्यमंत्री सचिवालय पहुँचे थे। यह भारत के उद्दात लोकतंत्र की महान विजय थी।
इसके अलावा देश के सुदूरवर्ती उत्तर-पूर्वी राज्य मिजोरम में शांति बहाली के लिए 30 जून 1986 को भारत सरकार एवं मिज़ो नेशनल फ्रंट के मध्य 'राजीव-लालडेंगा समझौता' सम्पन्न हुआ था। इस प्रकार, मानवोचित गुणों से ओत-प्रोत पराक्रमी प्रधानमंत्री राजीव गांधी जी ने राष्ट्र-राज्य एवं परराष्ट्र के कल्याण हेतु 'शांति' को अपना जंतर बनाने का महान कार्य किया था।
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राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में भारत ने नवाचार एवं विकास के नए प्रतिमान स्थापित किया था। कंप्यूटर युग का आगमन, C-DOT की स्थापना के माध्यम से सूचना क्रांति की शुरुआत, द्रुतगामी संचार हेतु स्पीड पोस्ट सेवा की शुरुआत, बदलते विश्व के साथ तादात्म्य स्थापित करने के ध्येय से नई शिक्षा नीति- 1986 का शुभारम्भ, ग्रामीण प्रतिभा को पुष्पित, पल्लवित एवं निखारने के उद्देश्य से आवासीय जवाहर नवोदय विद्यालय का गठन, राष्ट्रनिर्माण में युवाओं की सशक्त अधिकतम भागीदारी सुनिश्चित करने के मन्तव्य से मतदान की आयु सीमा 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष किया जाना इत्यादि कुछ ऐसे मूलभूत एवं जनकल्याणकारी कार्य की नींव राजीव गांधी ने ही रखी थी, जिसने भारत को विश्वपटल पर स्थापित करने का कार्य किया है।
स्थानीय निकाय को संवैधानिक मान्यता प्रदान करने की पुरजोर पहल करना ( कालांतर में 73वें एवं 74वें संविधान संशोधन के माध्यम से क्रमशः पंचायती राज एवं नगरपालिका को संवैधानिक दर्जा प्राप्त हुआ। परिणामस्वरूप, आज देशभर में लगभग 32 लाख पंचायत प्रतिनिधि एवं 2 लाख नगरपालिका प्रतिनिधि निर्वाचित हैं। इनमें से आधे से अधिक महिलाएं हैं। ये 'शासन आपके द्वार' की अवधारणा को मूर्त रूप प्रदान कर रहे हैं।) सम्पूर्ण विश्व के लिए एक अभिलेख है।
संसद एवं विधानमण्डलों के लिए निर्वाचित जनप्रतिनिधियों द्वारा अपनी निष्ठा बदलकर दूसरे दलों की सदस्यता ग्रहण करने से जनित सार्वजानिक विकार को दूर करने के लिए राजीव गांधी सरकार ने संविधान में दसवीं अनुसूची को समाहित करके 'दल-बदल निषेध कानून' लाकर 'आया राम-गया राम' रूपी कुसंस्कृति का खात्मा करने का महान कार्य किया था।
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आर्थिक स्तर पर नव-उदारवाद की नीति को अपनाने का साहसी निर्णय लेने का कार्य राजीव गांधी के ही शासन काल की शानदार उपलब्धि है। जिसके माध्यम से कालांतर में भारत उदारीकरण एवं भूमंडलीकरण का साझीदार बनने में सफल साबित हो सका। प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव एवं वित्तमंत्री डॉ मनमोहन सिंह की जोड़ी ने कालांतर में राजीव गांधी प्रयासों को मूर्त रूप प्रदान कर भारत की सम्पन्नता सुनिश्चित किया। आज देश के पास 400 बिलियन डॉलर से अधिक का फॉरेन एक्सचेंज रिज़र्व इसका प्रमाण है।
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस का गठन 28 दिसंबर 1885 को मुंबई के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत महाविद्यालय के प्रांगण में देश भर से आए 72 सदस्यों के साथ हुआ था। राजीव गांधी ने उस विरासत की शताब्दी समारोह का आयोजन उसी मुम्बई के भव्य ब्रेबोर्न स्टेडियम में आहूत करने का भगीरथ कार्य किया था। इस ऐतिहासिक अवसर पर राजीव गांधी ने कहा था, "भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस भारतीय राष्ट्रवाद की संसद है।" अपनी स्थापना से लेकर आजतक अपने राष्ट्रनायकों द्वारा 100 वर्ष के विहंगम इतिहास में किए गए सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक योगदान का जिक्र करते हुए राजीव गांधी ने देश - दुनिया में फैले करोड़ों काँग्रेस कार्यकर्ता एवं विचारधारा से सरोकार रखने वाले लोगों का आह्वान किया था कि ‘हम अपने पुरखों के कार्य को व्यापकता एवं सार्वभौमिकता प्रदान करें।’
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काँग्रेस-नीति के अनुसरणार्थ राजीव गांधी ने प्रत्येक स्तर पर युवा पीढ़ी को उनके सामर्थ्य के अनुसार नेतृत्व प्रदान करने का कार्य किया था। उसी का परिणाम है यह आज भी काँग्रेस विचारधारा प्रभावशाली, मजबूत, परिपक्व और आधुनिक बनी हुई है। राजीव गांधी की कुशल रणनीति एवं नेतृत्व क्षमता की झलक सर्वप्रथम नई दिल्ली में सफलतापूर्वक आयोजित एशियाई खेल 'ASIAD- 1982' में देखने को मिली थी। युवाओं के प्रति उनके विश्वास एवं खेल भावना का ही परिणाम है कि देश का सर्वश्रेष्ठ खेल सम्मान- राजीव गांधी खेल रत्न - उनके स्मरण को समर्पित है।
नियति की क्रूर विडम्बना है कि जिस शांति स्थापना के लिए वे जीवनपर्यंत पूर्ण मनोयोग से समर्पित रहे, उसी प्रयास की कीमत उन्हें युवावस्था में अपनी शहादत देकर चुकानी पड़ी थी। पड़ोसी राष्ट्र श्रीलंका में व्याप्त सिंघली बनाम तमिल संघर्ष के दौरान 'राजीव-जयवर्धने' समझौता के आलोक में 'इंडियन पीस कीपिंग फोर्स' ( IPKF ) भेजकर जिस मानवता का परिचय दिया था। वह भारत के लिए एक विभीषिका बनकर आया।
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस राजीव गांधी के विहंगम योगदान को साकार करते हुए प्रतिवर्ष 'राजीव गांधी सद्भावना पुरस्कार' प्रदान करती है। उनकी 29वीं पुण्यतिथि पर राजीव गांधी के कार्यों के स्मरणार्थ श्रद्धाजंलि अर्पित करना राष्ट्र-बोध की अनुभूति कराता है। इस अवसर पर कवि जगदंबा प्रसाद मिश्र "हितैषी" की पंक्ति प्रासंगिक प्रतीत हो रही है-
शहीदों की चिंताओं पर लगेंगे हर बरस मेले
वतन पर मरने वालों का बाकी निशां होगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं। लेखक अमरीश रंजन पांडे इंडियन यूथ कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव हैं और रौशन शर्मा दिल्ली विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्र विभाग में शोधार्थी हैं)
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