हिंदी पाठकों और दर्शकों में आर के नारायण फिल्म गाइड के लेखक और मालगुडी डेज़ के स्वामी के रचयिता के तौर पर जाने जाते हैं। परिवार और दोस्तों के बीच आर के नारायण को प्यार से ‘कुंजप्पा’ बुलाया जाता था। मशहूर कार्टूनिस्ट आर के लक्ष्मण के भाई कुंजप्पा को पढ़ने का शौक तो था लेकिन ‘पढ़ाई’ का नहीं। चूंकि वे हेडमास्टर के बेटे थे, तो गर्मियों की छुट्टियों में स्कूल की लाइब्रेरी का भरपूर इस्तेमाल किया करते थे। इस तरह बहुत छोटी उम्र में ही आरके नारायण का परिचय किताबों की काल्पनिक दुनिया और किरदारों से हो गया था।
पढ़ाई में दिलचस्पी थी नहीं, सो कॉलेज उनके लिए कोई सुखद अनुभव नहीं था। पढ़ाने से भी कोई ख़ास लगाव नहीं रहा सो, अध्यापक की नौकरी भी जल्द छोड़ दी। लेकिन दोनों भाइयों को पैदल घूमने का बहुत शौक था। उनके करीबी लोगों का कहना है कि रोजाना लगभग दस किलोमीटर घूमा करते थे दोनों और यही वक्त होता था जब दोनों के दिमाग में कहानियां दौड़ती थीं, आसपास के माहौल और किरदारों को जज़्ब करते हुए वे खुद भी उन्हें बुनते रहते थे। लक्ष्मण इन किरदारों को कागज़ पर अंकित कर सकते थे, सो वे कार्टून बनाते, नारायण इन किरदारों और माहौल को शब्दों में जीवंत कर सकते थे सो, वे लिखते।
Published: 10 Oct 2017, 7:55 PM IST
लिखना ठीक ठीक कब शुरू हुआ, कहा नहीं जा सकता, लेकिन जैसाकि उनके करीबी लोग बताते हैं, जब उनके पिता के एक प्रिय दोस्त का निधन हुआ तो उन्होंने मृत्यु और दुःख पर कुछ दसेक पन्ने लिख डाले। यह लेखन का उनका पहला प्रयास था।
एक नौ से पांच की नियमित नौकरी उनके बस की नहीं है-यह नारायण को बहुत पहले समझ आ गया था। 1935 में जब उन्हें एक नोटबुक उपहार में मिली तो इस नोटबुक के खाली सफ़ों पर जन्म हुआ मालगुडी शहर का। और स्वामी एंड फ्रेंड्स उपन्यास का। इसी पर आधारित टीवी सीरियल मालगुडी डेज़ ने इस रचना को कालजयी बना दिया। इस शहर के किरदार वही थे, जिन्हें अपनी लम्बी सैर के दौरान आरके नारायण देखते और महसूस करते थे। स्वामी के किरदार में कहीं ना कहीं खुद आरके नारायण भी झलक जाते थे।
Published: 10 Oct 2017, 7:55 PM IST
आरके नारायण के दूसरे उपन्यास ‘बैचलर ऑफ़ आर्ट्स’ ने अंग्रेजी के प्रसिद्ध उपन्यासकार ग्रैहम ग्रीन को भी बहुत प्रभावित किया। यह उपन्यास इंग्लैंड के बेस्ट सेलर्स में शामिल हुआ।
एक बार मैसूर के एक होटल में नारायण की मुलाकात राजू नाम के एक गाइड से हुयी और बाद में यही मुलाकात ‘गाइड’ नाम के उपन्यास की प्रेरणा बन गयी। गाइड स्त्री-पुरुष संबंधों पर एक गंभीर वक्तव्य है जो इसे लगभग एक दार्शनिक स्तर पर ले जाता है। एक सरल सी कहानी में ऐसा कर पाना ही नारायण की खूबी रही।
हालांकि आरके नारायण देवानंद और विजय आनंद की फिल्म गाइड से इतने खुश नहीं थे लेकिन वह फिल्म कामयाब साबित हुयी और हिंदी में इस उपन्यास की शोहरत का जरिया भी बनी।
Published: 10 Oct 2017, 7:55 PM IST
मालगुडी डेज़ का ‘स्वामी’ एक ऐसा किरदार है जिसमें भारत के किसी भी गाँव या शहर का बच्चा प्रतिबिंबित होता है। उनके किरदार असल ज़िन्दगी के बहुत करीब और भारतीय परिप्रेक्ष्य में गहरे रचे बसे हैं। यही वजह है कि आरके नारायण भारतीय पाठकों के बीच जितने लोक प्रिय हैं उतने ही विदेशी पाठकों के बीच भी।
कुंजप्पा और उनके किरदार अपनी सादगी, गहराई और सरल विनोद के लिए हमेशा याद किये जाते रहेंगे।
Published: 10 Oct 2017, 7:55 PM IST
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Published: 10 Oct 2017, 7:55 PM IST