कथा, नाटक, आलोचना और उपन्यास में समान रूप से हस्तक्षेप रखने वाले पद्मश्री साहित्यकार गिरिराज किशोर का रविवार सुबह उनके कानपुर स्थित निवास पर निधन हो गया। वैसे तो वे मुजफ्फरनगर निवासी थे, लेकिन कानपुर के शूटरगंज में रहते थे। वह 83 वर्ष के थे।
गिरिराज किशोर को उनके उपन्यास 'पहला गिरमिटिया' से विशेष पहचान मिली। यह उपन्यास महात्मा गांधी के अफ़्रीका प्रवास पर आधारित था। इसके अलावा उपन्यास 'ढाई घर' भी अत्यन्त लोकप्रिय हुआ था, इसी उपन्यास को सन् 1992 में साहित्य अकादमी से सम्मानित किया गया था।
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गिरिराज किशोर का जन्म 8 जुलाई 1937 को मुजफ़्फ़रनगर में एक ज़मींदार परिवार में हुआ था। लेकिन उन्होंने बहुत ही कम उम्र में घर छोड़ दिया था । वह स्वतंत्र रूप से पत्रिकाओं और अख़बारों के लिए लिखने लगे थे और उसी से जीवनयापन चलाते थे। उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार में सेवायोजन अधिकारी व प्रोबेशन अधिकारी के तौर पर काम किया। इसके बाद 2 साल तक वह पूर्ण रूप से लेखन के क्षेत्र में आ गए। 1966 से 1975 तक वह कानपुर विश्वविद्यालय में सहायक और उपकुल सचिव रहे। वर्ष 1975 से 1983 तक वे आईआईटी कानपुर में कुलसचिव भी रहे जहां उन्होंने रचनात्मक लेखन केंद्र की स्थापना की और 1997 में रिटायर हो गए। नौकरी के दौरान भी गिरिराज किशोर निरंतर लिखते रहे।
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