शख्सियत

संसद और सर्वोच्च न्यायालय ही नहीं, सभी संस्थाएं हो रही हैं नाकाम, इनमें चेतना जगाने की जरूरत: हामिद अंसारी

देश के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा है कि देश की सभी संस्थाएं नाकाम हो रही हैं. उन्होंने कहा कि इन संस्थाओं में चेतना जगाने की जरूरत है ताकि सभी को बराबरी और न्याय मिल सके।

फोटो : रविराज
फोटो : रविराज 

देश के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने का कहना है कि हमारे संस्थानों में कर्तव्यों की चेतना को विकसित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारे संस्थान कुछ हद तक नाकाम हो रहे हैं और यह सिर्फ हमारे सर्वोच्च न्यायालय और संसद तक ही सीमित नहीं है। हामिद अंसारी ने यह बात नेशनल हेराल्ड को दिए एक विशेष इंटरव्यू में कही।

अंसारी ने दोहराया कि देश में बढ़ती असहिष्णुता के कई मिसालें देखी जा सकती हैं। उन्होंने कहा कि असहिष्णुता तो हमेशा थी, हाल के वर्षों में इसमें कई गुना और कई तरह की बढ़ोत्तरी हुई है क्योंकि इसे सरकारी समर्थन हासिल है। उन्होंने कहा कि ऐसा होने से देश में अल्पसंख्यकों के लिए हालात बहुत खराब हुए हैं।

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हामिद अंसारी ने कहा कि “देश में अल्पसंख्यकों के साथ भी हर भारतीय नागरिक की तरह ही व्यवहार होना चाहिए। व्यवहार में समानता होना चाहिए। हमें संविधान की प्रस्तावना पढ़नी चाहिए। इसमें समानता, न्याय और बंधुत्व की बात कही गई है। ये शब्द स्पष्ट और बहुत ताकतवर हैं। न्याय, भाईचारे के साथ-साथ हर समाज की नींव है। अगर आप अपने साथी नागरिक को बराबरी का दर्जा नहीं देते, तो आप न्याय नहीं कर रहे हैं। और शायद आज के दौर में इसी न्याय की कमी देखी जा रही है।“

उन्होंने कहा कि, “2002 के गोधरा दंगों के बाद, राज्य सरकार द्वारा प्रभावी राहत नहीं दी गई है। प्रभावित लोगों को खुद ही दोबारा बसना पड़ा। असल में सरकार की इच्छा शक्ति और मंशा होनी चाहिए, लेकिन कोई मंशा थी ही नहीं। उस दौरान मुस्लिमों का यहूदीकरण हुआ। आज गोधरा को 18 साल गुजर चुके हैं और एक पूरी पीढ़ी बड़ी हो गई है। इस पीढ़ी ने नाइंसाफी के साथ रहना सीख लिया है। अल्पसंख्यकों के लिए हर जगह हालात बदतक हो गए हैं।“

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हामिद अंसारी ने कहा, “घर वापसी और धर्मांतरण विरोधी कानून सिर्फ ध्यान भटकाने के लिए हैं ताकि विकास और गरीबी जैसे समाज के जरूरी मुद्दों की बात न हो।” उन्होंने आगे कहा कि धर्मनिरपेक्षता हमारे संविधान का हिस्सा है। लेकिन उसका पालन नहीं हो रहा है। ऐसे में हम संविधान के एक हिस्से को लागू ही नहीं कर रहे हैं। सभी धर्मों को बराबरी का दर्जा देने के लिए भारती समाज क्या कर सकता है, लेकिन कुछ राज्य सरकारें ऐसा नहीं करतीं।

उन्होंने कहा कि बीजेपी सरकारों द्वारा धार्मिक बहुसंख्यवाद को थोपे जाने से समाज का नुकसान होगा, भाईचारे का नुकसान होगा और समानता का नुकसान होगा, और नतीजतन इंसाफ के दरवाजे बंद होंगे, जो कि हर नागरिक का अधिकार है। अंसारी ने कहा कि, “संविधान में संशोधन के लिए एक प्रक्रिया होती है, और अनुच्छेद 370 को खत्म करने के लिए इस प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। महबूबा मुफ्ती बीजेपी के साथ गठबंधन सरकार में थीं, तभी ऐसा होता तो हालात शायद कुछ और होते।

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भारत-चीन के बीच जारी तनाव पर हामिद अंसारी ने कहा कि ताली दोनों हाथ से बजती है। उन्होंने कहा, “मेरा मानना है कि अभी तक सरकार ने इसे ठीकठाक से ही संभाला है। मनमोहन सिंह सरकार के दौर में दोनों तरफ से बहुत शालीनता के साथ बातची हुई थी। लेकिन अब कुछ समस्याएं हैं। फिर भी हमें ध्यान रखना होगा कि हालात बेकाबू न हों। फिलहाल मामला पटरी से उतरा हुआ दिखता है।”

यह पूछे जाने पर कि क्या नागरिकता संशोधन अधिनियम को लेकर बयानबाजी ने पड़ोसियों के साथ हमारे संबंधों को प्रभावित किया है, अंसारी ने कहा कि अधिनियम पर बांग्लादेश के साथ कुछ गलतफहमियां हुई हैं, और उस पर बात अभी तक सुलझ नहीं पाई है। उन्होंने कहा कि, “इसे लागू किया जाना बाकी है। इसे लेकर लोगों की अपनी धारणाएं हैं जिन्हें स्पष्ट करने की आवश्यकता है। अगर एक बात स्पष्ट है तो वह यह कि हम भारतीय नागरिक हैं। यदि नागरिकता पर सवाल उठाया जा रहा है, तो मेरे पास विरोध करने का अधिकार भी और ऐसा करना मेरा कर्तव्य भी है।”

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हामिद अंसारी का पूरा इंटरव्यू आप इस वीडियो में देख सकते हैं

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