मृदुला मुखर्जी आधुनिक और समकालीन समय की जानी-मानी इतिहासकार हैं। आज सत्तापक्ष की ओर से प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के चरित्र-हनन का विषाक्त अभियान चलाया जा रहा है। उन्हें ‘अभारतीय’ साबित किया जा रहा है। औपचारिक और अनौपचारिक मीडिया को इसके लिए औजार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। लेकिन नेहरू ऐसी शख्सियत थे जिन्हें न केवल भारतीय सभ्यता, संस्कृति की अद्भुत समझ थी बल्कि उन्होंने इसे ही आधुनिक भारत की बुनियाद बनाया और भारत का वैश्विक आचार-विचार कैसा हो, यह भी उन्हीं भारतीय मूल्यों के अनुसार तय किया। भारत के निर्माण में नेहरू के योगदान पर मृदुला मुखर्जी के साथ संयुक्ता बसु की बातचीत के अंश :
Published: 27 May 2021, 1:12 PM IST
प्र. अगले साल भारत अपनी आजादी का 75वां वर्ष मनाने जा रहा है। आधुनिक और समकालीन समय की इतिहासकार होने के नाते आपको क्या लगता है, देश को जवाहरलाल नेहरू को कैसे याद करना चाहिए?
उ. सबसे पहले तो एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में। यह याद रखना चाहिए कि प्रधानमंत्री बनने से पहले वह तीस साल तक लोगों को एकजुट करने में लगे रहे। उन तीस सालों में से उनके नौ साल जेल में बीते। वह गांधी जी के बाद सरदार पटेल, मौलाना आजाद, राजेंद्र प्रसाद, आचार्य कृपलानी जैसे बड़े स्वतंत्रता सेनानियों में शुमार थे। अगर हम इतिहास में थोड़ा पीछे जाएं तो दादाभाई नौरोजी, गोपाल कृष्ण गोखले जैसे इतने स्वतंत्रता सेनानियों के नाम आएंगे जिनका जिक्र करना भी मुश्किल होगा। लेकिन यह बात याद रखनी होगी कि इन नामों में नेहरू भी एक थे। दूसरे, हमें उन्हें स्वतंत्र भारतीय गणराज्य के संस्थापक और आधुनिक भारत के रचनाकार के तौर पर याद रखना चाहिए। आजादी के चंद माह बाद ही गांधीजी नहीं रहे और फिर कुछ बरसों के भीतर सरदार पटेल का भी निधन हो गया और तब नए भारत के निर्माण में नेहरू की भूमिका और उनकी जिम्मेदारी कहीं अधिक हो गई। निश्चित रूप से उनका साथ एक योग्य मंत्रिमंडल ने दिया जिसमें हर क्षेत्र के प्रतिभाशाली लोग थे। इनमें से कुछ स्वतंत्रता सेनानी थे, तो सीडी देशमुख और जॉन मथाई जैसे अपने फन के माहिर बुद्धिजीवी भी।
Published: 27 May 2021, 1:12 PM IST
प्र. भारत के लिए नेहरू की सबसे महत्वपूर्ण दृष्टि क्या थी? भारत को सपेरों का देश कहा जाता था। नेहरू क्या चाहते थे, कि दुनिया भारत को कैसे देखे?
उ. यह कहना सही नहीं कि दुनिया भारत को केवल सपेरों के देश के तौर पर जानती थी। भारत को औपनिवेशिक दुनिया के नेता और औपनिवेशिक ताकत के खिलाफ सबसे मजबूत योद्धा के तौर पर देखा जाने लगा था। तब तक भारत के स्वतंत्रता संग्राम को औपनिवेशिक इतिहास के अहम मोड़ के तौर पर देखा जाने लगा था। लाला लाजपत राय जैसी हस्तियां 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध से ही अमेरिका जाकर आजादी के विचार को फैला रही थीं। इसलिए नेहरू को भारत की छवि बदलने की जरूरत नहीं थी। लेकिन 200 साल के औपनिवेशिक काल के दौरान भारत निहायत गरीब हो चुका था और उन्हें इसका रास्ता खोजना था। वह भारत के प्राचीन ज्ञान और नैतिक आचार-विचार आधारित छवि को ही फैलाना और मजबूत करना चाहते थे। उनके नेतृत्व में भारत ने 40 और 50 के दशकों के दौरान अंतरराष्ट्रीय कूटनीति, संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन और बड़े मुद्दों पर बड़ी ताकतों के साथ विचार-विमर्श में सक्रिय भूमिका निभाई। दुर्भाग्यवश, आज एक संपन्न राष्ट्र होने के बाद भी हम उस तरह की भूमिका नहीं निभा रहे। उदाहरण के लिए इजरायल-फिलस्तीन संघर्ष को ही लें। भारत ने जैसे चुप्पी साध रखी है। नेहरू के नेतृत्व में मैं इसकी कल्पना भी नहीं कर सकती।
प्र. क्या आपके कहने का आशय यह है कि नेहरू के नेतृत्व में भारत पहले ही ‘विश्व गुरु’ बन गया था?
उ. नेहरू भारत को किसी से बेहतर या दुनिया का ‘गुरु’ बनाना नहीं बल्कि हर देश के बराबर बनाना चाहते थे। नेहरू का विश्वास दूसरों से बेहतर या बड़ा बनने में नहीं था। हर देश की अपनी विशेष सभ्यता और संस्कृति थी, कुछ तो भारत जितनी ही प्राचीन थी।
Published: 27 May 2021, 1:12 PM IST
प्र. आप कहती हैं कि एक देश के तौर पर हमने अपनी आवाज खो दी। क्या नेहरू काल के कुछ और ऐसे मूल्य हैं जिन्हें हमने इन सालों के दौरान खो दिया?
उ. सबसे पहले तो अंतरराष्ट्रीय संबंधों में पीड़ित-शोषितों के लिए खड़े होने की क्षमता। दक्षिण अफ्रीका में आज भी भारत के लिए बड़ा सम्मान है क्योंकि जिस समय कोई उनका समर्थन करना नहीं चाहता था, औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ संघर्ष में भारत उसके साथ खड़ा रहा। तब भारत का व्यवहार नैतिक सिद्धांत आधारित होता था, जिसे नेहरू ने गांधी से लिया था। दूसरा, शांति और अहिंसा में विश्वास। जब भारत ने आजादी पाई, दुनिया दूसरे विश्व युद्ध से उबर रहा था। अकेले सोवियत संघ में 2 करोड़ लोग मारे जा चुके थे। यूरोप तहस-नहस हो चुका था। दुनिया दो ध्रुवों में बंट चुकी थी। नेहरू का मानना था कि भारत को इनमें से किसी का हिस्सा नहीं बनना चाहिए बल्कि संघर्ष को खत्म करने की कोशिश करनी चाहिए और हाल में औपनिवेशिक राज से आजाद हुए देशों की अगुवाई करनी चाहिए। इसी के तहत गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नींव पड़ी। संक्षेप में कहें तो भारत को तब ऐसे देश के तौर पर देखा जाता था जो वैश्विक मामलों पर नैतिक आधार पर फैसले लेता था। लेकिन वह स्थिति अब नहीं रही।
प्र. नेहरू के प्रधानमंत्री को तौर पर बिताए 17 साल के दौरान इंजीनियरिंग, इस्पात, परमाणु ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में मजबूत बुनियाद देने से लेकर ईसीआई, बार्क, आईआईटी, आईआईएम और एम्स जैसे प्रीमियर संस्थान खुले। समकालीन इतिहास में क्या वैसा और कोई कालखंड है?
उ. वे बड़े महत्वपूर्ण वर्ष थे। उस समय नेहरू के कुछ फैसले जोखिम भरे लग रहे थे लेकिन बाद में हमने पाया कि वे फायदेमंद ही थे। उदाहरण के लिए नेहरू का मानना था कि आर्थिक आजादी पाने के लिए सरकार को भारी उद्योग में निवेश करना होगा ताकि मशीनरी के लिए हमें बड़े देशों पर निर्भर नहीं रहना पड़े। उनका यह भी मानना था कि महत्वपूर्ण क्षेत्र सरकार के पास ही रहें क्योंकि निजी क्षेत्र के पास उतना खर्च करने का पैसा नहीं था। परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष से लेकर मेडिकल रिसर्च पर ही उन्होंने जोर नहीं दिया बल्कि फिल्म, कला, संस्कृति जैसे क्षेत्रों को भी अहमियत दी जिसकी वजह से साहित्य अकादेमी, एनएसडी, एफटीआईआई जैसे संस्थान खुले। इन सबने एक ऐसे भारत की आधारशिला रखी जो न केवल एक औद्योगिक देश था बल्कि एक सॉफ्ट पावर भी था। यह महत्वपूर्ण नहीं है कि उन्होंने भारत की बुनियाद रखी बल्कि यह है कि उन्होंने यह काम कैसे किया। वह लोकतांत्रिक तरीके के प्रति प्रतिबद्ध थे और वह इस बात के पक्षधर थे कि बेशक रफ्तार कम हो लेकिन कोई भी पीछे नहीं छूट जाए। वह अपनी पार्टी और मंत्रियों ही नहीं बल्कि विपक्षी नेताओं के साथ भी आम सहमति बनाते थे। आज की तरह नहीं कि जो मन चाहा किया क्योंकि आपके पास 300 से ज्यादा सांसद हैं।
Published: 27 May 2021, 1:12 PM IST
प्र. हाल के समय में औपचारिक और अनौपचारिक, दोनों तरह के मीडिया का इस्तेमाल देश-दुनिया में नेहरू की भूमिका, उनकी छवि और उनकी विरासत को गलत तरीके से पेश करने में किया जा रहा है?
उ. कश्मीर हो या चीन, बेशक उस पर कोई फैसला लेना कितना भी मुश्किल रहा हो, उनके लिए आलोचना करना एक बात है, लेकिन सोशल मीडिया पर फैलाए जा रहे सरासर झूठ के बारे में आप क्या कहेंगे? यह सिद्ध करने के लिए कि वह व्यभिचारी थे, उन लोगों ने इतिहास के अलग-अलग समय की नेहरू की उनकी भतीजी, बहन के साथ तस्वीरों को इस्तेमाल किया। यह भयावह है। नेहरू को एक पश्चिमी, व्यभिचारी, ‘भारतीयता’ इत्यादि से बेपरवाह व्यक्ति के तौर पर पेश करने के शातिराना एजेंडे के तहत इस तरह का झूठ फैलाया गया। लेकिन वैदिक काल, वेद और उपनिषद समेत भारतीय संस्कृति और इतिहास के बारे में उनका ज्ञान कितना गहरा था, यह जानने के लिए उनकी ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ को पढ़ लेना ही काफी होगा। मैं दावे के साथ कह सकती हूं कि आधुनिक कालखंड में कोई और नेता उनके ज्ञान की बराबरी नहीं कर सकता।
Published: 27 May 2021, 1:12 PM IST
प्र. इससे मेरे सामने यह सवाल आता है कि हम अगली पीढ़ी को कैसे बताएंगे कि नेहरू वास्तव में क्या थे? नेहरू पर कौन सी पांच किताबें पढ़ने की आप सलाह देंगी?
उ. नेहरू की अपनी लिखी किताबों से ही शुरू करना चाहिए। ‘हिंदू’ संस्कृति सहित भारतीय संस्कृति और इतिहास के बारे में बताने वाली नेहरू की ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ से बेहतर कोई पुस्तक नहीं। इससे यह भी पता चलता है कि इनके बारे में नेहरू की सोच क्या थी। यह पुस्तक उन्होंने तब लिखी जब वह अहमदनगर फोर्ट जेल में थे। नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी में इसकी पांडुलिपि रखी है, इसे जाकर देखना चाहिए। उनकी आत्मकथा पढ़िए जिसमें वह गांधीजी से लगातार बहस करते दिखते हैं। इससे पता चलता है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के केंद्र में रहे लोग किस तरह असहमतियों पर बहस, बात-विचार करते हुए सहमति बनाते थे। इसके साथ ही ‘ग्लिम्प्सेज ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री’ पढ़ें। ये तीनों ही क्लासिक किताबें हैं।
Published: 27 May 2021, 1:12 PM IST
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: 27 May 2021, 1:12 PM IST