देश के राजनीतिक हालात और बीजेपी के खिलाफ विपक्ष की लड़ाई की रणनीति पर जेडीयू से निष्कासित वरिष्ठ राजनेता शरद यादव से नवजीवन ने विशेष बातचीत की। पेश है बातचीत के मुख्य अंश।
विश्वदीपक : शुरुआत गुजरात से ही करते हैं, शरद जी। हाल ही में गुजरात चुनाव के परिणाम आए हैं जिसमें छठी बार बीजेपी ने जीत दर्ज की है। हालांकि, कांग्रेस ने भी इस चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया है। आप गुजरात चुनाव के जनादेश को कैसे देखते हैं ?
शरद यादव : बीजेपी ने सिर्फ बड़े शहरों में जीत दर्ज की है जिसमें अहमदाबाद, सूरत, वड़ोदरा और राजकोट चार प्रमुख रूप से हैं। बाकी जितने भी गुजरात के ग्रामीण इलाके हैं वहां बीजेपी की हार हुई है। गुजरात के बड़े हिस्से ने बीजेपी को खारिज कर दिया है। केवल ग्रामीण इलाके ही नहीं बल्कि छोटे शहरों में भी बीजेपी को कारारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है। मैं कहना चाहता हूं कि गुजरात के जनादेश ने भविष्य में होने वाली राजनीति का रुख तय कर दिया है।
विश्वदीपक : क्या आप मानते हैं कि बिहार की तर्ज पर विपक्षी ताकतों के एकजुट होने की वजह से ऐसा हो पाया। मोदी की अपराजेय छवि ध्वस्त हुई है ?
शरद यादव : ये तथ्य सबको पता है कि अगर सभी विपक्षी ताकतें एक साथ हो जाएं तो फिर किसी को भी पराजित किया जा सकता है। अपराजेय कोई भी नहीं है, फिर वो चाहे मोदी ही क्यों न हों। लेकिन, मैं कहूंगा कि बिहार की तरह गुजरात में महागठबंधन नहीं हो पाया। हमारी पूर्व पार्टी जेडीयू ने तो बीजेपी के साथ ही गठबंधन किया था। चुनाव आयोग ने जेडीयू का चुनाव चिन्ह नीतीश कुमार को दे दिया है इसलिए हमें अलग पार्टी बनाकर चुनाव लड़ना पड़ा। हम लोगों ने इंडियन ट्राइबल पार्टी बनाकर चुनाव लड़ा। कांग्रेस के साथ समझौते के तहत हमें चार सीटें दी गई थीं जिसमें से दो में हमने जीत दर्ज की। मैं समझता हूं कि ये एक उत्साहवर्धक शुरुआत है।
ये तो हुई गुजरात विधानसभा की बात। अगर आप 2014 के लोकसभा चुनाव की ही बात करें तो बीजेपी को सिर्फ 31 फीसदी वोट मिले थे, जबकि 69 फीसदी वोट विपक्षी दलों को मिले। चूंकि विपक्ष में कई सारी पार्टियां हैं, इसलिए विपक्षी मतों में विभाजन हुआ। इसी का फायदा बीजेपी को मिला। रही बात लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के हार की तो इस बारे में कांग्रेस पार्टी के ही वरिष्ठ नेताओं की राय से मैं सहमत नहीं हूं। ए के एंटोनी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि कांग्रेस की हार की वजह उसकी प्रो-माइनॉरिटी की छवि है। लेकिन ये सही नहीं है। मैं एंटोनी साहब से कहना चाहता हूं कि अकलियत की बात राजनीति में करनी होगी। आप उसे छोड़ नहीं सकते। बात ये है कि टोटल यूनिटी की बात छोड़िए, अगर हम पॉसिबल यूनिटी भी कर लें न, तो देश को इनसे (बीजेपी) राहत मिल सकती है।
Published: 26 Dec 2017, 6:04 PM IST
विश्वदीपक : आपके हिसाब से बीजेपी से देश को क्यों राहत मिलनी चाहिए। क्या परेशानी है अगर बीजेपी सत्ता में है तो ?
शरद यादव : मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने वादा किया था कि हर साल दो करोड़ रोजगार देंगे। खासकर युवाओं को रोजगार और बेहतर जिंदगी का सपना बढ़-चढ़कर दिखाया था। दो करोड़ के हिसाब से तो पांच साल में इन लोगों को दस करोड़ लोगों को रोजगार देना चाहिए, लेकिन रोजगार कहां है ? हमारे यहां किसानों की सबसे बड़ी आबादी है (जनसंख्या का सबसे बड़ा हिस्सा किसानी के काम में संलग्न है), उसके बारे में मोदी सरकार ने कहा था कि तय कीमत का डेढ़ गुना मूल्य न्यूनतम समर्थन मूल्य के तौर पर देंगे। कहां हैं डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का वादा ?
आधे से ज्यादा हिंदुस्तान तो इन्ही युवाओं और किसानों से मिलाकर बनता है। जाहिर है आधे से ज्यादा आबादी से किए गए वादे पूरे करने में मोदी सरकार पूरी तरह विफल रही है। इन्होंने कहा था कि विदेश में जो देश का काला धन जमा है, उसे लाएंगे और हर किसी को देंगे। लेकिन, उसे लाने की बजाय यहीं पर नोटबंदी कर दी। जिसके पास जो था उसे भी छीन लिया। कहने का मतलब ये है कि जो वादे मोदी जी ने किए थे उसे पूरा करने की बजाय हर काम कर रहे हैं। यही परेशानी है मुझे बीजेपी से और इसीलिए देश को बीजेपी से राहत मिलनी चाहिए।
विश्वदीपक : आप पिछले काफी वक्त से सामाजिक-सांस्कृतिक मोर्चे पर ‘साझा विरासत बचाओ अभियान’ के जरिए विपक्षी ताकतों को लामबंद करने का काम कर रहे हैं। क्या ये अभियान आने वाले वक्त में आपके नेतृत्व में किसी राजनीतिक एकता की शक्ल लेगा ?
शरद यादव : ये केवल सामाजिक-सांस्कृतिक मोर्चे का काम नहीं है। ये गठबंधन की राह खोलने वाला अभियान है। ये एक तरह की तैयारी है आने वाले वक्त में लड़े जाने वाले संघर्ष की। अब इसका क्या प्रारूप होगा, कौन इसमें शामिल होंगे, कौन शामिल नहीं होंगे, किसका नेतृत्व होगा किसका नहीं होगा ये अभी नहीं कहा जा सकता। फिलहाल मेरा मकसद है बीजेपी को सत्ता से बाहर निकालना। अगर ये सत्ता में बने रहेंगे तो देश के सामने बहुत मुश्किलें आने वाली हैं। हमारा संविधान, देश की आजादी हासिल करने के लिए और लोकतंत्र को सुदृढ़ करने के लिए दी गई कुर्बानियां, सब कुछ खत्म हो जाएगा। ये दिन भर हिंदू-मुसलमानों के बीच बैर कराते हैं। हमारा देश तीन टुकड़ों में पहले ही बंट चुका है। क्या दुनिया में ऐसा कोई देश आपने देखा है, जहां इस तरह का विभाजन हुआ हो ? कभी ये इस्लाम के नाम पर बांटते हैं तो कभी जात-बिरादरी के नाम पर। खुद जाति-बिरादरी की राजनीति करते हैं, लेकिन आरोप दूसरों पर लगाते हैं। हमें समझना होगा कि जाति-बिरादरी हमारे देश का सामाजिक यथार्थ है। जातियां समाजिक संस्थाएं हैं, लेकिन अगर वंचित समाज और पिछड़े तबके को संविधान प्रदत्त आरक्षण देने की बात करो तो ये लोग आरोप लगाते हैं कि आप जातिवाद फैला रहे हैं।
जबकि है इसका उल्टा. हम लोग अपनी राजनीति के जरिए दो जातियों के बीच समन्वय स्थापित करने का, भाईचारा बढ़ाने का काम करते हैं, जबकि ये लोग उसे तोड़ने का काम करते हैं। ये दो जातियों, दो धर्मों के बीच में मतभेद नहीं बल्कि मनभेद कराने का काम करते हैं। राहुल गांधी एकदम ठीक कहते हैं कि मोदी और बीजेपी की सारी बातें झूठ की बुनियाद पर टिकी हैं।
विश्वदीपक : आपने राहुल गांधी का जिक्र किया, गुजरात में कांग्रेस की सीटों में लगभग 100 फीसदी का इजाफा हुआ है। क्या आप मानते हैं कि ये राहुल के नेतृत्व की वजह से संभव हुआ या फिर गुजरात बदलाव के लिए तैयार था, और राहुल की जगह कोई भी होता, तो भी कांग्रेस को इतनी ही सीटें मिलतीं ?
शरद यादव : गुजरात में 1985 के बाद कांग्रेस ने इतना शानदार प्रदर्शन किया है। ये बात तो सच है कि गुजरात की जनता बदलाव के लिए तैयार थी। वहां के लोग बीजेपी के खिलाफ सड़कों पर संघर्ष कर रहे थे, लेकिन राहुल ने उस संघर्ष को एक राजनीतिक चेहरा दे दिया। इस जीत का श्रेय निश्चित रूप से कांग्रेस नेतृत्व को मिलना चाहिए। गुजरात में कांग्रेस के बेहतर प्रदर्शन का श्रेय राहुल गांधी को ही मिलना चाहिए, क्योंकि चुनाव अभियान का नेतृत्व तो वही कर रहे थे। अध्यक्ष बनने से पहले ही उन्होंने गुजरात में काम करना शुरू कर दिया था। चुनाव के दौरान उन्होंने कांग्रेस के लिए जो मेहनत की, जमीनी स्तर पर काम किया, छोटे-छोटे दलों से गंठबंधन किया, लोगों को साथ लेकर एक आंदोलन खड़ा किया, उसका भी बड़ा योगदान है इस जीत में।
Published: 26 Dec 2017, 6:04 PM IST
विश्वदीपक : राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के साथ ही कांग्रेस में एक तरह से सोनिया युग का अवसान होता है और राहुल गांधी का समय शुरू होता है। आपके हिसाब से राहुल गांधी को आने वाले वक्त में कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर किन बड़ी चुनौतियों का सामना करना होगा ?
शरद यादव : कहते हैं कि इतिहास खुद को दोहराता है। सोनिया जी के दौर से राहुल के वक्त की तुलना करें तो कहा जा सकता है कि कांग्रेस का इतिहास भी खुद को दोहरा रहा है। जब सोनिया जी ने 1998 में कांग्रेस की कमान संभाली थी, तब भी परिस्थितियां कमोबेश ऐसी ही थीं। आज राहुल के सामने वही चुनौतियां हैं, जो सोनिया जी के सामने थीं, लेकिन इन चुनौतियों का स्वरूप बड़ा है। उस वक्त भी केंद्र में एनडीए की सरकार थी और सोनिया का मुकाबला बेहद मजबूत पार्टी और प्रचार तंत्र से था। लेकिन 2004 में सोनिया जी ने वापसी की और 10 साल तक कांग्रेस को सत्ता में रखा। मेरे हिसाब से आज राहुल की चुनौतियां बड़ी हैं। आज बीजेपी का प्रचार तंत्र, संगठन, धनबल और बाहुबल पहले से कहीं ज्यादा है। ऐसे में राहुल गांधी को बेहद कड़े मुकाबले के लिए तैयार रहना होगा।
दरअसल, ये चुनौती केवल राहुल गांधी की चुनौती नहीं है बल्कि पूरे देश की चुनौती है। चूंकि, कांग्रेस देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है और उसका नेतृत्व राहुल गांधी कर रहे हैं तो जाहिर है उनकी जिम्मेदारी ज्यादा है।
विश्वदीपक : वरिष्ठ पत्रकार और हिंदुस्तान टाइम्स के पूर्व संपादक प्रेमशंकर झा ने एक लेख में कहा है कि राहुल गांधी के अंदर जीत की वो अदम्य ख्वाहिश नहीं है जो मोदी के अंदर है। उन्होंने ये भी कहा है कि आने वाले वक्त में भी कांग्रेस की हार हो सकती है। आपका क्या कहना है ?
शरद यादव : हां, मैं जानता हूं प्रेम शंकर झा को। किसी के लिखे हुए पर टिप्पणी करने की क्या जरूरत। मैं ये कहना चाहता हूं कि प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या जरूरत। गुजरात चुनाव में कांग्रेस ने कड़ी मेहनत की है। उनका वोट प्रतिशत बढ़कर 41 फीसदी हो गया, इसके पीछे राहुल की कड़ी मेहनत शामिल है।
विश्वदीपक : ऐसा कहा जा रहा है कि गुजरात में बीजेपी की जीत सुनिश्चित करने के लिए संघ ने पूरी ताकत झोंक दी थी। गुजरात चुनाव के परिणाम को संघ के संदर्भ में आप कैसे देखते हैं ?
शरद यादव : बीजेपी एक पार्टी के तौर पर संघ का मुखौटा है और कुछ नहीं। असली विचार तो संघ ही है। बीजेपी, अमित शाह, मोदी ये सब सक्षम कठपुतलियां हैं संघ की। इसीलिए ये कहा जा सकता है कि गुजरात का चुनाव परिणाम न केवल बीजेपी, मोदी-अमित शाह बल्कि संघ और पूरी दक्षिणपंथी विचारधारा की हार है। दक्षिणपंथी विचारधारा का जो उठान हुआ था 2014 में, उसके अंत की शुरुआत हो गई है गुजरात चुनाव से।
विश्वदीपक : एक दौर था जब देश में किसान आंदोलन बहुत मजबूत था। चौधरी चरण सिंह जैसे कद्दावर किसान नेता हुआ करते थे। कम्युनिस्ट आंदोलन भी बहुत धार थी। बिहार में समाजवादी आंदोलन था। आज वो सब ताकतें हाशिए पर क्यों चली गईं ?
शरद यादव : मैं नहीं मानता कि किसान और कम्युनिस्ट आंदोलन हाशिए पर चले गए हैं। संसद में , विधानसभाओं में उनकी संख्या भले कम हुई है, लेकिन समाजिक शक्तियों के रूप में उनका अस्तित्व आज भी है। बल्कि मैं ये कहना चाहता हूं कि आज भी सड़क पर जो लोग सबसे ज्यादा संघर्ष कर रहे हैं वो कम्युनिस्ट ही हैं, समाजवादी लोग ही हैं। आप सिर्फ चुनावी नजरिए से मत देखिए। जनता से जुड़े हर तरह के संघर्ष में कम्युनिस्ट हमारे सबसे विश्वसनीय साथी रहे हैं। जब भी देश में विकट परिस्थितियां आई हैं तो कम्युनिस्टों ने हमारा साथ दिया है। संघर्ष का उनका बेहद शानदार इतिहास रहा है।
रही बात किसान आंदोलन की समस्या की तो जातियों में विभाजित होना इसकी सबसे बड़ी समस्या है। मैंने वो दौर भी देखा है, जब किसान जाति भुलाकर जमात के रूप में इकट्ठा हुए थे। आपने देखा होगा कि मेरे ऑफिस में चौधरी चरण सिंह की वोट क्लब रैली की एक विशालकाय तस्वीर लगी है। वो रैली 23 दिसंबर 1978 को कर्पूरी ठाकुर,ओमप्रकाश चौटाला, राजनारायण और मैंने मिलकर कराई थी। उस रैली में करीब 50 लाख किसान शामिल हुए थे। देश के इतिहास में ये किसानों की सबसे बड़ी रैली थी दिल्ली में। ये वो दौर था जब अमृतसर से लेकर नेपाल तक और नेपाल से लेकर ओडीशा तक के भू-भाग पर मास लीडर के रुप में इंदिरा जी की पहचान थी। लेकिन, दूसरे सबसे बड़े जन नेता चौधरी चरण सिंह जाने जाते थे। उस वक्त अधिकतर राज्यों में कांग्रेस की सरकार थी लेकिन कांग्रेस के बाद लोकदल दूसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी थी और चरण सिंह इस पूरी जमात के सर्व स्वीकृत नेता थे।
विश्वदीपक : आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव को हाल ही में अदालत ने चारा घोटाले में दोषी करार दिया है। उन्हें एक बार फिर जेल भेजा गया है, आपकी क्या प्रतिक्रिया है ?
शरद यादव : लालू जी को निचली अदालत से सजा हुई है। मैं मानता हूं कि लालू जी इस केस के पीड़ित हैं। जो लोग आज राज कर रहे हैं, उन लोगों ने उनके खिलाफ केस चलाया। मैं मानता हूं कि वो हाईकोर्ट से बरी होंगे। इसके पहले उनके ऊपर आय से अधिक संपत्ति रखने का मामला चलाया गया था, लेकिन उस मामले में वो सुप्रीम कोर्ट से बरी हो गए। चारा घोटाले के मामले में भी वो बरी होंगे। रही बात इसके राजनीतिक असर की, तो जेल जाने से लालू जी की, हमारी ताकत और बढ़ेगी, घटेगी नहीं। जब विधानसभा चुनाव के दौरान गठबंधन हुआ था, तब भी उनके ऊपर केस था, वो जेल गए थे, लेकिन विधानसभा चुनाव में गठबंधन को भारी जीत मिली। पुराना जनता दल एक हुआ और कांग्रेस साथ में आई तो बीजेपी को हमने बिहार में धूल चटा दिया। यही फिर होगा, जेल जाने से लालू जी की अपील और बढ़ेगी।
विश्वदीपक : जेडीयू से निष्कासन के बाद आपकी राज्यसभा सदस्यता भी निलंबित कर दी गई। कुछ विश्लेषकों ने कहा कि उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू (जो कि राज्यसभा के अध्यक्ष भी हैं) ने राजनीतिक पूर्वाग्रह के तहत फैसला किया। आप इस पर कुछ कहना चाहेंगे ?
शरद यादव : मेरी राज्यसभा सदस्यता निलंबित करना एक राजनीतिक फैसला था। जेडीयू के संविधान को, उसूल को मानने वाले हम लोग हैं। हम लोगों ने बिहार के जनादेश का सम्मान करते हुए नीतीश कुमार के बीजेपी के साथ जाने का विरोध किया, लेकिन षड़यंत्रपूर्वक मेरी सदस्यता निलंबित कर दी गई। जो लोग भाषण दे रहे थे कि संघ मुक्त भारत बनाएंगे और जहर खा लेगें लेकिन बीजेपी के साथ समझौता नहीं करेंगे, वो ही बीजेपी की गोद में जाकर बैठ गए। कपिल सिब्बल मेरा मुकदमा लड़ रहे हैं। फिलहाल तो कोर्ट ने स्टे ऑर्डर दे दिया है, लेकिन आखिरी फैसला 31 मार्च को आएगा। वैसे मैं सोचता हूं कि ये अच्छा ही हुआ। अब मेरे पास देश भर में भ्रमण करने, लोगों से मिलने जुलने के लिए काफी समय है। पहले मेरा काफी समय संसद में व्यतीत होता था, लेकिन अब मैं खुद को भविष्य के राजनीतिक काम के लिए ज्यादा सक्षम पाता हूं।
Published: 26 Dec 2017, 6:04 PM IST
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Published: 26 Dec 2017, 6:04 PM IST