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मुंशी प्रेमचंद की जयंती: ब्रिटिश सरकार ने प्रेमचंद की इस रचना पर लगाया था बैन, ऐसे मिला उपन्यास सम्राट का नाम

हिंदी साहित्य के महान लेखक और उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद की आज 144वीं जयंती है। उनकी गिनती हिंदी और उर्दू के महानतम लेखकों में की जाती है। उन्होंने कुल 15 उपन्यास, 300 से अधिक कहानियों की रचना की।

फोटो: सोशल मीडिया
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देश और दुनिया में जब-जब हिंदी साहित्य की बात होगी तो जहन में सबसे पहला नाम मुंशी प्रेमचंद का आएगा। उन्होंने अपने उपन्यास से न सिर्फ समाज को जागरूक करने का काम किया बल्कि अपने लेखन से हिंदी भाषा को भी नई दिशा दी।

हिंदी साहित्य के महान लेखक और उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद की आज 144वीं जयंती है। उनकी गिनती हिंदी और उर्दू के महानतम लेखकों में की जाती है। उन्होंने कुल 15 उपन्यास, 300 से अधिक कहानियों की रचना की।

मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई, 1880 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी के लमही गांव में हुआ था। उनके पिता अजायब राय एक डाकघर के क्लर्क थे। उनकी मां का नाम आनंदी देवी था। माता-पिता ने उनका नाम धनपत राय श्रीवास्तव रखा था।

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प्रेमचंद की शुरुआती शिक्षा उर्दू और फारसी में हुई। हालांकि, जब वह आठ साल के थे तो उनकी मां का निधन हो गया। उन्होंने बहुत ही कम उम्र में काफी कुछ सहा। इस बीच उनकी 15 साल की उम्र में शादी करा दी गई। हालांकि, शादी के एक साल बाद उनके पिता का भी देहांत हो गया।

बताया जाता है कि मुंशी प्रेमचंद के अधिकतर उपन्यास और कहानियां उनके बचपन से ही प्रभावित थी। बचपन में ही उनकी मां चली गई और सौतेली मां से भी उन्हें प्यार नहीं मिल। लेकिन, उन्होंने शादी के बाद भी अपनी पढ़ाई को जारी रखा और फारसी, इतिहास और अंग्रेजी विषयों से बीए किया और बाद में शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद पर तैनात हुए। बाद में अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।

मुंशी प्रेमचंद ने अपने लेखन से समाज और देश को जागरूक करने का काम किया। उन्होंने साल 1905 में ‘जमाना’ नाम के पत्र में पहली बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता गोपाल कृष्ण गोखले पर एक लेख लिखा। प्रेमचंद की पहली प्रकाशित कहानी ‘दुनिया का सबसे अनमोल रतन’ थी, जो 1907 में जमाना में छपी। इसके बाद उन्होंने कफन, नमक का दारोगा, ईदगाह, ठाकुर का कुआं, दो बैलों की कथा, सूरदास की झोपड़ी, पूस की रात, शतरंज के खिलाड़ी, पंच परमेश्वर, प्रायश्चित जैसी रचनाएं लिखीं।

ब्रिटिश सरकार के अधिकारियों की नजर मुंशी प्रेमचंद पर उस समय पड़ी जब उनकी सोज-ए-वतन रचना के कारण ब्रिटिश सरकार के अधिकारियों ने इसे एक देशद्रोही काम के रूप में प्रतिबंधित कर दिया। हमीरपुर जिले के ब्रिटिश कलेक्टर ने प्रेमचंद के घर पर छापा मारा और सोज-ए-वतन की लगभग पांच सौ प्रतियां जला दी गईं। इसके बाद उर्दू पत्रिका जमाना के संपादक ने उन्हें प्रेमचंद नाम रखने की सलाह दी। उन्होंने अपने लेखन में प्रेमचंद नाम लिखना शुरू कर दिया।

प्रेमचंद की रचनाओं के कारण ही बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें 'उपन्यास सम्राट' की उपाधि दी।

बता दें कि मुंशी प्रेमचंद का 8 अक्टूबर 1936 को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। मुंशी प्रेमचंद ने कुल 15 उपन्यास, 300 से अधिक कहानियां, तीन नाटक, 10 अनुवाद, सात बाल पुस्तकें और कई लेखों की रचना की। उनकी रचनाओं में गोदान, रंगभूमि, कायाकल्प, निर्मला, गबन और कर्मभूमि जैसे कई उपन्यास शामिल हैं।

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