महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण का मानना है कि मोदी सरकार ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत संशोधित नागरिकता कानून बनाया है। चव्हाण नवजीवन कार्यालय में आए और उन्होंने ग्रुप सीनियर एडिटोरियल एडवाइजर मृणाल पाण्डेय, प्रधान संपादक ज़फ़र आगा और अन्य संपादकों के तमाम सवालों के बड़ी बेबाकी से जवाब दिए। पेश है विशेष बातचीत के अंशः
संशोधित नागरिकता कानून और इसके खिलाफ हो रहे विरोध-प्रदर्शनों को आप कैसे देखते हैं?
मैं इस बात को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हूं कि सरकार ने जानबूझ कर इस विवाद को जन्म दिया है ताकि इसका सियासी फायदा उठाते हुए अपने समर्थन आधार को मजबूत किया जा सके। वे ऐसा ही माहौल बनाना चाहते थे। कारण, अगर सरकार वाकई गंभीर होती तो इस मामले को स्थायी संसदीय समिति के पास भेजती, जहां विचार-विमर्श से सभी आपत्तियों का हल निकाला जा सकता था। इस पर तुरत-फुरत आगे बढ़ने की कोई तात्कालिक जरूरत तो थी नहीं। लेकिन यह सरकार इसी तरह काम करती है। जीएसटी को लें। पहले खुद बीजेपी इसका विरोध करती थी। खैर, जब यह सरकार जीएसटी लेकर आई तो हर किसी ने उनसे कहा कि इसमें संदेह नहीं कि यह एक अच्छा कानून है लेकिन इसे हड़बड़ी में लागू कर दिया गया। उन्होंने इसलिए आनन-फानन जीएसटी पर आगे बढ़ने का फैसला किया कि तब गुजरात में चुनाव होने थे। यह सरकार जो भी करती है, वह राजनीतिक फायदे को ध्यान में रखकर करती है। यह सब उनकी रणनीति का हिस्सा है।
आपने छह साल तक पीएमओ में काम किया है। आप नरेंद्र मोदी के काम करने के तरीके को कैसे देखते हैं?
पहली बार1991 में सांसद बनने के बाद मैंने कई प्रधानमंत्रियों को काम करते देखा है। मैंने डॉ. मनमोहन सिंह के समय पीएमओ में छह साल तक काम किया। लेकिन कभी काम करने का ऐसा तानाशाही तरीका नहीं देखा। यह सरकार ऐसे दिशाहीन जहाज की तरह दिखती है जिसमें प्रधानमंत्री अपनी सनक में फैसले लेते हैं। उन्होंने योजना आयोग को खत्म करने का फैसला लिया लेकिन कोई नहीं जानता कि ऐसा क्यों किया गया। उन्होंने नीति आयोग बनाया लेकिन एक बार फिर किसी को नहीं पता कि क्या हासिल करने के लिए ऐसा किया गया। आज कोई मंत्री या सरकार में काम कर रहा सचिव कोई पहल नहीं करता, हर पहल की शुरुआत विशुद्ध रूप से पीएमओ से होती है। यह तो माना जाता है कि वह गुजरात के अधिकारियों पर भरोसा करते हैं, लेकिन कोई नहीं जानता कि उनके सलाहकार कौन हैं।
बीजेपी ने हमेशा मनमोहन सिंह को एक कमजोर प्रधानमंत्री के तौर पर प्रचारित किया। आपका आकलन क्या है?
भारत के प्रधानमंत्री का कार्यालय बहुत शक्तिशाली होता है और डॉ. मनमोहन सिंह एक बड़े मंझे हुए और होशियार प्रधानमंत्री थे।
लेकिन संजय बारू ने तो अपनी किताब ‘ऐक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ में दावा किया है कि मनमोहन सिंह तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से निर्देश लिया करते थे?
उनके लिए किसी से निर्देश लेने की कोई जरूरत नहीं थी। हकीकत तो यह है कि पीएमओ में हम हर हफ्ते उच्चस्तरीय बैठक करते थे ताकि कांग्रेस के घोषणापत्र में किए गए वादों पर अमल की प्रगति का जायजा ले सकें। डॉ. सिंह खुद भी हर तिमाही प्रगति की समीक्षा करते थे। हम पार्टी के घोषणापत्र परअमल करने को लेकर बेहद गंभीर थे। आज तो स्थिति यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह तक ‘बाहर’ से आदेश लेते हैं और यह मुद्दा नहीं बनता।
किसी ने भी उम्मीद नहीं की थी कि कांग्रेस और एनसीपी महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाएंगी। यह कैसे बन पाई और यह कब तक चलेगी?
कांग्रेस-मुक्त भारत का बीजेपी का शोर, दरअसल, विपक्ष-मुक्त भारत का था। वे तानाशाही, एक दलीय शासन में यकीन करते हैं ताकि वह सब कर सकें जो उनके मन में है। वे किसी भी तरह सत्ता से चिपके रहना चाहते हैं। देवेंद्र फडणवीस ने सत्ता फिर से हासिल करने के लिए साम-दाम-दंड-भेद का उपयोग करने की बात खुलेआम कही थी। और विधानसभा चुनाव के दौरान उन लोगों ने कांग्रेस और एनसीपी के लगभग 40 सांसदों और विधायकों की पाला बदलने के लिए बांहें मरोड़ीं थीं औरउन्हें ब्लैकमेल किया था। उन्होंने पश्चिमी महाराष्ट्र में कुछ नेताओं द्वारा स्थापित चीनी मिलों, कोऑपरेटिव, शैक्षिक संस्थाओं को खत्म कर देने के लिए अपनी शक्ति का उपयोग किया और कई राजनीतिज्ञों को तो उनके सामने झुकना भी पड़ा। यही नहीं, फडणवीस ने बड़ी परियोजनाएं शुरू करने की बातें कीं और इस तरह के कई समारोहों में भाग भी लिया लेकिन वह एक भी प्रोजेक्ट पूरा करने में विफल रहे। जब वह मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने जिन प्रोजेक्ट्स को शुरू किया, उन्हें भी वह अंजाम तक नहीं पहुंचा पाए। जमीनी स्तर पर उनकी सरकार के खिलाफ खासा गुस्सा था। यही वजह है कि भारी-भरकम खर्च करने के बावजूद बीजेपी उतना अच्छा नहीं कर पाई जितनी उसने अपेक्षा की थी।
लेकिन शिवसेना के साथ गठबंधन बनने से कई लोगों को आश्चर्य भी हुआ...
अगर आप इतिहास पर नजर डालें, तो शिवसेना ने पहले भी कांग्रेस के साथ मिलकर काम किया है। इसने राष्ट्रपति पद के लिए प्रतिभा पाटिल और प्रणव मुखर्जी के नाम का समर्थन किया था। बाला साहब ठाकरे ने इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग द्वारा उतारे गए उम्मीदवार का समर्थन किया था। यह वह पार्टी है जो धरती-पुत्र के लिए काम करती है और हमने फैसला किया कि हम इसके वर्तमान नेतृत्व के साथ काम कर सकते हैं। हां, कई कांग्रेस नेता सशंकित थे और यहां तक कि श्रीमती सोनिया गांधी भी बहुत आश्वस्त नहीं थीं। लेकिन हमने अपने चुनाव घोषणा पत्रों को मिलाया और बहुत कुछ ऐसा नहीं पाया जिस परआपत्ति की जा सके। एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम है और एक समन्वय समिति है, जो काम करेगी। अंततः हम फडणवीस को दोबारा सत्ता में आने देना नहीं चाहते थे...।
लेकिन बीजेपी समर्थक कह रहे हैं कि फडणवीस ने बहुत अच्छा काम किया था और वह भ्रष्टाचार के खिलाफ काम कर रहे थे...
बीजेपी की भ्रष्टाचार विरोधी मोर्चे पर पोल खुल गई है। इसने चुनावों के पहले न सिर्फ कांग्रेस और एनसीपी के 40 सांसदों और विधायकों को लुभाने की कोशिश की बल्कि चुनाव अभियान के दौरान अजित पवार का मखौल उड़ाने वाले इसके प्रधानमंत्री को उन्हें अपना उपमुख्यमंत्री बनाने और ट्विटर पर उन्हें बधाई देने में कोई समस्या नहीं हुई। इसने दिखा दिया कि वे सत्ता के लिए कितने भूखे हैं, सत्ता में बने रहने के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं और किसी भी हद तक समझौता कर सकते हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर आप राजनीतिक स्थिति को कैसे देखते हैं?
अर्थव्यवस्था बिल्कुल ही बुरी हालत में है। मोदी सरकार ने मुद्रास्फीति को नीचे लाने का ढिंढोरा बहुत पीटा, लेकिन छह साल में यह सबसे ऊपर है। विकास दर छह साल में सबसे नीचे है। पिछले चार दशकों में बेरोजगारी दर सबसे ऊंची है। लेकिन सबसे खराब सिग्नल यह है कि बजट पूर्व विचार-विमर्श में प्रधानमंत्री और गृह मंत्री तो रहते हैं लेकिन वित्त मंत्री नदारद रहती हैं। यह खराब संकेत देता है।
ऐसा लगता है कि महाराष्ट्र सरकार ने सीबीआई के स्पेशल जज बीएच लोया की मृत्यु की फिर से जांच कराने का फैसला कर लिया है...
यह बात महाराष्ट्र के गृह मंत्री के सामने लाई गई थी। और मुझे लगता है कि उन्होंने कहा कि अगर कोई इसकी दोबारा जांच चाहता है तो सरकार इस पर विचार करेगी। इसलिए मैं नहीं कह सकता कि कोई जांच होगी ही।
देश के वर्तमान हालत में क्या आपको आशा की कोई किरण दिखती है?
विद्यार्थी और किसान- दोनों ही संविधान को बचाने के लिए आगे आ रहे हैं और यह देखना उत्साहवर्द्धक है। दोनों ही समूह महत्वपूर्ण हैं और दोनों जिस तरह आगे आए हैं, उससे लोकतंत्र मजबूत होगा।
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