मल्लिकार्जुन खड़गे को अध्यक्ष के रूप में कांग्रेस की बागडोर संभाले एक साल पूरा हो गया। इस एक साल के दौरान, वह पार्टी को एक स्थिर और नए माहौल की तरफ ले जाने में कामयाब रहे हैं। बिना किसी दिखावे के वे पार्टी में सबको साथ लेकर पार्टी में नया जोश पैदा करने में सफल रहे हैं।
मल्लिकार्जुन खड़गे करीब 55 साल से कांग्रेस के सदस्य हैं। और वह पहले गैर-नेहरू-गांधी परिवार के नेता हैं जिन्होंने बीते 25 साल में कांग्रेस की बागडोर संभाली है। उन्होंने जिस ताज को अपने सिर पर रखा है वह कोई आसान काम नहीं था। इस ताज के साथ पार्टी की गुटबाजी, कई चुनावों में मिली हार और पार्टी कार्यकर्ताओं की नाउम्मीदी भी उन्हें विरासत में मिली थी।
एक साल पहले तक खड़गे को राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह का प्रतिद्वंदी तक नहीं माना जा रहा था, क्योंकि गहलोत को तो बाकायदा अध्यक्ष पद के लिए नामांकन दाखिल करने को कहा तक गया था।
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खड़गे ने सोनिया गांधी की 23 साल की और राहुल गांधी की 2 साल की अध्यक्षता के बाद पार्टी की कमान संभाली थी। उनके चुनाव से पहले राहुल गांधी कई बार कह चुके थे कि गांधी परिवार से कोई भी शख्स पार्टी नेतृत्व नहीं संभालेगा।
अध्यक्षीय चुनाव के नतीजे का ऐलान होते ही, सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी ने उनके 10, राजाजी मार्ग स्थित घर पहुंचकर उन्हें बधाई दी और साथ ही पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को स्पष्ट संदेश दे दिया कि उन्हें गांधी परिवार का समर्थन हासिल है। उस दौरान राहुल गांधी अपनी करीब 3,500 किलोमीटर की भारत जोड़ो यात्रा पर थे और पार्टी में एक नई अलख जलाने का काम कर रहे थे। उनसे जब पूछा गया कि अब पार्टी में उनकी क्या भूमिक होगी, तो राहुल का जवाब था, ‘खड़गे जी जो भी तय करेंगे...।
मल्लिकार्जुन खड़गे हमेशा कहते रहे हैं कि कांग्रेस की राजनीति देश के संविधान की रक्षा और लोकतंत्र की रक्षा की विचारधारा की रही है। वे कहते हैं, “सामाजिक न्याय, आर्थिक सशक्तिकरण, विकासशील विचार और गरीबों का कल्याण ही हमारी नीति है।” उनका कहना है कि, “हम समावेश में विश्वास करते हैं और मानते हैं कि हमारे समाज में विभाजनकारी नीतियों और नफरत की कोई जगह नहीं है।” नेशनल हेरल्ड से बातचीत में खड़गे ने कहा कि राहुल गांधी की मुहब्बत की दुकान का वाक्य इसी विचारधारा का मूल है।
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81 वर्षीय कांग्रेस अध्यक्ष कांग्रेस की विरासत को अपनी सबसे बड़ी ताकत मानते हैं। वे कहते हैं, “कांग्रेस की जड़े स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी हैं। इसी ने एक स्वतंत्र राष्ट्र की परिकल्पना की थी जो संसदीय लोकतंत्र की एक शानदार मिसाल बनी है। खाद्य उत्पादन में आत्म निर्भरता से लेकर न्यूक्लियर पॉवर बनने और फिर 2011 में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने में कांग्रेस का योगदान है।” उन्होंने कहा कि, “कांग्रेस ने देश की प्रगति की बुनियाद रखी है। कांग्रेस-यूपीए ने मनमोहन सिंह के नेतृत्व में और सोनिया गांधी के दिशानिर्देश में अधिकारों को सुनिश्चित किया है और उन्हें देश की नीति बनाया है।”
मल्लिकार्जुन खड़गे की एक और विशेषता है, और वह है सभी के विचार सुनना और कई बार पार्टी में पैदा अंदरूनी तनाव को हल्के-फुल्के अंदाज़ में हल करना। इन्हीं खूबियों के चलते वे राजस्थान, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ में पार्टी की गुटबाजी को शांत करने में कामयाब रहे।
याद दिला दें कि अध्यक्ष का पदभार संभालते ही खड़गे ने अशोक गहलोत और सचिन पायलट के साथ करीब पांच घंटे लंबी बैठक की थी। इसके बाद भी लगातार दोनों नेताओं के साथ बैठकें कर राजस्थान में कथित तौर पर जारी तनाव को खत्म किया था, जिसका नतीजा यह है कि आज जब राजस्थान में चुनाव हैं तो दोनों नेता साथ मिलकर काम कर रहे हैं। दोनों नेता एक साथ मंच साझा करते हैं और जब हाल में राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष पर ईडी के छापे पड़े और अशोक गहलोत के बेटे को ईडी का समन मिला तो सचिन पायलट ने प्रेस कांफ्रेंस कर इस बारे में अपनी बात रखी।
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अध्यक्ष बनने के बाद से ही खड़गे राज्यों के कांग्रेस नेताओं के साथ लगातार संपर्क में हैं और उनके साथ बैठकें करते रहे हैं। उन्होंने अध्यक्ष तक नेताओं की पहुंच को बेहद सुगम बना दिया है।
छत्तीसगढ़ में, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पार्टी के वरिष्ठ नेता टीएस सिंह देव के बीच तनाव को खत्म करने के लिए खड़गे ने जून में देव को उपमुख्यमंत्री नियुक्त किया। हालांकि ऐसे सिर्फ कयास थे कि पिछले चुनाव के बाद तय हुआ था कि बघेल और देव दोनों को ढाई-ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री बनाया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ था और इसी को लेकर संभवत: दोनों नेताओं के बीच कुछ तनाव था।
कर्नाटक में भी खड़गे को लगभग ऐसी ही स्थिति का सामना करना पड़ा। यहां मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और डी के शिवकुमार के बीच सीएम पद को लेकर स्थितियां तनावपूर्ण थीं। हालांकि 2011 में खड़गे को सिद्धारमैया के लिए सीएम पद छोड़ते हुए पीछे हटना पड़ा था, लेकिन उन्होंने फिर भी राज्य की कमान सिद्धारमैया के हाथ में देने का फैसला किया। कर्नाटक के अन्य नेताओं में जी परमेश्वर, के एच मुनियप्पा और एम बी पाटिल की भी आकांक्षा डिप्टी सीएम पद पाने की थी, लेकिन खड़गे ने इन नेताओं को भी समझा-बुझाकर कर्नाटक और पार्टी के हित में काम करने के लिए तैयार किया और अंतत: सिद्धारमैया को सीएम और डी के शिवकुमार को डिप्टी सीएम बनाया गया।
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हिमाचल प्रदेश में भी खड़गे को ऐसी ही स्थितियों से दो-चार होना पड़ा। चुनावी नतीजे आने के बाद सुखविंदर सिंह सुक्खू, मुकेश अग्निहोत्री और पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह ने सीएम पद के लिए दावेदारी की थी। लेकिन खड़गे ने सर्वसम्मति बनाकर सुक्खू को सीएम पद पर बैठाया और मुकेश अग्निहोत्री को डिप्टी सीएम बनाया। इसके अलावा प्रतिभा सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह को पीडब्लूडी विभाग का मंत्रालय देकर शांत किया गया। साथ ही प्रतिभा सिंह को हिमाचल कांग्रेस का अध्यक्ष बनाए रखा गया। खड़गे अकसर प्रतिभा सिंह के हिमाचल में पार्टी के मामलों पर चर्चा करते रहते हैं।
राज्यों में और राष्ट्रीय स्तर पर भी यह सुनिश्चित करने के बाद पार्टी एकजुटता से काम करे, खड़गे को उम्मीद है कि मौजूदा विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में जीत हासिल होगी।
उन्होंने कहा, “इस बार नतीजा 5-0 रहेगा। छत्तीसगढ़ और राजस्थान में हमारी सरकारों ने शानदार काम किया है। मध्य प्रदेश में बीजेपी ने सेंध लगाकर सत्ता हासिल की थी, ऐसे में इस बार लोग बीजेपी को सबक सिखाने वाले हैं।”
खड़गे बताते हैं कि वे चार राज्यों में जनसभा कर चुके हैं और उन्हें लोगों का बहुत अच्छा समर्थन मिला है। उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि लोग कांग्रेस को उसकी चार गारंटियो के आधार पर वोट देंगे क्योंकि यह गारंटियां विकास और जन कल्याण से जुड़ी हुई हैं।”
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उधर तेलंगाना में जब पार्टी के प्रभारी मनिकम टैगोर राज्य के उत्तम रेड्डी और रेवंत रेड्डी जैसे नेताओं के बीच तनाव नहीं खत्म कर सके, तो खड़गे ने उन्हें हटाकर मनिकराव ठाकरे को वहां का प्रभारी बनाया। ठाकरे को हर हालात में सहमति बनाने वाले नेताओं के तौर पर जाना जाता है।
मल्लिकार्जुन खड़गे ने INDIA (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलाएंस) में सहमति स्थापित करने में भी अहम भूमिका निभाई है। बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू नेता नीतीश कुमार, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और महाराष्ट्र के दिग्गज नेता शरद पवार के साथ मिलकर वे गठबंधन में अन्य नेताओं को शामिल करने में कामयाब रहे हैं। खड़गे को चुनावी राजनीति का लंबा अनुभव है, यही कारण है कि बाकी नेता भी उनकी बात ध्यान से सुनते हैं।
यही नहीं, खड़गे के विपक्षी दलों के तमाम सांसदों के साथ भी अच्छे रिश्ते हैं क्योंकि जब भी संसद में फ्लोर कोआर्डिनेशन कमेटी की बैठकें होती हैं तो खड़गे ही उसकी अध्यक्षता करते हैं।
खड़गे 138 साल पुरानी पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं, और भारत के संसदीय लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए दृढ़ संकल्प हैं। वे संसद के अंदर और बाहर अपने भाषणों में बीजेपी की आलोचना करते हुए हमेशा अपन बात स्पष्ट तौर पर सामने रखते हैं। उनका कहना है कि, “हम अपने संस्थानों पर किसी भी किस्म के दबाव को बर्दाश्त नहीं करेंगे। सभी समान विचारधारा वाली पार्टियों ने हमारे लोकतंत्र और इसकी संस्थाओं के लिए खतरे को महसूस किया है और INDIA बनाने के लिए एक साथ आए हैं।”
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उन्होंने बताया कि वर्तमान विधानसभा चुनाव के चलते INDIA गठबंधन की अक्टूबर में बैठक नहीं हो पाई, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि सभी स्वायत्त संस्थाओं को मजबूती देने के लिए सभी दल एकजुट हैं। उन्होंने कहा कि, “बीते करीब साढ़े 9 साल में हमने देखा है कि बीजेपी किस तरह लोकतंत्र पर हमले कर रही है। ईडी और सीबीआई के 95 फीसदी छापे विपक्षी नेताओं पर डाले गए हैं। ऐसे वक्त में भी जब आदर्श चुनाव संहिता लागू है, तब भी कांग्रेस नेताओं को परेशान किया जा रहा है। यह भारतीय लोकतंत्र का बेहद निचला स्तर है। लेकिन हम राजनीतिक तौर पर इसके खिलाफ लड़ाई जारी रखेंगे।”
वैसे तो कांग्रेस कार्यसमिति के गठन में करीब 6 माह का विलंब हुआ, लेकिन जब इसे आकार दिया गया तो खड़गे ने इसके सदस्यों की संख्या 24 से बढ़ाकर 35 की और इसमें जाति, समुदाय और लिंग आधारत कोटे का खास ध्यान रखा गया। कार्यसमिति कांग्रेस की सर्वोच्च समिति होती है। यहां तक कि खड़गे के खिलाफ अध्यक्ष का चुनाव लड़ने वाले शशि थरूर को भी कांग्रेस कार्यसमिति में जगह दी गई। इस तरह उन्होंने स्पष्ट संकेत दे दिया कि पार्टी फोरम में उनके खिलाफ आवाज उठाने को अपराध नहीं माना जाता है।
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वे इस बात को समझते हैं कि वे ऐसे वक्त में देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं जब देश की लगभग आधी आबादी 30 वर्ष से कम उम्र की है। उन्होंने कहा, “आज हमारे सामने विभिन्न चुनौतियां हैं। ऐसे देश में जहां की करीब आधी आबादी 30 वर्ष से कम हो, ऐसे वक्त में हमारी आर्थिक नीतियों इस डेमोग्राफिक डिविडेंड का फायदा उठाने में नाकाम साबित हो रही हैं।” उन्होंने कहा कि मंहगाई, असमान आय, छोटे और मझोले उद्योगों की जानबूझकर नष्ट करने और बड़े उद्योग समूहों के हाथों में सबकुछ सौंपने के साथ ही नफरत फैलाकर देश में विभाजनकारी एजेंडा चलाया जा रहा है। और, जब वे 2024 में सत्ता में आएंगे तो उन्हें इन चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।
खड़गे कहते हैं कि, “हम जानते हैं कि पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत इस समय एक कठिन दौर से गुजर रहा है, इसीलिए हम ऐसा ब्लूप्रिंट सामने रखने वाले हैं जिसमें सभी नागरिकों को सामाजिक न्याय और आर्थिक सशक्तिकरण की गारंटी देंगे।”
फिलहाल खड़गे और कांग्रेस दोनों के सामने पांच राज्यों के चुनाव हैं और अगले साल यानी 2024 के लोकसभा चुनाव की चुनौती है। राज्यों में चुनावी जीत खड़गे और उनकी पार्टी के लिए एक ऐसे
खड़गे और कांग्रेस दोनों के लिए, आगे की राह में पांच राज्यों के चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव शामिल हैं। राज्य चुनावों में निर्णायक जीत से खड़गे को 2024 के चुनावों तक अपनी और पार्टी की गति बनाए रखने में मदद मिलेगी।
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