आवाज़ का जादू, अद्भुत आवाज़, बेमिसाल आवाज़, लाजवाब आवाज़, आदर योग्य आवाज़, कोयल सी आवाज़, कानों में शहद घोलती आवाज़, आवाज़ की मलिका, आवाज़ की देवी। इस तरह के और भी जितने विशेषण हो सकते हों उन्हें एक जगह इकट्ठा कर तस्वीर बनाइये तो वो तस्वीर होगी लता मंगेशकर की। कई चीजें ऐसी होती हैं जिनकी व्याख्या करना किसी भी भाषा के बस की बात नहीं। लता के गायन की पूरी व्याख्या करना भी भला किस भाषा के बस की बात है।
आज यानी 28 सितंबर को लता मंगेशकर का जन्म दिन है। वे होतीं तो आज 94 साल की होतीं। वे यूं तो बरसों पहले सक्रिय गायन से अलग हो चुकी थी, लेकिन इस दौरान उनकी शोहरत में कोई कमी नहीं आयी। संगीत प्रेमियों की हर पीढ़ी उन्हें अपने ही दौर की गायिका मानती है। संगीत के रसिकों का कहना है कि लता मंगेशकर का स्वर कई जन्मों की स्मृतियों में ले जाता है।
लता मंगेशकर ने लंबा सार्वजनिक जीवन जिया है। इतनी शोहरत, दौलत और इज्जत उनकी झोली में आयी कि दुनिया का हर सम्मान उनके सामने छोटा पड़ गया है। लेकिन सार्वजनिक जीवन की कुछ शर्ते भी होती हैं, जिनमें सबसे अहम होती है विवाद। लता मंगेशकर जैसी महान हस्ती भी विवादों से नहीं बच पायी। हांलाकि किसी को उसके जन्मदिन पर विवादों के हवाले से याद करना अच्छी बात नहीं है, लेकिन विवादों के बीच गरिमा बनाए रखना और संयम का दामन थामे रखना सीखना हो तो उसे लता मंगेशकर के जीवन से सीखा जा सकता है।
शमशाद बेगम, ज़ोहराबाई अंबालेवाली, खुर्शीद, अमीर बाई कर्नाटकी, राजकुमारी, नूरजहां और सुरैया की गायकी के दौर में कमसिन लता मंगेशकर ने सकुचाते हुए गायकी के मैदान में कदम रखा। उनके लिए रातों रात चमत्कार जैसी चीज़ नहीं हुई। धीरे धीरे उनकी आवाज़ का असर पहले फिल्म संगीतकारों और फिर दर्शकों-श्रोताओं को अपनी ओर खींचने लगा।
बहुत कम उम्र से ही एक भरे पूरे परिवार की जिम्मेदारी लता मंगेशकर के कंधो पर आ गयी थी। जवानी कब आयी पता ही नहीं चला क्योंकि तब तक लता मंगेशकर के पास इतना काम आ गया था कि कुछ भी सोचने का समय ही नहीं था। और सब तो सही था, लेकिन लता मंगेशकर शादी क्यों नहीं कर रही हैं, यह मुद्दा फिल्मी बिरादरी में गुप-चुप चर्चा का अहम मुद्दा बन गया। उनका नाम एक दो हस्तियों से जोड़ा गया। लेकिन उस दौर के मीडिया ने खास तवज्जो दी संगीतकार सी रामचंद्र और लता मंगेशकर के रिश्ते को लेकर। ऐसे समय में गरिमा को बनाए रखते हुए सोच समझ कर बयान देने की लता मंगेशकर की प्रतिभा ने उन्हें विवादों से जल्द ही निकाल भी लिया।
साठ का दश्क आते आते गायिकाओं में लता मंगेशकर का एकछत्र राज कायम हो चुका था। तभी गीतों की रॉयल्टी के मुद्दे पर मोहम्मद रफी साहब के साथ लता जी की तनातनी हो गयी। दरअसल लता मंगेशकर गीतों की रॉयल्टी में पार्श्व गायकों-गायिकाओं का भी हिस्सा चाहती थीं। लेकिन गायकों में सबसे अहम कद के मालिक रफी साहब का कहना था कि गाने वालों को तो अपनी गायकी की फीस मिल ही जाती है। इसी मुद्दे पर हालात ऐसे बने कि लता मंगेशकर और रफी ने साथ साथ गाना छोड़ दिया। खास बात यह रही कि मोहम्मद रफी की तरह लता जी ने भी इस विवाद में किसी दूसरे का दखल बर्दाश्त नहीं किया और ना ही किसी तरह की बयानबाजी की। दो दिग्गजों के बीच के इस विवाद का फिल्मी दुनिया में मौजूद चाटुकार और अफवाहबाज़ मजा ही नहीं ले पाए।
करीब चार साल बाद ही दोनों एक साथ गाने के लिए राजी हो सके। कहा जाता है कि संगीतकार जयकिशन और नर्गिस ने दोनों को साथ लाने के भरपूर प्रयास किये थे। इस घटना के आस पास ही लता मंगेशकर और एसडी बर्मन में तनाव हो गया और दोनों ने एक दूसरे के साथ काम करना बंद कर दिया। इस विवाद पर भी लता ने कभी तीखी टिप्पणी नहीं की, जबकि उस समय तक वे फिल्मी दुनियी की सबसे ताकतवर महिला के रूप में स्थापित हो चुकी थीं।
इन दोनों की शालीनता का फायदा यह हुआ कि करीब पांच साल बाद जब दोनों ने एक साथ काम करना शुरू किया तो बालीवुड के खाते में कई कालजयी गीत दर्ज हुए। फिल्म बंदिनी के गीत इसकी महत्वपूर्ण मिसाल हैं।
फिर बारी आयी शंकर जयकिशन की जोड़ी के शंकर और लता के बीच के तनाव की।
फिल्मों में प्रचलित आवाज़ो से हट कर एक आवाज़ थी गायिका शारदा की। उनकी अल्हड़ और चंचल आवाज़ का प्रयोग शंकर ने फिल्म सूरज में किया तो “तितली उड़ी उड़ जो चली” जैसा लोकप्रिय गीत सामने आया। इस आवाज़ और इसकी मलिका ने शायद शंकर पर ऐसा जादू किया कि वे अपनी हर फिल्म में शारदा को बढ़ चढ़ कर मौका देने लगे।
कहा जाता है कि इस मुद्दे पर किसी बातचीत के दौरान शंकर और लता में नाराजगी हो गयी। यह नाराजगी इतनी गहरी हो गयी कि शंकर और जयकिशन की जोड़ी में ही दरार पड़ गयी। लता और शंकर के बीच की नाराजगी संभवत: कभी खत्म नहीं हो पायी लेकिन अपनी आदत के मुताबिक लता ने इस मुद्दे पर भी धैर्य का साथ नहीं छोड़ा।
इसके बाद उन पर आरोप लगे की शंकर की पसंदीदा गायिका शारदा को उन्होंने टिकने नहीं दिया। क्योंकि उस समय तक लता की नाराजगी के साथ कोई संगीतकार लंबा सफर तय नहीं कर सकता था। वजह यह थी कि हर हिरोइन चाहती थी कि पर्दे पर उसे लता मंगेशकर ही आवाज़ दें।
ओ पी नैय्यर इसका अपवाद रहे कि उन्होंने लता से कभी कोई गीत नहीं गवाया। लेकिन जिस दौर में लता का सिक्का चलना शुरू हो गया था उस दौर में लता से कोई संगीतकार गीत ना गवाए यह सामान्य बात तो नहीं हो सकती थी। किसी मुद्दे पर ओ पी नैय्यर और लता के अहम में टकराव जरूर हुआ होगा।
सत्तर के दशक पर ध्यान दें तो कई गायिकाओं के कुछ गीत गाने के बाद फिल्म इंडस्ट्री से बाहर हो जाने का जिम्मेदार लता मंगेशकर को ठहराया गया। शारदा के अलावा, “कभी तन्हाइयों में यूं हमारी याद आएगी” जैसे गीत से मशहूर हुईं मुबारक बेगम, फिल्म गुड्डी के गीत “बोले रे पपीहरा“ से चर्चा में आईं वाणी जयराम, बांग्लादेशी गायिका रूना लैला और सुमन कल्याणपुर के नाम इस सूची में रखे जा सकते हैं, जिनके गायन से दूर हो जाने का दोषी लता मंगेशकर को ठहराया जाता है। बाद में इस सूची में अनुराधा पौडवाल का नाम भी शामिल किया गया।
यह अलग बात है कि अपनी आवाज़ की रेंज और व्यक्तिगत कारणों से जिन गायिकाओं ने गाना छोड़ दिया, उनका जिक्र भी इस तरह से किया गया कि जैसे उन्हें लता मंगेशकर के वर्चस्व की वजह से ही गायन छोड़ना पड़ा।
किसी भी एक शख्स पर रह रह कर इतने लोगों का करियर खत्म करने का आरोप लगे तो उस व्यक्ति का आपा खो देना स्वाभाविक है। लेकिन यह लता थीं जो सारे आरोपों को गरिमामयी खामोशी और शालीनता से बर्दाश्त करती रहीं। लता मंगेशकर की इसी आदत ने उन्हें महान इंसान के रूप में भी स्थापित किया है।
इंसान तो इंसान है, उससे गलतियां होती ही हैं। लता मंगेशकर से भी हुई होंगी। लेकिन धैर्य, शालीनता, गरिमा, और सहजता सादगी ऐसे गुण होते हैं जो इंसान को महान बनाते हैं। लता मंगेशकर के लिए लंदन के एक समारोह में अरसा पहले दिलीप कुमार ने जो कहा था उसके भाव इस तरह के थे कि “कुदरत ने हिंदुस्तान को एक खास तोहफा दिया है और उस तोहफे का नाम है लता मंगेशकर”। हमारी खुशकिस्मती है कि वो तोहफा अभी हमारे बीच है।
हमने इस लेख में लता मंगेशकर की जिंदगी से जुड़े विवादों का जिक्र किया है। लेकिन जिस गीत को हमने इस लेख का शीर्षक बनाया है, उसे तो सुनना बनता ही है। तो नीचे दिए गए वीडियो में सुनें वह गीत, हमने देखी है इन आंखों की महकती खुश्बू....
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