‘मैं गुलाम भारत में पैदा हुआ, आजाद भारत में रह रहा हूं और समाजवादी भारत में मरूंगा।‘ ये सोच, ये लहजा और तेवर रखने वाले शख्स कैफी आज़मी आज होते तो उनका 100वां जन्मदिन मनाया जाता। समाजवादी भारत का सपना कैफी के साथ-साथ लाखों आंखों ने देखा था वो सपना अभी भी सपना ही है लेकिन इस सपने को पूरा करने के लिए जिन लोगों की कोशिशों की मशाले आज भी जल रही हैं, उसमें कैफी की मशाल सबसे रोशन है।
हालांकि कैफी आज़मी को आज की पीढ़ी उनके बेहद खूबसूरत और असरदार फिल्मी गीतों की वजह से याद करती है, लेकिन उनका परिचय महज इतना सा ही नहीं है। उत्तरप्रदेश के आज़मगढ़ जिले के छोटे से गाँव मिजवां में एक ज़मींदार परिवार में 14 जनवरी 1919 में जन्मे कैफी का नाम था अतहर हुसैन रिज़वी। पिता और दो बड़े भाई ना सिर्फ खुद शेर लिखते थे बल्कि नियमित रूप से घर में शायरी की महफिलें आयोजित करते थे। ऐसे माहौल में कैफी ने 11 साल की उम्र में पहली ग़ज़ल लिख डाली। आगे चल कर बेगम अख्तर ने इस ग़ज़ल को अपनी आवाज़ दे कर पूरी दुनिया में मशहूर कर दिया।
इतना तो जिंदगी में किसी की खलल पड़े
हंसने से हो सुकूं न रोने से कल पड़े
जिस तरह हंस रहा हूं मैं पी-पी के अश्के ग़म
यूं दूसरा हंसे तो कलेजा निकल पड़े
मां बाप ने चाहा कि कैफी को धर्मगुरू बनाया जाए। लखनऊ के मदरसे में उनकी तालीम शुरू हुई, लेकिन मदरसे में छात्रों के साथ होने वाली धांधलियों के खिलाफ कैफी ने हड़ताल कर दी। किसी मदरसे में हड़ताल की ये पहली घटना थी। ये हड़ताल डेढ़ साल चली और इस दौरान कैफी की मुलाकात ऐसे कई लोगो से हुई जो समाजवाद के पैरोकार थे। बचपन से सामंतवादी तौर तरीकों को नापसंद करने वाले कैफी ने ज़िंदगी बिताने के लिये समाजवाद का रास्ता चुन लिया। वे कम्यूनिस्ट पार्टी के फुल टाइम सदस्य बने और फिर मरते दम तक बने रहे।
पार्टी के निर्देश पर कैफी पहले कानपुर और फिर मुंबई की श्रमिक बस्तियों में काम करने लगे। मेहनतकशों में चेतना जगाने के लिये जो मुशायरे किये जाते, उनमें कैफी की मौजूदगी अनिवार्य बन गयी। एक मुशायरे में कैफी हैदराबाद गए, जहां शौकत से उनकी आंखें दो चार हुईं और कुछ समय बाद दोनों ने शादी कर ली।
शादी के बाद शौकत मुंबई पहुंची तो कैफी को एहसास होने लगा कि पार्टी से मिलने वाले 90 रूपए महीना में घर चलाना मुमकिन नहीं था। कैफी ने अखबारों में कॉलम लिखना शुरू किया। साथ ही वे इंडियन पीपुल्स थियेटर के लिए न सिर्फ नाटक लिखने लगे बल्कि उसके प्रदर्शन में आने वाले खर्च का इंतज़ाम करने में भी जुटे रहते। शबाना आज़मी के जन्म के बाद पैसों की जरूरतें बढ़ने लगी थीं। इपटा के उनके साथी और लेखिका इस्मत चुग़ताई के पति शाहिद लतीफ ने उन्हें अपनी फिल्म बुज़दिल (1951) में गीत लिखने का मौका दिया। इस मौके का भरपूर लाभ उठाते हुए वे गीतकार के रूप में स्थापित हो गए।
कैफी की शायरी की विशेषता है कि उनकी अधिकांश रचानाएं अनपढ़ और कम पढ़े लिखे लोगों की समझ में भी आ जाती हैं। श्रमिक बस्तियों में लंबे समय तक काम करने के बाद कैफी को महसूस हुआ कि उनसे बौद्धिक भाषा में बात करना उन लोगों के साथ ज्यादती होगी। उनकी भाषा की सादगी ने फिल्मों में उनका बहुत साथ दिया। उनके फिल्मी गीतों पर एक नजर डालें तो यह बात स्पष्ट हो जाती है।
वक्त ने किया क्या हसीं सितम (कागज़ के फूल), जाने क्या ढूंढती रहती हैं निगाहें, (शोला और शबनम), बहारों...मेरा जीवन भी संवारो...(आखिरी रात), धीरे-धीरे मचल ए दिल-ए-बेकरार...(अनुपमा), तुम्हारी जुल्फों के साए में शाम कर लूंगा (नौनिहाल), मिले न फूल तो कांटों से दोस्ती कर ली (अनोखी रात) मिलो न तुम तो हम घबराएं...(हीर-रांझा), ये दुनिया ये महफिल मेरे काम की नहीं...(हीर-रांझा), बेताब दिल की तमन्ना यही है (हंसते जख्म), तुम जो मिल गए हो, तो ये लगता है (हंसते जख्म), है तेरे साथ मेरी वफा मैं नहीं तो क्या (हिंदुस्तान की कसम), हर तरफ अब यही अफसाने हैं (हिंदुस्तान की कसम), कर चले हम फिदा जानो तन साथियों (हकीकत) और तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो (अर्थ) जैसे गीतों की एक लंबी श्रंखला है जो कैफी ने रचे। उन खूबसूरत बोलों की रंगत, खुश्बू और ताजगी आज भी वैसी ही है।
ग्लैमर और चकाचौंध से भरी फिल्मी दुनिया में सहजता व सरलता से रहते हुए कैफी ने खुद को अपनी जड़ों से कटने नहीं दिया। 1973 में जब वे ब्रेन हैमरेज के शिकार हुए तो थोड़ा ठीक होने पर अपने गांव लौटे। उनके नाम जितनी पारिवारिक जमीन आयी वे उन खेतों को जोतने वालों में बांट दी। मिजवां में स्कूल, अस्पताल, पोस्ट ऑफिस और सड़क बनवाने में कई साल बिता दिये। कैफी ने अपनी शायरी में जिस सामाजिक न्याय और समरसता की बात की उसे खुद जी कर भी दिखाया। यहीं पर वे अपने समकालीन रचनाकारों से बहुत ऊंचे और अलग नजर आते हैं। 10 मई 2002 को कैफी ने इस दुनिया से रूखस्त ले ली और अपनी रचनाओं और ज़िंदगी को एक मिसाल के रूप में हमारे बीच छोड़ दिया।
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined