हिंदी फिल्म जगत के जाने-माने पटकथा लेखक, गीतकार और शायर जावेद अख्तर आज अपना 79वां जन्मदिन मना रहे हैं। जावेद अख्तर ने बॉलीवुड कई हिट गाने दिए हैं, जो अमर हो गए हैं। उससे पहले उन्होंने दर्जनों फिल्मों की कहानियां और पटकथा लिखीं, सुपर-डुपर हिट हुईं और आज भी उन फिल्मो को मील का पत्थर माना जाता है। जावेद अख्तर यूं तो किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं, लेकिन अगर याद दिलाने की बात हो तो कोई जंजीर, शोले, दीवार, हाथी मेरे साथी जैसी फिल्मों और एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा, काले मेघा, काले मेघा जैसे गानों को कैसे भूल सकता है।
जावेद अख्तर का जन्म 17 जनवरी 1945 को ग्वालियर में हुआ था। उनके पिता मशहूर शायर और गीतकार जां निसार अख्तर थे औऱ उनकी मां सफिया अख्तर उर्दू की लेखिका और शिक्षिका थीं। जावेद के दादा मुज्तर खैराबादी का कद भी बहुत ऊंचा था। वहीं उनके मामा मजाज भी मशहूर शायर थे। लेकिन मां औऱ बाप दोनों तरफ से बड़े खानदान का होने के बावजूद जावेद अख्तर का बचपन और फिर शुरुआती जवानी बड़ी तकलीफों में गुजरी। दरअसल लड़कपन से ही उनकी जिंदगी में संघर्ष की कहानी शुरू हो गई है।
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दरअसल कम्युनिस्ट पार्टी की गतिविधियों में सक्रीय रूप से हिस्सा लेने के लिएपिता जां निसार अख्तर ने शिक्षक की नौकरी छोड़ दी और फिर मुंबई चले गए। मुंबई में वह पार्टी के काम, शायरी और शराब में इस तरह डूब गए कि बीवी-बच्चों के पास पलट कर आने का मौका नहीं मिला। इस बीच जब जावेद पांच साल के थे और उनके बड़े भाई सलमान की उम्र आठ साल थी तब बाप का इंतजार कर रही उनकी मां का किसी लाइलाज बीमारी से निधन हो गया।
मां के गुजरने के बाद जावेद के लिए जैसे संघर्षों के नए दौर की शुरुआत हो गई। मां तो गुजर ही गई थी, पिता भी उन्हें रिश्तेदारों के भरोसे छोड़कर अपनी जिंदगी में मशगूल हो गए। जावेद और उनके बड़े भाई की परवरिश रिश्तेदारों के आसरे में लखनऊ, अलीगढ़ और भोपाल के सैफिया कॉलेज में हुई। भोपाल में पढ़ाई के दिनों में जावेद साहब के कोई रिश्तेदार शहर में नहीं थे, तो वे दोस्तों के भरोसे कॉलेज के ही एक कमरे में वक्त गुजारते रहे और जिंदगी के नए सबक सीखते रहे।
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इस बीच पिता जां निसार अखतर ने दूसरी शादी कर ली। फिर जावेद भी अच्छे भविष्य की तलाश में 1964 में मुंबई अपने पिता के पास जा पहुंचे। सौतली मां से निभ नहीं सकी तो पिता ने जवाब दे दिया। ऐसे में अपने पिता के घर सिर्फ एक रात बिता कर जावेद ने खुद को मुंबई के फुटपाथों और दुकानों के बरामदों के हवाले कर दिया। लेकिन पढ़ाई के दौरान ही जावेद के अंदर एक शायर का जन्म हो चुका था। लेकिन मुंबई में उन्होंने फिल्मी दुनिया में काम की तलाश शुरू कर दी।
फिल्मों में काम की तलाश में जुटे जावेद को काम तो नहीं मिला, लेकिन कमाल अमरोही की कमाल स्टूडियो में रातें गुजारने का मौका जरूर मिल गया। इसी दौरान वह एक दोस्त की मदद से किसी तरह निर्देशक एस एम सागर की फिल्म ‘सरहदी लुटेरा’ में क्लैपर बॉय का काम पा गए। इस फिल्म के हीरो सलीम खान और हिरोइन हेलेन थीं। फिल्म निर्माण के दौरान सलीम और जावेद की गहरी छनने लगी। शूटिंग के दौरान ही जावेद को इस फिल्म के कुछ संवाद सुधारने और नए लिखने का भी मौका मिला।
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फिल्म ‘सरहदी लुटेरा’ तो फ्लॉप हो गयी लेकिन सलीम और जावेद के रिश्ते बहुत मजबूत हो गए। सलीम खान को फिल्मों में मनचाहा काम नहीं मिल पा रहा था। उन्हें भी एहसास था कि वे लिख सकते हैं और वह पहले ही कहानियां लिखने लगे थे। फिर क्या था, जावेद के साथ सलीम खान ने जोड़ी बना कर लिखना शुरू किया। फिल्म अधिकार से शुरू कर इस जोड़ी ने एक के बाद एक 24 फिल्में लिखीं, जिनमें अंदाज, ‘हाथी मेरे साथी’ से ‘जंजीर’, ‘दीवार’ और ‘शोले’ तक जैसी सुपरहिट फिल्में शामिल थीं।
फिल्म में संवाद की अधिकतर जिम्मेदारी जावेद के कंधों पर होती थी। उन्हें भोपाल में तंगहाली में बिताए दिन, मां की कमी और बाप के रहते ही अनाथों जैसा जीवन बिताने का दर्द भुलाए नहीं भूलता था। यही सब उनकी फिल्म लेखनी में भी उभरा। बेसहारा लेकिन उसूलों वाली मां और गरीबी में पला बेटा यह खास बात थी जो जावेद, सलीम के साथ मिलकर अपनी कहानियों में बार-बार दोहराते रहे।
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उनका ‘दीवार’ का लिखा संवाद “मेरे पास मां है” और ‘त्रिशूल’ जैसी फिल्म में बाप के प्रति विद्रोही तेवर लिये नायक को गढ़ने में जावेद को शायद जरा सी भी मेहनत नहीं करनी पड़ी। यह सब तो एक तरह से उनकी जिंदगी में घट चुका था। बगावत को बार-बार पर्दे पर पेश कर एक तरह से जावेद खुद को दोहरा रहे थे। इसके अलावा सलीम-जावेद की लिखी फिल्मों में पर्दे पर एक ऐसी मां की छवि भी बार-बार प्रस्तुत होती रही, जो बेसहारा और गरीब है लेकिन खुद्दार है और उसके बच्चों से बढ़ कर दुनिया में और कुछ नहीं है।
इस दौरान निजी जीवन में जावेद को जिस सहारे की तलाश थी वह उन्हें हनी ईरानी के रूप में मिला। दोनों ने शादी कर ली और एक हसीन इत्तेफाक यह भी रहा कि दोनों का जन्म दिन 17 जनवरी को ही पड़ता है। मगर लंबे समय तक दोनों साथ-साथ जन्मदिन सेलिब्रेट नहीं कर सके। जिस तरह जावेद के पिता ने जिंदगी का सुकून दूसरी औरत में तलाश किया उसी तरह की घटना से जावेद को भी दो-चार होना पड़ा और दो बच्चों के बाप बनने के बाद उनका हनी ईरानी से अलगाव हो गया।
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अलगाव की पीड़ा से उन्हें फिर गुजरना था तभी तो बड़े भाई की हैसियत रखने वाले सलीम खान से भी उन्हें अलग होना पड़ा। तब तक जावेद संवाद और स्क्रीन प्ले लिखने के अलावा शायरी भी करने लगे थे। और हां इस बीच जावेद ने मशहूर शायर कैफी आजमी की बेटी और मशहूर अभिनेत्री शबाना आजमी से शादी कर ली। दरअसल शुरुआती सफर में जावेद, कैफी आजमी के असिस्टेंट भी थे। कामयाब होने के बावजूद जावेद साहब का उनके घर आना-जाना लगा रहता था। दोनों के बीच शेर-ओ-शायरी की महफिल सजती थी, जिसे देखने के लिए कैफी साहब की बीवी और बेटी शबाना अक्सर फुर्सत लेकर बैठती थीं। इसी तरह की चंद मुलाकातों के बाद ही जावेद और शबाना ने जिंदगी भर साथ रहने का फैसला कर लिया और 1984 में शादी कर ली।
शायरी तो जावेद अख्तर को विरासत में मिली थी। यही वजह रही कि सलीम से जोड़ी टूटने के बाद एक गीतकार की हैसियत से फिल्म ‘सिलसिला’ में जावेद अख्तर ने पहली बार गीत लिखे और छा गए। लेकिन उन्हें लग रहा था कि एक गीतकार की हैसियत से खुद को स्थापित करने के लिए उन्हें फिर से संघर्ष करना पड़ेगा। दूसरी ओर उन पर यह इलजाम भी लग रहा था कि सलीम-जावेद की जोड़ी में कहानी और लेखन का सारा कमाल तो सलीम खान का ही होता था।
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लिहाजा जावेद ने अकेले फिल्म लिखने का जिम्मा उठाया और पहली फिल्म लिखी ‘बेताब’ (1983) इसके बाद जावेद स्क्रिप्ट राइटर और गीतकार के बीच का संतुलन साधते रहे, लेकिन उन्हें बेजोड़ सफलता मिली गीतकार के रूप में। उन्हें गीतकार की हैसियत से आठ बार और श्रेष्ठ स्क्रिप्ट राइटर की हैसियत से सात बार फिल्म फेयर का पुरस्कार मिला। उन्हें पांच बार राष्ट्रीय पुरस्कार से भी नवाजा गया। पद्मश्री और पद्मभूषण के साथ-साथ उन्हें राज्य सभा के मनोनीत सदस्य का सम्मान भी हासिल हुआ। शायर की हैसियत से उनके काव्य संग्रह ‘लावा’ को साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा जा चुका है।
मेरे पास मां है…..आज खुश तो बहुत होगे तुम…..जब तक बैठने को न कहा जाए खड़े रहो… जैसे फिल्मी डायलॉग्स के अलावा जावेद साहब की कलम से लिखे गाने, तुमको देखा तो ये ख्याल आया, नीला आसमां सो गया, देखा एक ख्वाब तो ये सिलसिले हुए, ये कहां आ गए हम, एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा.. आज भी सदाबहार हैं। फिल्म सिलसिला, लावारिस, मिस्टर इंडिया, सागर, 1942 लव स्टोरी, रिफ्यूजी, बॉर्डर, विरासत, डुप्लीकेट, बादशाह, लगान, कल हो न हो, डॉन, ओम शांति ओम, जोधा अकबर, रॉक ऑन, माय नेम इज खान, तलाश, रईस और डंकी जैसी कई फिल्मों के गाने जावेद अख्तर ने ही लिखे हैं।
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हिंदी सिनेमा में इस दिग्गज गीतकार का बहुत बड़ा योगदान रहा है। ये बॉलीवुड के पहले ऐसे लेखक थे, जिन्हें करोड़ों में फीस मिली। एक दौर ऐसा भी था जब हीरो-हीरोइन नहीं बल्कि इनके नाम से दर्शक फिल्में देखने जाया करते थे। उस दौर में सलीम-जावेद फिल्म के हीरो से ज्यादा फीस लेते थे। जावेद अख्तर का नाम आज भी इंडस्ट्री के महंगे गीतकारों में शुमार है। वैसे तो एक गाने के लिए वह 10 से 15 लाख रुपए लेते हैं। लेकिन हाल में आई शाहरुख खान की फिल्म डंकी के लिए उन्होंने 25 लाख रुपये की फीस ली है। उन्होंने फिल्म में ‘निकले थे कभी हम घर से’ गाना लिखा था।
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