शख्सियत

पुण्यतिथि विशेष: हसरत जयपुरी...'तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे'

हसरत जयपुरी ने अपने गीतों में उन बोलों को शामिल किया, जिनका कहीं कोई अस्तित्व ही नही था। लेकिन उनके गीत के बोलों में शामिल होकर वह हमेशा के लिए लोगों के दिलों में समा गए।

शायर हसरत जयपुरी
शायर हसरत जयपुरी फोटो: सोशल मीडिया

हिंदुस्तान के मशहूर शायर और गीतकार हसरत जयपुरी की आज 24वीं पुण्यतिथि है। हसरत जयपुरी हिंदी सिनेमा के ऐसे गीतकार थे, जिनके गीतों ने आम आदमी की ज़िन्दगी को छुआ। वैसे तो हसरत जयपुरी को दुनिया छोड़े आज 24 साल हो गए हैं, लेकिन अपने लिखे एक से बढ़कर एक गीतों की बदौलत वह आज भी लाखों लोगों के दिलों में ज़िंदा हैं। उनके शायर से लेकर बस कंडक्टर बनने, फिर मिट्टी के खिलौनों को बेचने से लेकर हिंदी सिनेमा में पहुँचने तक की कहानी बहुत दिलचस्प है।

हसरत जयपुरी की पैदाइश 15 अप्रैल 1922 को राजस्थान के जयपुर में हुई थी। उनका असल नाम इक़बाल हुसैन था। लेकिन हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में उन्हें शोहरत हसरत जयपुरी के नाम से मिली। उनकी शुरूआती पढ़ाई लिखाई जयपुर में ही हुई। उन्होंने अपने नाना से उर्दू अदब और पर्शीयन की तालीम हसिल की। उनके नाना फ़िदा हुसैन अपने ज़माने के मशहूर शायर थे, इसलिए हसरत को शेरो-शायरी अपने नाना से विरासत में मिली थी।

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हसरत बचपन में जयपुर में अपनी पढ़ाई के साथ-साथ शेरो-शायरी में भी दिलचस्पी लेने लगे। लेकिन उन्हें यह बात अच्छी तरह से मालूम थी कि शायरी से पेट नही पाला जा सकता। इसलिए महज़ 18 साल की उम्र में वह रोज़गार की तलाश में बंबई जा पहुंचे। वहां कुछ दिन उन्होंने एक कपड़े की मिल में काम किया। उसके बाद उन्होंने कुछ दिन खिलौनो की फ़ैक्ट्री में भी काम किया। इसी तरह कुछ छोटे मोटे काम करके उन्होंने बंबई की बस में कंडक्टर की नौकरी पकड़ ली। हसरत को शेरो-शायरी का शौक़ तो था ही, इसीलिए वह वहां मुशायरों में भी शिरक़त करने लगे। बहुत ही आसान लफ़्ज़ों में शायरी करने वाले हसरत को एक मुशायरे में मशहूर फ़िल्म एक्टर पृथ्वीराज कपूर नें सुना। उसके बाद हसरत को इप्टा के दफ़्तर बुलाया गया।

उन दिनों मशहूर फ़िल्ममेकर राजकपूर अपनी फ़िल्म बरसात के लिए एक गीतकार की तलाश कर रहे थे। गीतकार शैलेन्द्र को उन्होंने इप्टा के कार्यक्रमों में सुन रखा था। राजकपूर ने हसरत से भी उनकी शायरी सुनी। उसके बाद हसरत जयपुरी भी उनकी टीम का हिस्सा हो गए। जिस टीम में गीतकार शैलेन्द्र और संगीतकार शंकर-जयकिशन पहले से मौजूद थे। साल 1949 में रिलीज़ हुई राजकपूर की फ़िल्म बरसात के लिए हसरत जयपुरी नें पहली बार गीत लिखा, जिसके बोल थे, "जिया बेक़रार है छाई बहार है", उनका यह गीत काफ़ी लोकप्रिय हुआ।

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हसरत जयपुरी नें शैलेन्द्र के साथ साल 1971 तक राजकपूर की सभी फ़िल्मों के लिए एक से बढ़कर एक सुपरहिट गीत लिखे। संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन की जोड़ी में से जयकिशन के गुज़र जाने और 1970 में फ़िल्म मेरा नाम जोकर और 1971 में कल आज और कल की असफलता के बाद राजकपूर ने दूसरे गीतकारों और संगीतकारों की तरफ़ रुख़ किया। राजकपूर हसरत जयपुरी को 1982 की अपनी फ़िल्म प्रेमरोग के लिए वापस लेना चाहते थे, लेकिन फिर कुछ वजहों से वह उन्हें नही ले पाए। उसके बाद राजकपूर ने 1985 की अपनी फ़िल्म राम तेरी गंगा मैली के गीतों को लिखने के लिए हसरत जयपुरी को कहा। राजकपूर ने 1991 की अपनी फ़िल्म हिना के लिए तीन गानों को लिखने के लिए हसरत को बुलाया। हालांकि इसी बीच राजकपूर के निधन के बाद फ़िल्म हिना के संगीतकार रविन्द्र जैन ने उनके लिखे गीतों को हटाकर ख़ुद के लिखे गीत को फ़िल्म में शामिल कर लिया, जिससे हसरत जयपुरी काफ़ी ख़फ़ा भी हुए थे।

साल 1966 में जब गीतकार से फ़िल्म निर्माता बने शैलेन्द्र ने अपनी फ़िल्म तीसरी क़सम बनाई। तब उसके गीतों के लिए उन्होंने हसरत जयपुरी को ही बुलाया। कहा जाता है कि हिंदी फ़िल्मों में टाइटल ट्रैक लिखना काफ़ी मुश्किल भरा काम होता है, लेकिन हसरत जयपुरी ने इस मुश्किल काम को काफ़ी आसानी से पूरा किया। उनके लिखे फ़िल्मों के टाइटल ट्रैक फ़िल्म के हिट होने की गारंटी माने जाने लगे। उनके लिखे ऐसे गीतों की एक लम्बी फ़ेहरिस्त है, जिसमें फ़िल्म दीवाना का गाना दीवाना लोग मुझको कहें, फ़िल्म दिल एक मंदिर का टाइटल ट्रैक दिल एक मंदिर है, फ़िल्म रात और दिन का गाना रात और दिन दिया जले, फ़िल्म तेरे घर के सामने का गाना एक घर बनाऊंगा तेरे घर के सामने जैसे बेशुमार टाइटल ट्रैक शामिल हैं। जो की काफ़ी लोकप्रिय भी हुए थे।

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अपने गीतों में हसरत जयपुरी ने उन बोलों को शामिल किया, जिनका कहीं कोई अस्तित्व ही नही था। लेकिन उनके गीत के बोलों में शामिल होकर वह हमेशा के लिए लोगों के दिलों में समा गए। उन्हीं में एक गीत है राजकपूर की फ़िल्म श्री 420 का रमैया वस्तावैया। जो की बहुत बड़ा हिट साबित हुआ था। गुज़रे सालों में इस नाम से एक फ़िल्म भी रिलीज़ हुई थी। इसी तरह फ़िल्म लव इन टोक्यो के गाने ओ मेरे शाहे ख़ुबा में वह मशहूर शायर दाग़ के मिसरे तुम मेरे साथ होते हो कोई दूसरा नही होता में जब ओ मेरे शाहे ख़ुबा, ओ मेरी जाने जनाना का तड़का लगाते हैं तो गाना मानो जी उठता है। फ़िल्म राम तेरी गंगा मैली का टाइटल ट्रैक तो उनके हाथ नहीं लगा, लेकिन "सुन साहिबा सुन" जैसा मधुर गाना उनकी ही क़लम से निकला। जिसे लोग आज भी बड़े शौक़ से सुनते और गुनगुनाते हैं। फिर फ़िल्म हिना का टाइटल ट्रैक "मैं हूं ख़ुशरंग हिना" भी हसरत जयपुरी की क़लम से निकला। इसे भी काफ़ी पसंद किया गया।

हसरत जयपुरी नें अपनी लिखी कविताओं और गीतों का इस्तेमाल अपनी फ़िल्मों में भी ख़ूब किया। बंबई आने से पहले उन्हें अपने पड़ोस में रहने वाली राधा नाम की लड़की से मोहब्बत हो गई थी। तब उन्होंने राधा के नाम एक प्रेमपत्र लिखा, जिसके बोल थे ये मेरा प्रेमपत्र पढ़कर के तुम नाराज़ ना होना, जिसे राजकपूर ने अपनी फ़िल्म संगम में एक गीत की शक़्ल में इस्तेमाल किया। उस दौर में यह गीत नौजवानों के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुआ। इसी फ़िल्म के दूसरे गाने तेरे मन की गंगा और मेरे मन की जमुना में तो हसरत जयपुरी ने बक़ायदा राधा नाम का भी इस्तेमाल किया। इन गीतों को सुनने के बाद ऐसा लगता है कि जैसे हसरत ने अपनी ज़िंदगी के एक एक लम्हे को बड़े करीने से संजोकर रखा हुआ था। फिर उन्होंने उसे जैसे जैसे मौक़ा मिला अपने गीतों में इस्तेमाल किया।

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ऐसा ही एक क़िस्सा हसरत जयपुरी सुनाते हैं साल 1961 में आई फ़िल्म ससुराल के एक गीत से जुड़ा हुआ। वह बताते हैं कि उस फ़िल्म में राजेंद्र कुमार के साथ किसी नई अभिनेत्री को लिया गया था। फ़िल्म के डॉयरेक्टर ने हसरत से कहा कि आप फ़िल्म की हीरोइन के लिए कोई गाना लिखिए, उनकी ख़ूबसूरती को बयां करते हुए। वह आगे बताते हैं कि उस फ़िल्म की हीरोइन उनको ज़रा भी पसंद नही थी। ऐसे में वह उसके ऊपर गीत नही लिख पा रहे थे। यह बात उन्होंने फ़िल्म के संगीतकार रहे शंकर-जयकिशन की जोड़ी के जयकिशन को भी बताई। अब दोनों काफ़ी सोच में पड़ गए। उसी दौरान हसरत जयपुरी के यहां बेटा पैदा हुआ, उसको देखने वह जयकिशन के साथ हॉस्पिटल गए। अपने बच्चे की नन्ही सी प्यारी सूरत को देखकर उनके ज़ुबान से निकला तेरी प्यारी प्यारी सूरत को किसी की नज़र ना लगे। उनके पास खड़े संगीतकार जयकिशन बोल पड़े कि हसरत साहब गाना तैयार हो गया। इस तरह बना फ़िल्म ससुराल का वह सुपरहिट गाना तेरी प्यारी प्यारी सूरत को किसी की नज़र ना लगे, जिसे मोहम्मद रफ़ी ने गाकर हमेशा के लिए अमर कर दिया।

एहसान मानना और अपनी गैरतमंदी हसरत जयपुरी की शख्सियत की ख़ास पहचान थी। वह जयपुर के अपने दोस्तों से लेकर बंबई में राजकपूर के किए गए एहसानों को कभी नहीं भूले। जिन्होंने उन्हें पहली बार फ़िल्मों में गाने लिखने का मौक़ा दिया था। बंबई आने से पहले जयपुर के उनके दोस्तों ने भी उनकी ख़ूब मदद की थी। इस एहसान को उन्होंने गीत की शक़्ल दी। फिर गीत लिखा "एहसान मेरे दिल पे तुम्हारा है दोस्तों ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तों", जिसे सुनील दत्त की 1967 की फ़िल्म गबन की एक सिचुएशन पर इस्तेमाल किया गया। उनकी गैरतमंदी को इस तरह समझा जा सकता है कि राजकपूर के निधन के बाद तय हुआ कि हसरत जयपुरी को हर महीने 5000 रुपये बतौर वज़ीफ़े के दिए जाएंगे, लेकिन उनकी गैरत ने इसे स्वीकार नही किया। हसरत जयपुरी के गीतों में साहिर जैसी तल्ख़ मिजाज़ी नही थी। ना ही कैफ़ी आज़मी के गीतों सी गहराईयां, लेकिन हां उनके गीतों में दिलकशी और ज़िंदादिली भरपूर थी।

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फ़िल्म सूरज के गाने बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है के लिए हसरत जयपुरी को 1967 में सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड मिला था। तक़रीबन अपने 40 साल के फ़िल्मी कॅरियर में उन्होंने क़रीब 350 फ़िल्मों के लिए 1200 से ज़्यादा गाने लिखे। इस दौरान उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीतकार का दो बार फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड मिला। हसरत जयपुरी को यूं तो फ़िल्मी गीतकार के तौर पर पहचाना जाता है, लेकिन उन्होंने गैर फ़िल्मी गीत भी ख़ूब लिखे। जो उनकी फ़िल्मी शोहरत में कहीं धुंधली सी पड़ गई। हसरत जयपुरी ने हिंदी और उर्दू में कविता की कई किताबें भी लिखीं। उन्होंने एक बार कहा था, "हिंदी और उर्दू दो महान और अविभाज्य बहनों की तरह हैं।"

हसरत जयपुरी अपने साथी शैलेंद्र और जयकिशन की मौत के बाद बहुत अकेलापन महसूस करने लगे थे। राजकपूर के निधन के बाद तो वह पूरी तरह टूट गए थे। उन्होंने एक लम्बे अरसे तक गुमनामी से भरी ज़िंदगी बिताई। आज ही के दिन यानी 17 सितम्बर 1999 को हिंदी सिनेमा के इस बेमिसाल गीतकार ने इस फ़ानी दुनिया को हमेशा हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। साल 1970 में आई शम्मी कपूर की फ़िल्म ‘पगला कहीं का’ में हसरत जयपुरी ने एक गीत लिखा, जो हमें हमेशा उनकी याद दिलाता रहेगा। वह गीत है ‘तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे, जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे संग-संग तुम भी गुनगुनाओगे।’

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