शख्सियत

पुण्यतिथि विशेष: पद्म भूषण रामकिंकर जिन्होंने दिल की सुनी, तभी तो आधुनिक भारतीय मूर्तिकला के अग्रदूतों में नाम शुमार

पद्म भूषण रामकिंकर बैज की आज पुण्यतिथि है। जो अपने पीछे एक विशाल विरासत छोड़ गए, चित्रों और मूर्तियों की। इनके हाथों में जादू था तभी तो मूर्तिकला के अग्रदूतों में नाम शामिल है। हाथों में हुनर ऐसा कि कला बोल उठती। जैसे 'बिनोदिनी'!

फोटो: IANS
फोटो: IANS 

भारतीय कला के अनमोल खजाने में एक विशेष स्थान रखने वाली पेंटिंग 'बिनोदिनी' रामकिंकर बैज की सृजनशीलता और अनोखे प्रयोगों का अद्भुत उदाहरण है। इस पेंटिंग ने कला प्रेमियों के दिलों में अपनी खास जगह बनाई है, जिसमें बैज की मौलिकता और गहरी संवेदनशीलता झलकती है।

पद्म भूषण रामकिंकर बैज की आज पुण्यतिथि है। जो अपने पीछे एक विशाल विरासत छोड़ गए, चित्रों और मूर्तियों की। इनके हाथों में जादू था तभी तो मूर्तिकला के अग्रदूतों में नाम शामिल है। हाथों में हुनर ऐसा कि कला बोल उठती। जैसे 'बिनोदिनी'!

'बिनोदिनी' पेंटिंग शांतिनिकेतन के कला भवन में उकेरी गई। इससे जुड़ी कुछ कहानियां भी हैं। कहा जाता है कि जिस मॉडल को सामने बिठाकर उन्होंने कोरे कैनवास पर कूची चलाई वो उनकी छात्र थी। कहते तो ये भी हैं कि बैज और बिनोदिनी के बीच गहरी दोस्ती भी थी और यही कारण है कि पेंटिंग दिलों को छूती है।

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'बिनोदिनी' पेंटिंग में महिला की छवि अत्यंत सजीव और भावुक है। उसकी आंखों में झलकती संवेदनशीलता और चेहरे पर उभरता हुआ आत्मविश्वास इसे एक असाधारण कृति बनाता है। यह पेंटिंग न केवल उस समय के समाज की झलक दिखाती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि बैज ने अपने विषय के साथ कितनी गहराई से जुड़ाव महसूस किया। उन्होंने बिनोदिनी की मासूमियत और सादगी को अत्यंत कुशलता से उकेरा है, जिससे दर्शकों को भी उससे जुड़ाव महसूस होता है। राम किंकर बैज ने एक बार कहते थे, दिन के उजाले में इस दुनिया के बगीचे में मैं अपनी आँखों से जो कुछ देखता हूँ, उसे मैं अपनी पेंटिंग में चित्रित करता हूँ; इसके अँधेरे में मैं जो कुछ छूता और महसूस करता हूँ, उसे मैं अपनी मूर्ति में मूर्त रूप देता हूँ।

पेंटिंग में अनूठा प्रयोग भी किया गया। पेंटिंग की विशेषता यह है कि इसे बनाने के लिए बैज ने पारंपरिक कैनवास का उपयोग नहीं किया, बल्कि जूट के कच्चे धागे से बने कपड़े का प्रयोग किया।

जूट के कच्चे धागे से बने कपड़े का उपयोग करके बैज ने पेंटिंग को एक नया आयाम दिया। यह माध्यम न केवल पेंटिंग को एक विशिष्ट बनावट देता है, बल्कि यह भारतीय ग्रामीण जीवन की सादगी और सुंदरता को भी दर्शाता है। जूट के कपड़े का रुखापन और मोटे तेल के रंग से लिपा चित्र, 'बिनोदिनी' को एक अद्वितीय टेक्सचर और गहराई प्रदान करता है, जो इसे अन्य पेंटिंग्स से अलग बनाता है। इस माध्यम का चुनाव करते समय बैज ने केवल तकनीकी दृष्टिकोण से नहीं सोचा, बल्कि इसके पीछे उनकी कला के प्रति उनकी गहरी संवेदनशीलता और नवीनता की भावना भी झलकती है।

रामकिंकर बैज की 'बिनोदिनी' पेंटिंग भारतीय कला में मील का पत्थर साबित होती है। यह पेंटिंग एक ओर जहां उनकी सृजनात्मकता और तकनीकी कौशल को दर्शाती है, वहीं दूसरी ओर यह उनकी संवेदनशीलता और मानवीय भावना को भी उजागर करती है। इस पेंटिंग ने भारतीय कला को एक नया दृष्टिकोण दिया और यह दिखाया कि कैसे कला के माध्यम से गहरे मानवीय संबंधों और भावनाओं को उकेरा जा सकता है।

'बिनोदिनी' पेंटिंग की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि यह केवल एक चित्र नहीं है, बल्कि यह एक कहानी है। एक कहानी जो दोस्ती, संवेदनशीलता, और मानवता की है। यह पेंटिंग हमें यह सिखाती है कि सच्ची कला वह है जो दिल से निकलती है और दिलों को छूती है। बैज की यह रचना न केवल भारतीय कला की धरोहर है, बल्कि यह कला प्रेमियों के लिए एक प्रेरणा स्रोत भी है।

बात रामकिंकर बैज की जिसकी ये कृति है। बैज का जन्म 1906 में बंगाल के बांकुरा जिले में हुआ था। उनका शुरुआती जीवन काफी संघर्षपूर्ण था, लेकिन कला के प्रति अटूट समर्पण ने उन्हें शांतिनिकेतन के कला भवन तक पहुंचाया। वहां पर रवींद्रनाथ टैगोर और नंदलाल बोस जैसे महान कलाकारों के सानिध्य में उन्होंने अपनी कला को निखारा और एक अनूठी पहचान बनाई।

रामकिंकर बैज ने न केवल मूर्तिकला में बल्कि चित्रकला में भी कई अनूठे प्रयोग किए। 1970 में भारत सरकार ने रामकिंकर बैज को पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया। 1976 में उन्हें भारतीय कला में उनके महान योगदान के लिए ललित कला अकादमी का फेलो बनाया गया। इसके अलावा 1976 में विश्व भारती ने उन्हें देसीकोत्तमा और 1979 में रवींद्र भारती विश्वविद्यालय ने डी. लिट. की मानद उपाधि प्रदान की । 2 अगस्त 1980 को बह इस दुनियां को छोड़ कर चले गए।

बैज की कला में झलकता हुआ नवाचार, सादगी, और मानवता का मेल उन्हें एक महान कलाकार के रूप में स्थापित करता है। उनकी कला हमें यह सिखाती है कि सच्ची कला वह है जो दिल से निकलती है और दिलों को छूती है। जैसे दिल्ली में आरबीआई भवन के बाहर यक्ष यक्षी की प्रतिमा। जो आज नई दिल्ली में आरबीआई भवन के बाहर स्थित है।

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